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एसजीपीजीआई के ये अवॉर्डी हैं खास, जिनके शोध में है दम - लखनऊ की ख़बर

एसजीपीजीआई के दीक्षांत समारोह में चार खास अवार्डी चुने गए हैं. इसमें एक डीएम कोर्स की टॉपर छात्रा है. एक एमसीएच का टॉपर छात्र है. ये दोनों ही क्षेत्र सुपर स्पेशियलिटी डिग्री कोर्स में बेस्ट रहे हैं.

ये अवॉर्डी हैं खास
ये अवॉर्डी हैं खास

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Published : Aug 27, 2021, 4:41 AM IST

लखनऊः एसजीपीजीआई के दीक्षांत समारोह में चार खास अवार्डी चुने गए हैं. जिसमें एक डीएम कोर्स की टॉपर छात्रा है. एक एमसीएच का टॉपर है. ये दोनों चिकित्सा के क्षेत्र में बेस्ट रहे हैं. वहीं एक संकाय सदस्य और शोध का छात्र है. इनके भी रिसर्च सर्वक्षेष्ठ करार दिये गए हैं. जानिए इन्होंने क्या शोध किए हैं...

जीन पर कंट्रोल कर बचेगा हार्ट अटैक

इंडोक्राइनोलॉजी के शोध छात्र डॉ. संगम रजक को प्रो. एसएस अग्रवाल बेस्ट रिसर्च पेपर अवॉर्ड मिलेगा. डॉक्टर संगम के मुताबिक हार्ट की बीमारी के लिए कोलेस्ट्रॉल को खतरनाक माना जाता है. रक्त वाहिकाओं में कोलेस्ट्रॉल के जमा होने पर रक्त प्रवाह कम हो जाता है. इससे दिल को पर्याप्त मात्रा में रक्त नहीं मिलता है. इससे हार्ट अटैक की आशंका बढ़ जाती है. मरीजों पर किए शोध में पाया कि यूएलके-1 जीन के अधिक क्रियाशील होने पर कोलेस्ट्रॉल रक्त वाहिकाओं में जमा होने की आशंका बढ़ जाती है. ऐसे में इस जीन की क्रियाशीलता को कम करने के लिए यूएलके-1 इनहैबिटर का इस्तेमाल किया तो देखा इससे रक्त वाहिकाओं में कोलेस्ट्रॉल जमा होना कम हो गया. यह परीक्षण कोशिकाओं पर करने के साथ ही रैट मॉडल पर किया. इस शोध को लास आप यूएलके-1 एडीन्यूटेस कोलेस्ट्रोजेनिक जीन एक्सप्रेशन इन मैमिलियन हिपेटिक सेल के नाम से फ्रंटियर इन सेल एंड डेवलपमेंट बायोलॉजी इंटरनेशनल जर्नल ने स्वीकार किया है. इस शोध से दिल की बीमारी की आशंका कम करने के लिए नई दवा आने की संभावना बढ़ जाएगी.

हर मायोसाइटिस नहीं होती है खतरनाक

क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग की डॉ. पंक्ति मेहता को बेस्ट डीएम अवार्ड मिलेगा. उन्होंने वार्ड में मरीजों के मैनेजमेंट, ओपीडी में सलाह और रिसर्च में अहम भूमिका निभाई है. साथ ही सर्वोच्च अंक भी हासिल किए. इन्होंने शोध मे देखा कि हर तरह की मायोसाइटिस बीमारी खतरनाक नहीं होती है. इस बीमारी में समय से इलाज और लगातार फॉलोअप से मरीज अच्छी जिंदगी पा सकता है. मायोसाइटिस एक मांसपेशियों के कमजोरी की बीमारी है. यह बीमारी शरीर के मांसपेशियों के खिलाफ खास एंटीबॉडी के बनने के कारण होती है. इससे ऑटो इम्यून डिजीज कहते हैं. इस बीमारी का पता लगाने के लिए इंस्ट्रक्टेबल न्यूक्लियर एंटीजन परीक्षण किया. जिसमें 14 एंटीजन को देखा. कौन सा मरीज, किस एंटीजन की वजह से बीमारी है, उसके आधार पर बीमारी की गंभीरता का आकलन किया. टाकायासू आर्थराइटिस बीमारी की गंभीरता देखने के लिए एक खास बायोमार्कर देखा. जिसका नाम हिस्टीडीन है. इसके कम होने पर भी बीमारी अधिक परेशान करती है.

इस बायोप्सी से दोबारा स्तन कैंसर की आशंका कम

इंडो सर्जरी विभाग के प्रो. गौरव अग्रवाल मुख्य चिकित्सा अधीक्षक भी हैं. उन्हें बेस्ट रिसर्च के लिए प्रो.एस आर नायक अवार्ड मिलेगा. उनका सेनटेनियल लिम्फ नोड बायोप्सी पर रहा. दावा है कि इससे लिम्फनोड से फैले स्तन कैंसर का पता लगा कर उसे निकाल दिया जाता है. जिससे दोबारा स्कन कैंसर की आशंका कम हो जाती है. डॉक्टर गौरव ने ऑन्कोप्लास्टिक स्तन सर्जरी को संस्थान में स्थापित किया. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की तकनीकी समिति का हिस्सा रहे. प्रोफेसर अग्रवाल ब्रेस्ट सर्जरी इंटरनेशनल (बीएसआई) के मौजूदा अध्यक्ष हैं.

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किडनी कैंसर में दूसरे अंगों को बचाना हुआ आसान

एसजीपीजीआई के यूरोलॉजी विभाग के एमसीएच छात्र डॉ. शीतांगसू काकोटी को प्रो आरके शर्मा अवॉर्ड के लिए चुना गया है। असम के मूल निवासी डॉ शीतांगसू ने किडनी कैंसर के इनफेरिवर वेनाकेवा तक बढ़ने के बाद उसकी सावधानीपूर्वक सर्जरी पर रिसर्च किया है. उन्होंने बताया कि किडनी कैंसर का फैलाव होने के बाद भी उचित प्रबंधन करके अन्य अंगों को बचाकर सर्जरी की जा सकती है. वेनाकेवा तक कैंसर पहुंचने के बाद कुछ दवाएं दी जाती हैं. इससे थ्रंबस छोटा हो जाता है.इसके बाद सर्जरी करके मरीज को राहत दी जा सकती है. ऐसी स्थिति में सर्जरी से पहले अपनाई जाने वाली बाईपास तकनीक का भी इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है.

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