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सुशांत सिंह राजपूत मामले पर पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने बिहार पुलिस पर खड़े किए सवाल

सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड मामले में सोमवार को यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने बिहार पुलिस की सक्रियता सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने लिखा है किसी राज्य को किसी दूसरे राज्य के मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.

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पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने बिहार पुलिस पर खड़े किए सवाल.

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Published : Aug 3, 2020, 2:04 PM IST

लखनऊ:अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मर्डर मिस्ट्री को लेकर बिहार पुलिस की सक्रियता को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजीपी व वर्तमान में पुलिस सुधार आयोग के अध्यक्ष सुलखान सिंह ने सवाल खड़े किए हैं.

सुलखान सिंह ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर बिहार पुलिस की जांच और कार्यवाही को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी की है. टिप्पणी करते हुए सुलखान सिंह ने महाराष्ट्र के मुंबई में हुई इस घटना के संदर्भ में बिहार पुलिस की सक्रियता को गलत ठहराया है. वहीं बिना जानकारी और पूर्वाग्रह से प्रभावित होकर लोगों की टिप्पणी और बिना जांच के किसी को दोषी ठहराए जाने पर भी आपत्ति जताई.

पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने बिहार पुलिस पर खड़े किए सवाल.

फेसबुक वॉल पर सुलखान सिंह की टिप्पणी
"सुशांत सिंह राजपूत के प्रकरण में बिहार पुलिस की अति सक्रियता उनकी गलत मंशा जाहिर करती है. किसी आपराधिक प्रकरण की विवेचना और विचारण उसी अधिकारिता में हो सकता है, जहां घटना घटित हुई है. फिर बिहार तो दूसरा राज्य है. किसी राज्य को किसी दूसरे राज्य के मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. मृतक या अभियुक्त कहां का रहने वाला है, यह कोई आधार नहीं है. इसलिये कोई मायने नहीं रखता है.
सुलखान सिंह ने कहा कि सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि शुद्ध कानूनी और आपराधिक मामले में आमलोग भी अपनी-अपनी पसंद और पूर्वाग्रह के अनुसार अभियान चला रहे हैं. यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि आपराधिक विवेचना और विचारण, आमराय, बहुमत अथवा जन-दबाव में नहीं हो सकती है. विवेचना सही हो रही है या नहीं? इसका निर्णय केवल न्यायालय कर सकता है. जनता या प्रभावशाली वर्ग के दबाव में यदि विवेचना होगी तो इससे अन्याय ही होगा.
उन्होंने कहा अपनी रुचि के अनुसार कार्रवाई करने का दबाव बनाने की यह घातक प्रवृत्ति बहुत बढ़ती जा रही है. किसी भी सभ्य देश में ऐसा नहीं होता है. अगर किसी को कोई ठोस आपत्ति हो तो उसे कोर्ट जाना चाहिए. आखिर किसी आपराधिक विवाद का फैसला तो कोर्ट ही करेगा. किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था, संगठन को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता है क्योंकि वे निष्पक्ष नहीं होते हैं.

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