लखनऊ : सुल्तानपुर में गुरुवार सुबह 5:45 बजे वाराणसी से आ रही मालगाड़ी के लाल सिग्नल को पार करने के कारण सामने दूसरी मालगाड़ी से हुई टक्कर के मामले की जांच सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एसएजी) अधिकारियों की चार सदस्यीय समिति करेगी. यह समिति लाल सिग्नल पार करने वाले इंजन के डाटा लोगर (डिवाइस) और उसके जीपीएस रिकॉर्ड की जांच कर घटना की तफ्तीश करेगी. जीपीएस से इसका पता लगाया जाएगा कि ब्रेक को कब लगाया गया था, उससे पहले स्पीड को कब से कम करना शुरू किया गया था, वहीं रेलवे ने वैगनों और इंजनों को पटरियों से हटाकर अप लाइन के सेक्शन को भी शुक्रवार दोपहर 12:45 बजे क्लीयर कर दिया. करीब 19 घंटे बाद अप लाइन पर भी ट्रेन संचालन शुरू हो गया. डाउन लाइन को गुरुवार शाम सात बजे शुरू कर दिया गया था.
उत्तर रेलवे की मुख्य रेल संरक्षा अधिकारी के नेतृत्व में जोनल मुख्यालय की टीम जांच के लिए शनिवार को लखनऊ पहुंचेगी. समिति के सामने सुल्तानपुर से वाराणसी जा रही मालगाड़ी और वाराणसी से आने वाली मालगाड़ी के लोको पायलटों के बयान दर्ज होंगे. जांच की दिशा वाराणसी से आ रही मालगाड़ी के इंजन के ब्रेक मारने पर सही समय से उसके न लगने और लोको पायलट के देर से सतर्क होने के बीच होगी. इन दोनों ही परिस्थितियों में वाराणसी से आने वाली मालगाड़ी का डाटा लोगर और इंजन में लगे जीपीएस का रिकाॅर्ड अहम होगा. जीपीएस के जरिए पखरौली से लेकर सुल्तानपुर तक इंजन की हर गतिविधि का पता लगाया जाएगा. उसका लोको पायलट के बयान के साथ मिलान किया जाएगा. दरअसल, वाराणसी से आने वाली मालगाड़ी सुल्तानपुर से एक स्टेशन पहले ही पखरौली में रुकी थी. पखरौली से चलने के बाद सुल्तानपुर आउटर पर उसे होम सिग्नल से एक किलोमीटर पहले डिस्टेंस सिग्नल मिला था. यदि स्टेशन का स्टार्टर सिग्नल लाल होता है तो होम सिग्नल पीला, जबकि डिस्टेंस सिग्नल को डबल पीला रखा जाता है. ऐसे में ट्रेन और मालगाड़ी को 15 किलोमीटर की गति से होम सिग्नल से प्रवेश करना होता है. यदि ट्रेन या मालगाड़ी को बिना रुके ही मेन लाइन से गुजरना होता है तो स्टार्टर, होम और डिस्टेंस सिग्नल हरा मिलता है. सुल्तानपुर हादसे के मामले में चूंकि सुल्तानपुर से वाराणसी की ओर जाने वाली मालगाड़ी को हरा सिग्नल मिला था और क्राॅस ओवर पर वाराणसी से आने वाली मालगाड़ी को रोका जाना था, इसलिए वाराणसी से आने वाली मालगाड़ी को हाेम का लाल सिग्नल मिला था. इस लाल सिग्नल के ठीक एक किलोमीटर पहले डिस्टेंस सिग्नल को पीला रखा गया था. ऐसे में लोको पायलट को दूर से ही डिस्टेंस सिग्नल को देखकर अपनी गति को कम करना था. इससे लाल सिग्नल पर मालगाड़ी रुक सके.