लखनऊ :प्रेस कॉन्फ्रेंस में मानहानिजनक पर्चे छपवाकर बंटवाने के मामले में कांग्रेस विधायक अजय कुमार लल्लू ने मंगलवार को एमपी-एमएलए कोर्ट के विशेष एसीजेएम अम्बरीश कुमार श्रीवास्तव की अदालत में आत्म समर्पण कर दिया. इसके बाद कोर्ट ने उन्हें 20-20 हजार रुपये की दो जमानतों पर रिहा कर दिया. पत्रावली के अनुसार अजय कुमार उर्फ लल्लू के विरुद्ध डीएचएफएल के एक पूर्व अधिकारी द्वारा मानहानि का परिवाद दाखिल किया है.
डीएचएफएल अधिकारी का आरोप है कि वह डीएचएफएल में 18 अक्टूबर 2019 तक रीजनल मैनेजर था. उसने 22 अक्टूबर 2019 को बजाज फाइनेंस ज्वाइन किया. अदालत में दिए बयान में वादी ने कहा कि डीएचएफएल ने 2 नवंबर 2019 को अपने दो कर्मचारियों के खिलाफ गलत तरीके से पैसा निवेश करने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इसके बाद अजय कुमार लल्लू ने प्रेस वार्ता की तथा पर्चे छपवा कर कहा कि वादी ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा (Energy Minister Shrikant Sharma) से मिला हुआ है. इस कारण उसको गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है. यह भी कहा गया है कि लल्लू की प्रेस वार्ता के बाद पुलिस ने वादी को गिरफ्तार कर लिया जिससे वादी की नौकरी चली गई. वादी का आरोप है कि अजय कुमार ने वादी पर झूठे आरोप लगा कर मानहानि की. अदालत ने लल्लू को जमानत पर रिहा करते हुए कहा है कि वह न्यायालय द्वारा बुलाए जाने पर हाजिर होगा तथा सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा और न ही गवाहों को धमकाएगा. अदालत ने यह भी कहा है कि अभियुक्त अपने जमानतदारों का मोबाइल नंबर अदालत में देगा.
कोविड में हुई मौतों की न्यायिक जांच कराने की मांग खारिज : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कोविड के दूसरी लहर के दौरान हुई मौतों की जांच के लिए न्यायिक आयेाग गठित करने का आदेश देने की मांग वाली एक याचिका को मंगलवार को खारिज कर दिया. न्यायालय ने कहा कि याची को सही प्रार्थना के साथ याचिका दाखिल करनी चाहिए थी. यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की खंडपीठ ने स्थानीय अधिवक्ता वीपी नागौर की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया.
याचिका में कहा गया था कि याची की पुत्री की कोविड की दूसरी लहर के दौरान मृत्यु हो गई थी. याचिका में वर्ष 2020 में राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए अध्यादेश व रेग्युलेशन्स को भी संविधान के विरुद्ध बताते हुए खारिज करने की मांग की गई थी. सरकार की ओर से याचिका का मुख्य स्थाई अधिवक्ता तृतीय रवि सिंह सिसोदिया ने विरोध किया. दलील दी गई कि याचिका बेहद सतही तरीके से दाखिल की गई है. याची ने इस तथ्य की भी जानकारी नहीं ली है कि जिस अध्यादेश को वह चुनौती दे रहा है, वह पहले ही अधिनियम का रूप ले चुका है तथा रेग्युलेशन्स की समय सीमा 31 मार्च 2022 को ही समाप्त हो चुकी है. यह भी तर्क दिया गया कि जहां तक कोविड के दौरान मौतों की न्यायिक जांच का प्रश्न है, सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कोविड से हुई मौत के सम्बंध में सर्टिफिकेट जारी करने की बात कही थी. जिसमें कोविड से मौत हो जाने का उल्लेख करने को भी कहा गया था. ऐसे में कोविड से दूसरी लहर में हुई मौतों की जांच की मांग का कोई औचित्य नहीं है.
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