उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ऑक्सीजन सिलेंडर हो सकता है जानलेवा, इन बातों का रखें ख्याल

By

Published : May 6, 2021, 4:37 PM IST

Updated : May 6, 2021, 5:40 PM IST

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की बड़ी किल्लत है. कालाबाजारी भी चरम पर है. पीड़ितों व परिवारीजनों को जहां भी खाली सिलेंडर मिल रहा है, वह उसे लेकर भरवाने के लिये घंटों लंबी कतारों में लगे रहते हैं. लेकिन ऑक्सीजन सिलेंडर को बिना साफ किए दोबारा भराना खतरनाक साबित हो सकता है. इस दौरान सिलेंडर में विस्फोट तक हो सकता है.

विशेषज्ञों ने चेताया : ऑक्सीजन सिलेंडर साफ किए बिना भरी गैस तो हो सकता है विस्फोट
विशेषज्ञों ने चेताया : ऑक्सीजन सिलेंडर साफ किए बिना भरी गैस तो हो सकता है विस्फोट

लखनऊ : ऑक्सीजन सिलेंडर को रिफिल कराते वक्त सावधानी बरतें. विशेषज्ञों की मानें तो ऑक्सीजन सिलेंडर साफ किए बिना गैस भरी तो केमिकल रिएक्शन का खतरा हो सकता है, सिलेंडर में विस्फोट भी हो सकता है.

इसका ताजा उदाहरण बीते बुधवार को चिनहट में केटी ऑक्सीजन प्लांट में सिलेंडर विस्फोट के रूप में सामने आया. इस हादसे में तीन लोगों की मौत ने पूरे लखनऊ को झंकझोर कर रख दिया. पीड़ितों के परिवार पर मानों दुख का पहाड़ टूट पड़ा हो. अपने परिवारीजनों की तिमारदारी में लगे दीपू कनौजिया की ही विस्फोट में जान चली गई. अब उस परिवार की देखरेख करने वाला कोई नहीं बचा.

विशेषज्ञों ने चेताया : ऑक्सीजन सिलेंडर साफ किए बिना भरी गैस तो हो सकता है विस्फोट
शहर के औद्योगिक इकाइयों में चार प्रकार की गैस का हो रहा प्रयोग

शहर में तमाम औद्योगिक इकाइयां हैं. इनकी श्रेणियां अलग-अलग हैं. प्रमुख रूप से चार प्रकार की गैस का प्रयोग औद्योगिक इकाइयों में किया जाता है. इसमें कार्बन डाई ऑक्साइड, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, नाइट्रस ऑक्साइड, ऑक्सीजन, अमोनियां, क्लोरीन, मिथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोजन क्लोराइड, हीलीयम, फ्लोरीन आदि शामिल हैं. इसमें चार से पांच गैस हाइड्रोन, एसीटलीन, ऑक्सीजन, मिथेन सिलेंडर में भरी जाती है. इनकी कालाबाजारी भी हो रही है. लोग बिना देखे ही सिलेंडर ले जा रहे हैं. इनको रिफिल करवा रहे हैं.

हो सकता है विस्फोट

अग्निशमन अधिकारी आलमबाग राम लखन चौहान की मानें तो जिस गैस का सिलेंडर होता है, उसमें वहीं गैस भरी जानी चाहिए. सिलेंडर की कमी है. ऐसे में जिन सिलेंडर में ऑक्सीजन भरी जाती है, उसी तरह के सिलेंडर में अन्य गैसें भी रिफिल कर दी जातीं हैं. जैसे गुब्बारों में हीलियम गैस भरी जाती है. उसका सिलेंडर और ऑक्सीजन के सिलेंडर में ज्यादा अंतर नहीं होता. ऐसे में सिलेंडर की सफाई करने के बाद ही उनमें गैस रिफिल की जानी चाहिए. यदि बिना साफ करे इसमें गैस भरी जाए तो कैमिकल रिएक्शन हो सकता है. इससे विस्फोट भी हो सकता है.


हाइड्रोलिक प्रेशर टेस्ट

कहा कि सभी ऑक्सीजन सिलेंडर पर छोटा सा कोड-वर्ड होता है. कोड में ए, बी, सी और डी के साथ वर्ष अंकित होता है. ए मतलब जनवरी से मार्च, बी मतलब अप्रैल से जून, सी मतलब जुलाई से सितंबर और डी मतलब अक्टूबर से दिसंबर होता है. इसके साथ वर्ष भी अंकित होता है. आमतौर पर यह फटता नहीं है लेकिन पुराने सिलेंडर या एक्पायरी सिलेंडर फट भी सकते हैं.

