हैदराबाद: कहते हैं कि जिस पार्टी को पूर्वांचल में सफलता मिली, उसी की प्रदेश में सरकार बनती है. शायद यही वजह है कि आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) से पूर्व सूबे की सत्तारूढ़ भाजपा से लेकर सपा, बसपा, कांग्रेस समेत अन्य सभी छोटी पार्टियां 'पूर्व की ओर देखो नीति' अपना हुए हैं. वहीं, विधानसभा चुनाव से पूर्व सियासी अखाड़ा बने पूर्वांचल में सत्तारूढ़ भाजपा से लेकर अन्य सभी विपक्षी पार्टियां पूरी ताकत के साथ प्रचार में जुट गई हैं. ताकि किसी तरह से जातीय समीकरण को तोड़कर अपने पक्ष में चुनावी माहौल बना सकें.
हालांकि, भाजपा जातिगत समीकरण को साधने के साथ ही विकास के मुद्दे पर पूर्वांचल फतह करना चाहती है. इतना ही नहीं अब सीएम योगी आदित्यनाथ पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, काशी विश्वनाथ धाम के अलावा कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट और आजमगढ़ में विश्वविद्यालय की सौगात के जरिए मैदान मारने के फिराक में हैं.
वहीं, समाजवादी पार्टी भी योगी के विकास को सपा का आधार बताकर भाजपा को हर मोर्चे पर घेरने का काम कर रही है. इधर, कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा भी लगातार रैलियां और सभा कर योगी को हर मोर्चे पर चुनौती पेश कर रही हैं.
इसे भी पढ़ें - बापू की 'ह्रदय नगरी' में इस परिवार ने संजोकर रखी हैं यादें
बात अगर बसपा की करें तो पार्टी महिला वोटर्स को अपने पाले में करने के लिए अपने पुराने फॉर्मूले महिला सम्मेलन पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किए हुए हैं. सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो भाजपा पश्चिम उत्तर प्रदेश की बजाए पूर्वांचल में अधिक सीटें गवां सकती है. पिछले आंकड़ों पर भी गौर करें तो लहर के बावजूद पूर्वांचल के लगभग दस जिलों में भाजपा की स्थिति काफी कमजोर थी.
समय की नजाकत को भांपते हुए यहां भाजपा ने कुछ छोटे दलों के साथ गठजोड़ कर जातिगत समीकरण को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है. लेकिन सपा संग राजभर की सियासी गठजोड़ से भाजपा को कई सीटों पर नुकसान की संभावना है.
पूर्वांचल के जिलों पर भाजपा का ध्यान इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अकसर सिद्धार्थनगर, कुशीनगर, वाराणसी और गोरखपुर का दौरा कर रहे हैं. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की ज्यादातर यात्राएं पूर्वांचल के जिलों में हुई हैं.