बसपा से आए नेताओं के शिकंजे में सपा और कांग्रेस, देखें पूरी खबर. लखनऊ : समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को बहुजन समाज पार्टी से आए नेता चला रहे हैं. इन्हीं नेताओं के शिकंजे में यह दोनों पार्टियां उलझकर रह गई हैं. बहुजन समाज पार्टी के जो भी बड़े नेता रहे वे या तो समाजवादी पार्टी में आ चुके हैं या फिर कांग्रेस पार्टी में. इन नेताओं को दोनों ही पार्टियों ने बड़े ओहदे से नवाजा है. लिहाजा, अब इन्हीं नेताओं की इन पार्टियों में खूब चल रही है. समाजवादी पार्टी की बात करें तो इंद्रजीत सरोज, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर जो चाहते हैं सपा मुखिया अखिलेश वही करते हैं.
लालजी वर्मा का राजनीतिक सफर. स्वामी प्रसाद मौर्य का राजनीतिक सफर. पार्टी के नेताओं का मानना है कि समाजवादी पार्टी के जो नेता बात रखते हैं उस पर अमल ही नहीं होता है जबकि बहुजन समाज पार्टी से आए हुए जो नेता समाजवादी पार्टी में हैं उनकी बात पर तत्काल फैसला हो जाता है. इसी तरह कांग्रेस पार्टी की बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कई प्रांतीय अध्यक्ष बहुजन समाज पार्टी से ही आए हैं और अब सभी फैसले यही करते हैं.चाहे प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी हों, प्रांतीय अध्यक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी हों, नकुल दुबे हों, वीरेंद्र चौधरी हों या फिर प्रांतीय अध्यक्ष अनिल यादव. अब इनके आगे कांग्रेस के पुराने नेताओं की चलती ही नहीं है ज्यादातर मजबूरन पार्टी छोड़ गए हैं या फिर घर पर बैठ गए.
ब्रजलाल खाबरी का राजनीतिक सफर. अपने नेता दूर हो गए, गैर कोहिनूर हो गए : बहुजन समाज पार्टी के विभिन्न नेताओं के समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में आने से सबसे ज्यादा नुकसान पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को ही उठाना पड़ा. बीएसपी से आए इन नेताओं से सपा को भले ही कोई फायदा न हुआ, लेकिन इन नेताओं को बसपा छोड़ने और सपा व कांग्रेस का दामन थामने का भरपूर लाभ मिला. सपा ने तो बसपा के सभी नेताओं को विधायक और एमएलसी के साथ राष्ट्रीय महासचिव की सौगात दे डाली. इन नेताओं में इंद्रजीत सरोज, लालजी वर्मा और राम अचल राजभर शामिल हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य को भी बसपा और भाजपा से होते हुए सपा का सफर तय करने का फायदा मिला. बसपा में रहते नेता विधानमंडल दल के रूप में स्वामी प्रसाद मौर्य ने अखिलेश पर तीखे प्रहार किए थे, लेकिन अखिलेश ने बसपा वाले मौर्य से कोई गिला शिकवा करने के बजाय इतना सम्मान दिया जितना स्वामी प्रसाद मौर्य को भी शायद उम्मीद नहीं होगी. हालांकि इन सभी नेताओं के समाजवादी पार्टी में आने के बाद अखिलेश यादव के जो नवरत्न कहे जाते थे वही दूर हो गए. यही नेता अब अखिलेश के कोहिनूर हो गए हैं. सपा के नेता सामने न सही, लेकिन इन नेताओं की अखिलेश से करीबी से खासे परेशान हैं. एक विधायक तो यहां तक कहते हैं कि सपा के नेता अगर सपा मुखिया को कोई सलाह दें तो यह जरूरी नहीं कि मानी जाए, लेकिन बाहर से आए ये नेता कोई भी काम बता दें या सलाह दे दें, उसे सपा मुखिया जरूर मानते हैं.
