लखनऊ :गर्भाशय महिलाओं के प्रजनन तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग है. आंकड़ों की बात करें, तो हर 4 में से 3 महिलाएं किसी न किसी बीमारी से ग्रसित होतीं हैं. वहीं अगर गर्भाशय की बीमारी पर गौर करें, तो अधिकांश महिलाओं को पता ही नहीं होता है कि उन्हें कोई समस्या है. महिलाएं खुद को होने वाली छोटी-छोटी समस्याओं को नजरअंदाज करती हैं.
महिलाओं को खुद की बीमारी से संबंधित छोटे-छोटे लक्षणों को गंभीरता से लेना चाहिए. महिलाओं को अपनी सेहत से जुड़े छोटे-छोटे कारण उन्हें अनियमित पीरियड्स से लेकर बांझपन तक पहुंचा सकते हैं. महिलाओं को होने वाली 'यूट्रस गांठ' एक ऐसी ही बीमारी है. लखनऊ स्थित क्वीन मेरी अस्पताल की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. सीमा मलहोत्रा के मुताबिक, मौजूदा समय में पूरे यूपी में लगभग 40 फीसद महिलाएं यूट्रस गांठ से पीड़ित हैं.
डॉ. सीमा मलहोत्रा बतातीं हैं कि गर्भाशय की मांसपेशियों में वृद्धि होकर गांठ का रूप ले लेना यूट्रस फायब्रॉइड(यूट्रस गांठ) कहा जाता है. फाइब्रॉएड्स गर्भाशय की मांसपेशीय परत में होने वाला एक कैंसर रहित ट्यूमर है. अधिकतर मामलों में ये गांठें कैंसर नहीं होती हैं, लेकिन लंबे समय तक नजरअंदाज करने पर ये गांठें कैंसर का रूप ले लेतीं हैं.
डॉ. सीमा ने बताया कि सोनोग्राफी से गांठ के आकार व जगह का पता चलता है. क्वीन मेरी अस्पताल में प्रतिदिन लगभग 5 से 10 केस इस बीमारी से पीड़ित मरीज आते हैं. इस जनवरी माह में अस्पताल में अब तक यूट्रस गांठ(फायब्रॉइड) के 25 से अधिक केस आ चुके हैं. यह एक ऐसी बीमारी है, जिसके कारण कई बार महिलाएं गर्भवती नहीं पातीं हैं.
यूट्रस गांठ का इलाज संभव
डॉ. सीमा ने बताया कि यूट्रस का इलाज संभव है. सोनोग्राफी के जरिए गांठ के बारे जानकारी जुटाई जाती है. गांठ की स्थिति व आकार जानने के बाद मरीज का इलाज किया जाता है. नार्मल स्थिति में मेडिसिन द्वारा इसका इलाज किया जाता है.
इसके अलावा यदि गांठ अधिक पुरानी है, तो उसे ऑपरेट करके हटा दिया जाता है. जब यह गांठ कैंसर का रूप ले लेती है, तो उससे मरीज की मौत भी हो जाती है. कई बार महिलाओं को माहवरी में समस्या आने पर वह डॉक्टर से संपर्क करती हैं, तो गांठ के बारे में पता चलता है. जब समस्या गंभीर होती है, तो गर्भाशय को निकालकर मरीज को बचाया जा सकता है. हालांकि गर्भाशय को निकालने के बाद महिला की मां बनने की संभावना समाप्त हो जाती है.