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मनोरोग विशेषज्ञ की सलाह, खुल के मुस्कुराने से दूर होता है तनाव, इसलिए छोटी-छोटी बातों में ढूंढें खुशी

हर साल मई के पहले रविवार को विश्व हास्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस साल 7 मई को वर्ल्ड लाफ्टर डे मनाया गया. विश्व हास्य दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को हंसने के प्रति जागरूक करना है. हंसना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है. इंसान को हमेशा हंसना चाहिए. क्योंकि हंसने से लोगों के मन को शांति भी मिलती है.

World laughter day
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Published : May 7, 2023, 7:33 PM IST

लखनऊ: हर साल मई के शुरुआती सप्ताह को विश्व हंसी दिवस के रूप में मनाया जाता है. वैसे तो कोविड-19 ने बहुत कुछ बदला है. बहुत से लोगों ने अपने पूरे परिवार को खो दिया, तो बहुत से लोगों ने जिंदगी की लड़ाई लड़ी. हास्य दिवस में हम कुछ ऐसे ही लोगों की कहानी लेकर आए हैं, जिन्होंने चुनौतियों का सामना किया और जिंदगी में आगे बढ़कर खुश रहें. इसके अलावा मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ ने कहा कि जिंदगी में बहुत जरूरी है कि आप खुश रहें. अगर आप खुश नहीं रहेंगे, तो किसी भी काम में मन नहीं लगेगा और अच्छा खासा काम भी बिगड़ जाएगा.

उन्होंने कहा कि जब आप खुलकर मुस्कुराते हैं या हंसते हैं तो आप तनाव से मुक्त होते हैं. आपकी ज्ञानेंद्रियां एक्टिव होती हैं. इसके लिए बहुत सी एक्सरसाइज भी हैं. जब आप सुबह उठे तो किसी एक अच्छी बात को सोचे या कोई चुटकुला पढ़े और खुलकर हंसे. हंसने से ब्लड शुगर लेवल कम होता है. इसके अलावा हंसने से मन को शांति मिलती है. हंसने से दर्द कम होता है. वर्ल्ड लाफ्टर डे को हंसने और खुश रखने के उद्देश्य से मनाया जाता है.

मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर सौरभ
खुलकर हंसने से दूर होंगी समस्याएं: बलरामपुर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ ने बताया कि शायद लोग इस बात को भूल जाते हैं कि जिंदगी में खुश रहना कितना अहम है. जो व्यक्ति हमेशा खुश रहता है, हंसता मुस्कुराता रहता है. वह व्यक्ति जल्द किसी बीमारी चपेट में नहीं आता है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि वह मानसिक तौर पर खुश है. हंसने मुस्कुराने के लिए व्यक्ति को बड़ी-बड़ी बातों की जरुरत नहीं होती है, छोटे-छोटे चुटकुलों से भी खुलकर हंसी आती है. यहां तक की एक्सरसाइज के दौरान भी खुलकर हंसने की एक्सरसाइज होती है.
ऐसा इसलिए है ताकि आप अंदर से अच्छा महसूस करें. डॉ. सौरभ ने आगे कहा कि बहुत से लोगों ने कोरोना काल में इतना दुख झेल लिया है कि उन्हें अब कोई भी खुशी रास नहीं आती है. बहुत से लोग आज भी अस्पताल की ओपीडी में आते हैं और उनका इलाज चल रहा है कि वह बीती बातों से खुद को उभार सके और एक खुशहाल जिंदगी जी सकें. उन्होंने कहा कि अस्पताल के मनोरोग विभाग में 35 फ़ीसदी मरीज सिर्फ इसलिए आते हैं कि वह डिप्रेशन में जा रहे हैं या उन्हें कोई भी चीज अच्छी नहीं लग रही है.

इसके लिए सिर्फ एक ही इलाज है कि लोग मोबाइल की दुनिया से निकल कर बाहर की दुनिया में आए और अपने घर परिवार एवं मित्रों से बातचीत करें. उनके साथ समय बिताएं, बाहर पार्क में टहलने जाए और खुले में रहे, ताकि ताजी हवा लें सकें. इन बातों को जब आप अपनी निजी जीवन में करेंगे, तो आपको अच्छा महसूस होगा. अवसाद में जाने का कोई और कारण नहीं है बल्कि घर परिवार और मित्रों से कटना ही अवसाद को बुलावा देना है. 24 घंटे में 12 घंटे आप काम करेंगे और बाकी समय आप मोबाइल फोन का इस्तेमाल करेंगे, तो जाहिर तौर पर आप अवसाद से ही ग्रसित होंगे.

