लखनऊ :शुक्रवार को देश में गणेश उत्सव की धूम है. गणपति बप्पा की स्थापना को लेकर तैयारियां अंतिम रूप ले चुकी हैं, वहीं इस दिन चांद न देखने की परंपरा की सनातन काल से चली आ रही है. मान्यता है कि इस दिन चांद देखने वालों को बिना कुछ किए कलंक लगता है. ऐसे में चंद्र दर्शन से बचना चाहिए. इस दिन को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए, क्योंकि इस दिन चंद्र दर्शन करने से झूठा कलंक लगता है.
श्रीमद्भागवत में इसका जिक्र मिलता है. इस दिन चांद देखने से भगवान श्रीकृष्ण को स्यमंतक मणि चुराने का झूठा कलंक झेलना पड़ा था. इसकी मुक्ति के लिए व्रत के साथ प्रथम पूज्य देव की आराधना करनी चाहिए. भगवान श्री कृष्ण ने भी व्रत रखकर पूजन किया था.
इसलिए नहीं देखते चांद
कथानक है कि जब भगवान श्री गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजानन कहलाए और माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण वह प्रथम पूज्य देव की श्रेणी में आए. देवताओं ने पूजा करनी शुरू कर तो चंद्रमा मुस्कुराते रहे और उन्हें अपनी सुंदरता पर घमंड आ गया. चंद्रमा के अभिमान पर श्री गणेश जी ने क्रोध में आकर श्राप दे दिया कि आज से तुम काले हो जाओगे. चंद्रमा ने श्री गणेश जी से क्षमा मांगी तो गजानन ने कहा कि सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण हो जाओगे यानी पूर्ण प्रकाशित होंगे, लेकिन चतुर्थी का यह दिन तुम्हें दंड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो तुम्हे निहारेगा, उस पर झूठा कलंक लगेगा. इसी दिन से चांद देखने से बचने की परंपरा है.