लखनऊ:लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान ने किडनी ट्रांसप्लांट में नया मुकाम हासिल किया है. इसमें अलग-अलग ब्लड ग्रुप के गुर्दा प्रत्यारोपण में सफलता हासिल की है. लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में लखीमपुर निवासी 26 वर्षीय युवक दिखाने आया. जहां नेफ्रोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. अभिलाष चंद्रा ने मरीज की जांच की और किडनी फेल्योर होने पर ट्रांसप्लांट का सुझाव दिया. ऐसे में डोनर की भी स्क्रीनिंग की गई और मरीज की 46 वर्षीय मां ने किडनी देने का फैसला किया, लेकिन ब्लड ग्रुप दोनों के अलग-अलग थे. मरीज का ब्लड ग्रुप जहां 'बी' था. वहीं डोनर का ब्लड ग्रुप 'एबी' था. ऐसे में नेफ्रोलॉजिस्ट, यूरोलॉजी, एनेस्थीसिया विभाग की टीम ने मिलकर ट्रांसप्लांट की योजना बनाई.
डॉ. अभिलाष चंद्रा के मुताबिक सितंबर में पहला अलग-अलग ब्लड ग्रुप का किडनी ट्रांसप्लांट किया गया. यह सफल रहा. अब मरीज को डिस्चार्ज कर दिया गया है. अभी तक एसजीपीआई में अलग-अलग ब्लड ग्रुप का किडनी ट्रांसप्लांट मुमकिन था.
ट्रांसप्लांट में क्या है अंतर ?
डॉ. अभिलाष चंद्रा के मुताबिक समान ब्लड ग्रुप के मरीज-डोनर में प्रत्यारोपण और उसकी रिकवरी तेज होती है. यह मरीज 2 दिन पहले भर्ती होते हैं व 10 दिन में डिस्चार्ज कर दिए जाते हैं. अलग-अलग ब्लड ग्रुप के मरीज व डोनर में प्रोसीजर व मॉनिटरिंग लंबी चलती है. इसमें मरीज को 2 हफ्ते पहले भर्ती करते हैं. उसकी एंटीबॉडी निकाली जाती हैं. इम्युनोग्लोबिन समेत तमाम दवाएं दी जाती हैं, ताकि मरीज का शरीर किडनी को एसेप्ट (Accept) कर लें.