डॉ. सौरभ ने कहा कि खास बात यह है कि युवा वर्ग के लोग इससे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. इसके अलावा यह लोग मानने को भी तैयार नहीं होते हैं कि यह डिप्रेशन की शिकार हुए हैं. क्योंकि जब आप डिप्रेशन में जाते हैं, तो आपको कोई भी खुशी रास नहीं आती हैं. आप अंदर ही अंदर घुटने लग जाते हैं. यहां तक कि परिवार के सदस्यों और दोस्तों से भी दूरी बना लेते हैं. धीरे-धीरे करके एक के बाद एक दिक्कतें परेशानी समझ में आने लगती है. इसलिए जरूरी है कि जब भी कभी आपको ऐसा महसूस हो कि आप खुश नहीं है. आपके जहन में कोई भी बात लंबे समय तक चल रही है. घबराहट-बेचैनी आपको हो रही है. आप परिवार और दोस्तों से कट रहे हैं, तो खुद को संभाले और बिना हिचक के मनोरोग विशेषज्ञ से मिलें. खुद की काउंसलिंग कराएं.

केस-1
लखनऊ के बिजनौर क्षेत्र के रहने वाले अंकुर सक्सेना ने बताया कि कोरोना का दौर बहुत ज्यादा खतरनाक था. खासकर कोरोना की पहली लहर में तो लोगों के मन में डर बस गया. लेकिन दूसरी लहर ने बहुत से परिवार को उजाड़ के रख दिया. जिसमें मेरा परिवार भी शामिल था. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में किस तरह से एक पल में उनका परिवार टूट के बिखर गया. पहले माता-पिता की मौत हुई, फिर इसके बाद बड़े भाई की. परिवार में कोई भी सदस्य नहीं बचा. इस हादसे से उभर पाना मेरे लिए आसान नहीं था. ऐसा लग रहा था जैसे मैने कौन सा पाप किया था कि सिर्फ मैं बचा और बाकी पूरा परिवार खत्म हो गया. उन्होंने बताया कि कोरोना के दौर में कोई खानदान वाले भी मुझे अपने घर नहीं रखना चाह रहे थे.

इस दौरान मेरे दोस्तों ने मेरा हौसला बढ़ाया. अपने घर में अकेला पड़ा रहा. मेरी एक क्लोज दोस्त ने ऑनलाइन साइकेट्रिक से अपॉइंटमेंट लिया और ऑनलाइन ही मेरी काउंसलिंग शुरू हुई. धीरे-धीरे उनकी दवाओं का असर और काउंसलिंग का असर मुझ पर होने लगा. इस दर्द से उभरने में मेरे दोस्तों ने मेरा पूरा सहयोग किया. मेरी जो क्लोज फ्रेंड थी एक रोज मैंने उसे प्रपोज किया. कोइंसिडेंस ऐसा था कि उसके भी परिवार में उसकी मां के सिवा कोई नहीं था. हम दोनों की रजामंदी से हमारी शादी हुई और अब मैं अपनी पुरानी जिंदगी के दर्द से उभर सखा हूं.आज मेरे पास मेरी पत्नी भी है और मेरे पास मां भी है. इससे बड़ी खुशी मेरे लिए कोई और नहीं है.

केस-2
लखनऊ के बादशाह नगर निवासी शीतल चतुर्वेदी ने बताया कि कोविड-19 में पूरा दो साल बेकार कर दिया था. इस दौरान मेरी नौकरी भी चली गई थी और मेरे परिवार में मैं सबसे बड़ी थी. पिता के जाने के बाद घर संभालने की जिम्मेदारी मेरी ही कंधों पर थी. नौकरी जाने के बाद एक अलग ही डिप्रेशन की शिकार हो गई थी. फिर भी एक कंपनी के द्वारा ऑनलाइन वर्क फ्रॉम होम करने का मौका मिला. किसी तरह से उसी के जरिए मेरा काम चलता रहा और खर्चा भी निकलता रहा. लेकिन पूरे दो साल वर्क फ्रॉम होम करने के बाद जब मैं कहीं इंटरव्यू देने जाती, तो मेरी काबिलियत पर शक किया जाता था.

कम से कम 20 जगह इंटरव्यू देने के बाद भी नौकरी नहीं मिली. धीरे-धीरे फिर मैं सोशल मीडिया पर एक्टिव हुई. इसके बाद मैंने एक कंपनी में इंटरव्यू दिया, जहां पर मेरा सिलेक्शन हुआ. पढ़ी-लिखी होने के बावजूद नौकरी नहीं मिलने के कारण मैं काफी डिप्रेशन में चली गई थी. कोई भी खुशी रास नहीं आ रही थी. हंसना-मुस्कुराना तक छोड़ दिया था, क्योंकि जिम्मेदारियों का बोझ इतना था कि मैं खुद अपने आप को खो चुकी थी. मनोरोग विशेषज्ञ को दिखाया काफी इलाज चला. इसके बाद जब मेरी सारी प्रॉब्लम मेरी नौकरी लगने के बाद शॉट आउट हुई, तो मैं मानसिक तौर पर हल्की हुई. फिर अब मेरी जिंदगी खुशहाल चल रही है.

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