लखनऊ: कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है और इसी उम्मीद के भरोसे इंसान अपनी जिंदगी गुजारता है. कुछ ऐसी ही कहानी है एक परिवार की जो अपने बेटे के बेहतर इलाज के उम्मीद की किरण आंखों में संजोए बिहार से यूपी की राजधानी लखनऊ के एसजीपीजीआई पहुंचा. लेकिन परिवार का कहना है कि जिस तय समय पर डॉक्टर को बेटे को दिखाना था, उस वक्त डॉक्टर उपलब्ध ही नहीं थे. वहीं उन्हें यह कहकर वापस भेज दिया गया कि अगले शुक्रवार को डॉक्टर बैठेंगे. पिछले 5 दिनों से यह परिवार खुले आसमान के नीचे सर्द रातों में जिंदगी गुजारने को मजबूर है.
सड़क किनारे गुजारा करने को मजबूर परिवार. दरअसल, मोहम्मद सोहराब अपने परिवार के साथ बिहार के हाजीपुर में रहते हैं. सोहराब मेहनत-मजदूरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. कुछ समय पहले उनके बेटे की तबीयत खराब हुई, जिसके बाद उन्होंने बिहार के कई अलग-अलग बड़े संस्थानों में इलाज के लिए दिखाया. वहां पर डॉक्टरों ने उन्हें कहा कि उनके बेटे के दिल में छेद है और उसके इलाज के लिए लखनऊ के एसजीपीजीआई के लिए रेफर कर दिया. मोहम्मद सोहराब अपने 10 साल के मासूम बेटे और बीवी के साथ इलाज के लिए लखनऊ पहुंचे, लेकिन अस्पताल की लचर व्यवस्था के चलते वह अभी तक अपने बेटे को अस्पताल में दिखा नहीं पाए.
मोहम्मद सोहराब की पत्नी ने बताया कि किस तरह से बीते 5 दिनों से वह अपने मासूम बेटे के साथ सड़क किनारे ही रहने को मजबूर हो हैं. भूख लगने पर एसजीपीजीआई परिसर के ही जंगलों से लकड़ी बीन कर वह ईंट से बने चूल्हे पर खाना बनाती है. जहां एक ओर पूरे उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है, वहीं दूसरी तरफ यह परिवार पिछले 5 दिनों से सड़कों पर ही सर्द रातों में जिंदगी बिताने को मजबूर है. इस परिवार को उम्मीद है कि शायद इस बार तय समय पर डॉक्टर उनके बेटे को देख लेंगे और उनके बेटे का इलाज शुरू हो सकेगा.
वहीं जब इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत की टीम ने एसजीपीजीआई के प्रशासनिक विभाग में संपर्क किया तो उनका कहना है कि कोविड-19 महामारी के चलते सभी ओपीडी की कार्यप्रणाली में बदलाव किया गया है. डॉक्टर निश्चित संख्या में ही मरीजों को देखते हैं. वहीं इलेक्ट्रॉनिक ओपीडी का नंबर न लगने के विषय में प्रशासनिक विभाग की ओर से बताया गया कि दिन भर में हजारों की तादाद में कॉल रिसीव किए जाते हैं, जिस कारण ऑनलाइन ओपीडी में कॉल लगने में मरीजों को कभी-कबार समस्या का सामना करना पड़ता है.
कुल मिलाकर भले ही एसजीपीजीआई में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे किए जाते हैं, लेकिन यह तस्वीरें कुछ और ही हकीकत बयां कर रही हैं. वहीं अगर स्थानीय प्रशासन की बात की जाए, तो उन्हें भी सरकार की तरफ से आदेश मिला था कि जगह-जगह रैन बसेरे बनाए जाएं. लेकिन एसजीपीजीआई और उसके आस-पास कहीं भी रैन बसेरा न होने की वजह से यह परिवार सड़कों पर ही सर्द रातों में जिंदगी गुजारने को मजबूर है. अब ऐसे में देखने वाली बात है कि यह व्यवस्था कब सुधरेगी और लोगों की परेशानियां आखिर कब तक दूर हो पाएंगी.