लखनऊ:उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के कार्यकाल के दौरान सहकारिता विभाग में 2,324 पदों पर हुई भर्तियों के घोटाले में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. इन भर्तियों के दौरान प्रबंध कमेटी के सभापति शिवपाल सिंह यादव थे. जांच में सामने आया कि भर्तियों में इटावा जिले के एक क्षेत्र के साथ एक जाति के अभ्यर्थियों को विशेष महत्व दिया गया. उन्हें हेराफेरी कर योग्य बनाया गया. लिखित परीक्षा में पास न होने पर ओवर राइटिंग कर अभ्यर्थियों को पास किया गया. योग्य अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट में दो या तीन गोले बनाकर उन्हें भर्ती की रेस से बाहर किया गया. इसके साथ ही भर्ती की लिखित परीक्षा के लिए मनमाने ढंग से कंप्यूटर एजेंसी को नामित किया गया. इसके लिए न तो विज्ञापन जारी किया गया और न ही टेंडर प्रक्रिया अपनाई गई. साथ ही साक्ष्य मिटाने के लिए सेवा मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष ओंकार यादव ने कंप्यूटर की हार्ड डिस्क गायब कर दी. जांच के दौरान कई बार मांगने पर भी उसे नहीं दिया. जिसके बाद इस मामले की जांच कर रही एसआईटी ने अब अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट की फॉरेंसिक जांच कराने का फैसला लिया है. जिसके लिए ओएमआर शीट को विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा जाएगा.
सहकारिता भर्ती घोटाले में चौंकाने वाला खुलासा, ऐसे योग्य अभ्यर्थियों को रेस से किया गया बाहर - एलडीबी
उत्तर प्रदेश में पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के दौरान हुए सहकारिता विभाग में हुए भर्ती घोटाले की एसआईटी जांच में बड़ा खुलासा हुआ है. बताया जा रहा है कि, कुछ विशेष अभ्यर्थियों हेराफेरी कर योग्य बनाया गया. जबकि, योग्य अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट में दो या तीन गोले बनाकर उन्हें भर्ती की रेस से बाहर किया गया. जिसके बाद इस मामले की जांच कर रही एसआईटी ने अब अभ्यर्थियों के ओएमआर शीट की फॉरेंसिक जांच कराने का फैसला लिया है.
बदल दी नियमावली
FIR के मुताबिक उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक (एलडीबी) में भर्तियों के लिए तो तत्कालीन बैंक अधिकारियों ने कर्मचारी सेवा नियमावली ही बदल दी. जांच में पाया गया कि भर्तियों के लिए तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने कर्मचारी सेवा नियमावली 1976 में संशोधन किए और उनका अनुमोदन भर्तियों के लिए गठित सहकारी संस्थागत सेवा मंडल से कराया. जबकि, कर्मचारी नियमावली में संशोधन या उसे फिर से तैयार करने की अधिकारी बैंक की प्रबंध समिति को है. एसआईटी यूपीसीबी में हुई 50 सहायक शिक्षकों की भर्ती में धांधली की जांच पूरी कर पहले ही FIR करा चुकी है.
विभाग दे चुका है क्लीनचिट
इन भर्तियों में धांधली के खिलाफ अखिलेश सरकार में ही आवाज उठने लगी थी, लेकिन, विभाग ने शिकायतों को अनदेखा किया. बीजेपी सरकार बनने के बाद सहकारिता भर्ती के तत्कालीन महासचिव विनोद तिवारी की शिकायत पर शासन ने इसकी जांच के आदेश दिए थे. विभागीय अधिकारी द्वारा की गई जांच में भर्तियों को ठीक बताया गया था.
मनमाने ढंग से कराई भर्ती
आरोपी सेवा मंडल के अध्यक्ष ओंकार यादव और सचिव भूपेंद्र कुमार विश्नोई ने अपने अपने लोगों की मनमानी भर्ती कराई. इसी तरह एक अन्य भर्ती में तत्कालीन अध्यक्ष रामजतन यादव और सचिव राकेश कुमार मिश्रा ने मिलकर पहले मनमाने ढंग से एजेंसी बदल दी और फिर अपने मन मुताबिक भर्ती कराई. इस मामले में अधिकारियों पर आरोप है कि इन लोगों ने साक्ष्य मिटाने के लिए पहले तो कंप्यूटर की हार्ड डिस्क ही गायब कर दी. स्कैन किए गए दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की और पात्र भर्तियों के ओएमआर शीट में एक से अधिक गोले पर निशान लगाकर उसे फेल करने में अहम भूमिका निभाई गई. अब इस पूरे मामले की विवेचना एसआईटी करेगी और एक-एक करके सभी सामने लाए जाएंगे.
ये है पूरा मामला
1 अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 के बीच सहकारिता विभाग की सात संस्थाओं 2,374 पदों पर भर्तियां हुई थीं. जिसमें धांधली की शिकायत पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने 27 अप्रैल 2018 को जांच एसआईटी को सौंपी थी. 25 मई 2021 को एसआईटी ने अलग-अलग 6 मुकदमे पंजीकृत कराये. मुकदमे में उत्तर प्रदेश सहकारी संस्थागत सेवा मंडल के तत्कालीन अध्यक्ष रामजतन यादव, ओंकार यादव सिंह, तत्कालीन सचिव भूपेंद्र कुमार, राकेश कुमार मिश्रा, तत्कालीन सदस्य संतोष कुमार श्रीवास्तव, उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के तत्कालीन एमडी नारद यादव, प्रबंधक सुधीर कुमार और परीक्षा कराने वाली दो एजेंसियों सहित कई कर्मचारियों और अफसरों को नामजद किया गया था.
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