दरअसल, इसका टेस्ट हाइड्रोलिक प्रेशर से होता है. ऑक्सीजन सिलेंडर का दस साल में पहला टेस्ट और फिर पांच साल पर अगला टेस्ट होता है. टेस्ट में सब कुछ सही है तो ठीक, फेल हो गया तो उसे डैमेज कर फिर से तैयार करना चाहिए.

यह भी पढ़ें :राजकीय संप्रेषण गृह के 50 बाल कैदी कोरोना पॉजिटिव



लखनऊ में गैस प्लांटों पर बरती जा रही लापरवाही

लखनऊ के अन्य ऑक्सीजन गैस प्लांटों पर ही सिलेंडर रिफिलिंग में जबरदस्त लापरवाही बरती जा रही है. सूत्रों की मानें तो लखनऊ ऑक्सीजन प्लांटों पर देखरेख के लिए कोई एक्सपर्ट भी नहीं हैं. रोजमर्रा के काम करने वाले कर्मचारी ही ऑक्सीजन गैस बनाने और वितरण आदि का काम करते हैं. ऐसे में दोबारा बड़ा हादसा हो सकता है. हालांकि, जिलाधिकारी ने ऑक्सीजन प्लांटों पर खास निगरानी के निर्देश दिए हैं. घटना नियंत्रक अधिकारी नागरिक सुरक्षा कोर लखनऊ अली हसनैन आब्दी फ़ैज़ का कहना है कि ऑक्सीजन ज्वलनशील चीजों को सपोर्ट करती है. इसलिए अगर वहां पेट्रोल या गैस जैसी चीजें मौजूद होंगी तो बहुत बड़ा हादसा हो सकता है. ऑक्सीजन की मौजूदगी में आग बहुत भयानक रूप धारण कर लेती है. नागरिक सुरक्षा संगठन लोगों से अपील करता है कि ऑक्सीजन सिलेंडर घरों में रखने से बड़ा हादसा सकता है. लोग घरों से सिलेंडर हटा दें और सरकार को सौंप दें ताकि जरूरतमंदों की मदद हो सके.

सिलेंडर का टेस्ट हुआ या नहीं इसकी भी कोई पड़ताल नहीं होती

कोरोना संक्रमण को देखते हुए लोगों में डर इस तरह भर गया है कि वह आक्सीजन सिलेंडर स्टॉक कर रहे है. सीधे शब्दों में इसे जमाखोरी कहते है. कालाबाजार से लिए गए गैस सिलेंडर पुराने हैं, इनका टेस्ट हुआ है या नहीं, लोगों को इसका कुछ पता नहीं. यह भी नहीं पता कि इसमें ऑक्सीजन ही भरी थी या फिर कोई और गैस.

बिना हाइड्रोस्टैटिक टेस्टिंग के धड़ल्ले से भरे जा रहे ऑक्सीजन सिलिंडर

बिना हाइड्रोस्टैटिक टेस्टिंग के धड़ल्ले से सिलेंडर की रिफलिंग की जा रही है. कोरोना माहामारी के कारण इसकी निगरानी करने वाला जिम्मेदार कन्ट्रोलर ऑफ एक्पोसिव (सीओई) विभाग आंख मूंदे बैठा है. नियमानुसार किसी भी गैस सिलेंडर की प्रत्येक पांच साल में यह टेस्ट अनिवार्य है. ऑक्सीजन सिलेंडर हो या एलपीजी. प्रत्येक पांच साल में इसके चादर की गुणवत्ता की जांच की जाती है. इस जांच को हाइड्रोस्टैटिक टेस्टिंग कहते हैं. इस टेस्टिंग से यह पता चलता है कि भविष्य में यह सिलेंडर रिफिलिंग करने लायक है अथवा नहीं. प्रत्येक सिलेंडर को 150 से 200 बार (प्रेशर यूनिट) प्रेशर ऑक्सीजन भरा जाता है. ऐसे में सिलेंडर की चादर या कैप कमजोर होने पर इसमें ब्लास्ट होने का खतरा बना रहता है.

सिर्फ अवध गैस के पास ही है लाइसेंस

जानकारी के अनुसार, लखनऊ के राजाजीपुरम में अवध गैस को ही हाइड्रोस्टैटिक टेस्टिंग करने का सरकार से लाइसेंस प्राप्त है. इसके अलावा इसकी टेस्टिंग के लिए कानपुर में कई प्लांट हैं. कोरोना महामारी के बीच गैस सिलिंडर की हाइड्रोस्टैटिक टेस्टिंग नहीं हो पा रही है. माहामारी में लोगों की जान बचाने के लिये लोग काफी पुराने वाले गुणवत्ता विहीन सिलेंडर का इस्तेमाल कर रहे हैं.

Last Updated : May 6, 2021, 5:40 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details