अनिल यादव का राजनीतिक सफर. राम अचल राजभर का राजनीतिक सफर. अपनों पे सितम गैरों पे करम : बहुजन समाज पार्टी से कांग्रेस में जितने भी नेता आए वे इतना सम्मान पाए जिसकी उन्होंने सपने में भी कल्पना नहीं की थी. बसपा से सांसद रहे बृजलाल खाबरी को पार्टी ने उत्तर प्रदेश जैसे राज्य की कुर्सी थमा दी. बसपा सरकार में मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और नकुल दुबे को प्रांतीय अध्यक्ष का तोहफा दे दिया. बसपा से कांग्रेस में आए वीरेंद्र चौधरी और अनिल यादव को भी प्रांतीय अध्यक्ष बना दिया. इन सभी नेताओं में सिर्फ वीरेंद्र चौधरी एकमात्र ऐसे प्रांतीय अध्यक्ष हैं जो विधायक भी हैं. इन नेताओं ने पूरी कांग्रेस पार्टी कैप्चर कर ली. आलम यह है कि कांग्रेस पार्टी में कांग्रेसियों की ही सुनवाई नहीं होती. सैकड़ों नेता और हजारों कार्यकर्ता पार्टी छोड़ने को विवश हो चुके हैं. इस बार तो निकाय चुनाव में भी ऐसे आरोप लगे कि बसपा के माइंड सेट वाले इन नेताओं ने टिकट भी बेच डाले. पार्टी की स्थिति इतनी बदतर हो गई कि अब पार्टी का यूपी में भविष्य ही नजर नहीं आ रहा.
नसीमुद्दीन सिद्दीकी का राजनीतिक सफर. वीरेंद्र चौधरी : वर्तमान में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की बात करें तो पार्टी के सिर्फ दो ही विधायक हैं. उनमें से एक है वीरेंद्र चौधरी. विधायक बनने का ही प्रतिफल उन्हें प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में पार्टी से मिला. वीरेंद्र चौधरी भी विशुद्ध कांग्रेसी नहीं रहे. उनका भी ताल्लुक बहुजन समाज पार्टी से रहा है. वीरेंद्र चौधरी तीन बार बसपा से और दो बार कांग्रेस से चुनाव लड़ चुके हैं. हाथी पर सवार होकर वे कामयाब नहीं हुए, लेकिन हाथ ने उनका साथ दिया और वह सदन पहुंचने में सफल हुए. फरेंदा विधानसभा सीट से विधायक बने और पार्टी ने उन्हें प्रांतीय अध्यक्ष बना दिया.
इंद्रजीत सरोज का राजनीतिक सफर. नकुल दुबे का राजनीतिक सफर. राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है कि निश्चित तौर पर बहुजन समाज पार्टी में जो कद्दावर नेता थे उनके जाने से बीएसपी की हालत खस्ता हो गई है, लेकिन जिन पार्टियों में यह नेता गए उनकी भी स्थिति अच्छी नहीं हो पाई. चाहे फिर समाजवादी पार्टी हो या फिर कांग्रेस. दोनों ही पार्टियों को चुनाव में इन नेताओं का कोई फायदा नहीं मिला. सपा और कांग्रेस का न तो बसपा के इन नेताओं के जाने से जनाधार ही बढ़ा और न ही सीटें बढ़ीं. हां, यह जरूर हुआ कि इन दोनों पार्टियों में गए बसपा नेताओं को भरपूर फायदा मिला. इसका नुकसान इन पार्टियों के समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं को उठाना पड़ा. निश्चित तौर पर यह कहना गलत नहीं है कि अब यही नेता जो कभी बसपा में रणनीति बनाने थे थे आज सपा और कांग्रेस में स्ट्रेटजी प्लान करते हैं. हालांकि किसी का भी कोई असर जमीन पर नजर नहीं आता. बहुजन समाज पार्टी के नेताओं की तो जिस तरह की संस्कृति रही है उससे इस बार तो इन दोनों पार्टियों में विधानसभा चुनाव से लेकर निकाय चुनाव तक में टिकट बेचने के आरोप लगे. निश्चित तौर पर बसपा से इन नेताओं के चलते समाजवादी पार्टी के नेताओं और कांग्रेस के नेताओं को नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि अब सपा और कांग्रेस में अपनों की नहीं गैर पार्टियों से आए गैर नेताओं की चलती है.
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