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अपनों से नाराज होकर घर छोड़ रहे हैं बच्चे, जानिए वजह

उत्तर प्रदेश में हर साल पांच हजार से अधिक बच्चे प्यार में पड़कर, तनाव या फिर पढ़ाई से पीछा छुड़ाने के लिए घर से भाग रहे हैं. राजधानी की पुलिस व बच्चों के अधिकारों का संरक्षण करने वाले राज्य बाल संरक्षण आयोग (State Child Protection Commission) गुमशुदा बच्चों की तलाश के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा है. उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीते डेढ़ साल में 2764 बच्चों की तलाश की है.

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Published : Dec 6, 2022, 11:14 PM IST

लखनऊ :उत्तर प्रदेश में हर साल पांच हजार से अधिक बच्चे प्यार में पड़कर, तनाव या फिर पढ़ाई से पीछा छुड़ाने के लिए घर से भाग रहे हैं. राजधानी की पुलिस व बच्चों के अधिकारों का संरक्षण करने वाले राज्य बाल संरक्षण आयोग गुमशुदा बच्चों की तलाश के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा है. उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीते डेढ़ साल में 2764 बच्चों की तलाश की है. करीब 56 प्रतिशत गुमशुदा बच्चे अलग-अलग राज्यों में पाए गए.' बीते दिनों राजधानी में ऑपरेशन मुस्कान के तहत बरामद 284 बच्चों से पूछताछ में उनके भागने के कारण सामने आए हैं.

27 सितंबर 2022 को वाराणसी की रहने वाली दो सगी बहनें, जिसमें एक 13 साल की थी व दूसरी 10 साल की, ट्रेन में बैठकर घर से भाग गईं. राजधानी के चारबाग रेलवे स्टेशन पहुंचीं तो छोटी बहन रोने लगी. जिसे देख जीआरपी ने चाइल्ड हेल्पलाइन से संपर्क किया और दोनों को आशा ज्योति केंद्र ले जाया गया. पूछताछ में पता चला कि बड़ी बहन किसी लड़के से फोन पर बात करती थी. घरवालों ने स्कूल भेजना बंद कर दिया, बड़ी बहन की सजा छोटी बहन को भी मिली और दोनों पर घर से बाहर जाने पर पाबंदी लग गई. बस एक रात दोनों ने घर से निकलने का प्लान बनाया और बिना टिकट लिए ट्रेन पर बैठ गईं.

उत्तर प्रदेश बाल अधिकारी संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी



10 जुलाई 2018 को हरदोई के रहने वाले एक व्यापारी का 11 साल का इकलौता बेटा अचानक घर से कहीं चला गया. सात महीने बाद उसे दिल्ली से बरामद किया गया. बाल कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था बचपन ने जब बच्चे से बात की तो उसने बताया कि वह परीक्षा में फेल हो गया तो घर में पापा ने पिटाई की. इसके अलावा उसकी एक की जगह दो ट्यूशन लगा दी गई, जिससे नाराज होकर वो घर से भाग गया.


राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, 2020 और 2021 के दौरान देश भर में 71225 नाबालिग बच्चे गायब हो गए थे. जिसमें 16249 बालक व 54962 बालिका शामिल हैं, वहीं अब तक कुल 108842 बच्चे गायब हो चुके हैं. उत्तर प्रदेश की बात करें तो 2020-21 में 3522 बच्चे गायब थे. इनमें 1354 बालक व 2168 बालिकाएं शामिल हैं. पुलिस की ओर से 2764 बच्चों को बरामद किया गया. इसमें से ऑपरेशन मुस्कान के तहत 415 बच्चे बरामद किए गए. पुलिस विभाग की ओर से जब बातचीत की गई तो 185 बच्चों ने बताया कि स्वजन ने उन्हें डांटा, जिसके कारण तनाव में आकर वह भाग गए. इसके अलावा 45 बच्चे पारिवारिक विवाद, 30 बच्चे बिछड़ गए, 86 बच्चे पढ़ाई के कारण व अन्य बच्चे प्यार व तनाव जैसे कारणों की वजह से भाग गये थे.


उत्तर प्रदेश बाल अधिकारी संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी कहती हैं कि अधिकतर एकल परिवार में माता-पिता दोनों ही नौकरी में रहते हैं, जिस कारण बच्चों को न के बराबर समय दे पाते हैं. ऐसे में बच्चों को न ही वो प्यार मिल पाता है और न ही अपनी बात किसी से कह पाते हैं. जिस कारण वो कहीं और ही प्यार ढूंढने लगते हैं. इसी वजह से नाबालिक बच्चों के पलायन में तेजी आई है.


सुचिता कहती हैं कि बच्चों के पलायन के पीछे के कारणों में कोरोनाकाल में स्कूल बंद होने से बच्चों का रूटीन बिगड़ना, मानसिक कठिनाई के समय में बच्चों को माता-पिता व शिक्षकों का पूरा साथ नहीं मिल पाना, बीमार स्वजन के बारे में लगातार सुनने व करीबी जन की मौत से उत्पन्न असुरक्षा की भावना, शारीरिक सक्रियता में कमी, स्क्रीन पर अधिक समय बिताना व अनियमित नींद, अधिक समय तक का अकेलापन भविष्य की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए खतरा होना खास है.



बाल मनोविज्ञानी डा. अभय सिंह बताते हैं कि कोरोना काल के कारण बच्चे घर पर ही कैद रहे, जिसके कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है. अपने माता-पिता की तरफ से बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया. इस कारण बच्चों की लाइफ स्टाइल में काफी बदलाव आया है. ऐसी स्थिति में बच्चे या तो आत्महत्या या फिर घर से भाग रहे हैं. डॉ अभय कहते हैं कि बच्चों को यह लग रहा है कि उनके जाने से किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. इसके अलावा अपनों को सजा देने के लिए बच्चे घर से भागने जैसा कदम उठा रहे हैं.



मनोचिकित्सक देवाशीष शुक्ला बताते हैं कि अब बच्चों और उनके माता पिता के बीच संवाद नहीं होता है. अभिभावकों की ओर से बच्चों को पढ़ाई के लिए इकतरफा निर्देश मिलता है और यदि बच्चा कुछ कहना चाहे तो उसे डांटकर चुप करा दिया जाता है. अभिभावकों द्वारा बोले जाने वाले आम डायलॉग जैसे बच्चों से कहा जाता है कि अगर वह ठीक से पढ़ नहीं पाता है तो उसका जिन्दा रहने का कोई मतलब नहीं है. ऐसे औलाद से तो औलाद न रहना ही बेहतर है. इन जैसी बातों का कितना बुरा असर बच्चों के मन पर पड़ता है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. बच्चे अभिभावक से अपनी पीड़ा कहें तो पिटाई का अंदेशा रहता है. कुछ अभिभावक तो बच्चों को कमरे में बंदकर खाना पीना रोक देते हैं. इन्हीं वजहों से बच्चे आत्महत्या या फिर घर से भागने जैसे फैसलों को एक पल में लेने से नहीं गुरेज खाते हैं.



मनोचिकित्सक देवाशीष शुक्ला के मुताबिक, माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के साथ तानाशाह नहीं, बल्कि दोस्त की तरह व्यवहार करें. बच्चों के लिए सबसे प्यारा अपना घर होता है. माता-पिता और शिक्षक सोचें कि उनके किस कृत्य से बच्चे खुद को अकेला महसूस करते हैं.

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