हैदराबाद:उत्तर प्रदेश को कुशल नेताओं की फैक्ट्री कहा जाता है. सूबे के कई नेता प्रधानमंत्री बने, मुख्यमंत्री बने तो वहीं कुछ ऐसे भी किरदार उभर कर सामने आए, जो केवल अपने आंदोलनों के लिए जाने गए. खैर, सूची बड़ी है, सो बीते कल के किस्सों की कड़ी को अपने उस सियासी किरदार की ओर मोड़ेंगे, जिसे उपचुनाव में मिली पराजय के बाद मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. वहीं, इस्तीफे के बाद सीधे रिक्शे पर बैठ वे अपने घर लौट गए थे. हालांकि, तब कुछ लोगों ने उन्हें रोकने की कोशिश जरूर की थी, पर वे रूके नहीं.
हम यहां बात कर रहे हैं सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव की. दरअसल, आजमगढ़ उपचुनाव में मिली पराजय के बाद उन्हें मुख्यमंत्री के पद इस्तीफा देना पड़ा था, जिसके बाद जनता पार्टी ने बिगड़े सियासी हालात को यथाशीघ्र दुरुस्त करने के मकसद से बनारसी दास को यूपी का मुख्यमंत्री बना दिया.
राम नरेश ने जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो उसके बाद वो रिक्शे पर बैठ घर लौटे थे. वहीं, रामनरेश यादव की सरकार में ही मुलायम सिंह पहली बार राज्यमंत्री बने थे. इधर, यूपी की सियासत में कई ऐसे मुख्यमंत्री हुए, जिनको लेकर कोई न कोई किस्सा लगा गाहे-बगाहे सामने आते रहे. रामनरेश यादव भी ऐसे ही मुख्यमंत्रियों में एक हैं.
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साल 1977 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के लिए वे रिक्शे से ही राजभवन गए थे और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भी वो रिक्शे से ही अपने घर लौटे थे. यूपी की सियासत में रामनरेश यादव एक ऐसी पहेली रहे, जिन पर लगातार शोध की जरूरत जान पड़ती है. साथ ही यह सवाल भी उठते हैं कि आखिर क्यों उन्हें 1977 में मुख्यमंत्री बनाया गया था, उनके मुख्यमंत्री बनने से किसे लाभ हुआ था? खैर, ये ऐसे सवाल हैं, जिनके उत्तर आज भी नहीं मिल सके हैं.
लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि रामनरेश यादव सादगी की वो प्रतिमूर्ति बने जिनकी छवि बेदाग और ईमानदार के रूप में थी. वहीं, फरेब और छल-प्रपंच की सियासी से दूर रामनरेश यादव ने सूबे के पिछड़ों को यह रास्ता दिखा दिया कि चाहे लखनऊ की गद्दी हो या फिर दिल्ली की, उनकी पहुंच से दूर नहीं है.
एक बार रामनरेश यादव किसी काम के सिलसिले में समाजवादी नेता राजनारायण से मिलने गए थे और उनसे मिलते ही राजनारायण की आंखों में चमक आ गई और वो उन्हें जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मिलवाने ले गए. उस वक्त यूपी विधानसभा में जनता पार्टी बहुमत में थी. लेकिन जनता पार्टी के नेता इस उधेड़बुन में थे कि किसे मुख्यमंत्री बनाया जाए.