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क्या भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं पटाखे - हिंदूत्व और पटाखे

पटाखों पर रोक के विरोध में सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चल रहा है. लोग हिंदू संस्कृति बचाने के नाम पर पटाखे जलाने की बात कर रहे हैं, पर यदि तथ्यों को टटोला जाए तो पटाखों का भारतीय संस्कृति से कोई संबंध दिखाई नहीं देता.

दिवाली पर पटाखे
दिवाली पर पटाखे

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Published : Nov 14, 2020, 6:40 PM IST

Updated : Nov 14, 2020, 8:22 PM IST

लखनऊः दिवाली यानी दीयों का त्योहार, लेकिन अब यह दीयों से ज्यादा पटाखों का त्योहार बनता जा रहा है. बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए एनजीटी ने इस बार पटाखों पर रोक के आदेश दिए तो दिवाली से पहले ही विवादों की फुलझड़ी जल उठी. सोशल मीडिया पर तमाम एक्टिविस्ट हिंदू संस्कृति की दुहाई देने लगे. यहां तक कि कैंपेन चलने लगे, जहां लोग पटाखों को भारतीय संस्कृति का प्रतीक बताने और किसी भी तरह जलाने की बात करने लगे. लेकिन सवाल यह खड़ा हो गया कि क्या पटाखे हिंदू संस्कृति का अंग हैं या नहीं. आइए तथ्यों के आइने से जानते हैं क्या है सच्चाई...

यह था आदेश

पिछले दिनों एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने आदेश जारी कर पटाखों के उपयोग पर रोक लगा दी. सोमवार को एनजीटी की ओर से जारी आदेश के तहत दिल्ली-एनसीआर सहित जिन शहरों में प्रदूषण का स्तर अधिक है, वहां 30 नवंबर तक पटाखों के उपयोग पर रोक लगाई है. वहीं, दिल्ली, प.बंगाल, ओडिशा, हरियाणा, राजस्थान सहित कई प्रदेशों ने भी अपने स्तर पर पटाखों के उपयोग पर रोक लगा दी है. आदेश जारी होने के बाद से ही सोशल मीडिया के कई तथाकथित क्रांतिकारी इस आदेश का विरोध करने लगे हैं. सोशल मीडिया के यह एक्टिविस्ट दावा कर रहे हैं कि पटाखों पर रोक हिंदू संस्कृति पर हमला है. संस्कृति को बचाने की गुहार लगाते हुए, यह दिवाली पर जमकर पटाखे फोड़ने के लिए कह रहे हैं. एनजीटी और राज्य सरकारों के आदेश को भी खुली चुनौती देते नजर आ रहे हैं.

सोशल मीडिया पर कैंपेन

कुछ लोगों ने तो फेसबुक, टि्वटर और लिंकडिन आदि साइटों पर एक अभियान चला रखा है, जिसमें दिवाली पर किसी भी सूरत में पटाखे फोड़ने औऱ हिंदू धर्म बचाने की अपील की गई है.

हिंदू संस्कृति में पटाखे

यदि संस्कृति बचाने की बात पर ही नजर डाली जाए तो अलग ही तस्वीर नजर आती है. दिवाली का त्योहार भगवान राम के लंका से अयोध्या आने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो कि हजारों साल पहले की घटना है. यदि रामचरित मानस की बात करें तो रामचरित मानस के अनुसार भगवान राम के आने पर अयोध्यावासियों ने दीये जलाए थे. पटाखों की कोई बात किसी पौराणिक पुस्तक में अभी तक देखी-पढ़ी नहीं गई है.

पटाखों की शुरुआत

अब बात करते हैं पटाखों की. आतिशबाजी के सबसे पहले उपयोग का वर्णन चीन में सातवीं सदी में मिलता है. यहां से धीरे-धीरे आतिशबाजी का शौक पूरे विश्व में फैला. हालांकि आधिकारिक तौर पर सबसे पहले पटाखे का उपयोग 1792 में अमेरिका के शहर मैसाच्युसेट्स में किया गया. भारत में पटाखों के उपयोग की शुरुआत 18वीं सदी में मानी जाती है. इस तरह पटाखों का हिंदू संस्कृति से कोई संबंध दिखाई नहीं देता.

हिंदुत्व का नहीं पटाखों से संबंध

इस तरह कहा जा सकता है कि जो लोग पटाखे जलाकर हिंदुत्व को बचाने की बात कर रहे हैं, पहले उन्हें स्वयं अध्ययन कर हिंदुत्व को जानना चाहिए. एनजीटी का आदेश किसी भी तरह हिंदू संस्कृति के खिलाफ नहीं दिखाई देता.

Last Updated : Nov 14, 2020, 8:22 PM IST

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