लखनऊ : लगातार दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में बहुत ही शानदार प्रदर्शन किया है. हाल में हुए निकाय चुनाव में भी प्रदेश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी पर विश्वास जताया है. इन सबके बावजूद कुछ वादे हैं, जो भाजपा सरकार पूरे नहीं कर पाई है. 2019 के लोकसभा चुनाव और फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के शीर्ष नेताओं ने वादा किया था छुट्टा पशुओं की समस्या का समाधान सरकार जरूर करेगी. इस समस्या का समाधान आज तक नहीं हो पाया है. हां यह जरूर है कि सरकार ने कई प्रयास किए हैं, लेकिन प्रयास फलीभूत क्यों नहीं हो सके, कमियां कहां रह गईं, नीतियां अनुकूल क्यों नहीं बन सकीं, इस पर चिंतन-मनन और प्रभावी कदम उठाने की जिम्मेदारी भी तो सरकार की ही है.
कमजोर और बिखरा हुआ विपक्ष भारतीय जनता पार्टी की सरकार की राह आसान करता रहा है. कांग्रेस और बसपा उत्तर प्रदेश में कमोबेश अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं. मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया अखिलेश यादव भारतीय जनता पार्टी को असल जनता के मुद्दों पर घेरने में हमेशा नाकाम रहे हैं. पार्टी अक्सर ऐसे विवादित विषय उठा लेती है, जिसमें बाद में वह खुद ही घिर जाती है. रामचरितमानस का विषय हो अथवा माफिया पर योगी सरकार की आलोचना का मामला, सपा ऐसे मुद्दों को छूती है, जिनमें बाद में वह खुद ही घिरी नजर आती है. असल में जनता से किए वादे सरकार पूरे क्यों नहीं कर पा रही है, यह पूछने का दायित्व भी मुख्य विपक्षी पार्टी का ही है. पूरे प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां छुट्टा पशुओं की समस्या न हो. तमाम किसान इसी समस्या से पीड़ित हैं और कइयों ने खेती परती छोड़ दी है. सरकार ने आवारा पशुओं पर नियंत्रण के लिए प्रधानों के माध्यम से एक तंत्र विकसित करने का प्रयास जरूर किया, लेकिन अधिकांश गांवों में यह व्यवस्था महज कागजी है. ग्रामीणों में पशुपालन को लेकर उत्साह जग पाने में सरकार पूरी तरह नाकाम है. सरकारी संबंध में कई योजनाएं भी चला रही हैं बावजूद इसके लोगों को पशुपालन कतई भा नहीं रहा है. ऐसे में सरकार को हाथ पर हाथ धरकर बैठ नहीं जाना चाहिए. नई योजनाएं और नीतियां बनानी चाहिए, जिससे लोग पशुपालन के लिए प्रेरित हों और जरूरी कदम भी उठाएं.