लखनऊ: कोरोना से संक्रमित हो जाने के कारण जिंदगी और मौत से जंग लड़ते हुए राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह की मृत्यु हो गई. पिता के निधन ने बेटे जयंत चौधरी को तोड़कर रख दिया था. पिता का साया सिर से छिन गया और सामने तमाम जिम्मेदारियां थीं. सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी कि किस तरह पिता की विरासत को संभाल कर रखा जाए. कैसे पार्टी को आगे बढ़ाया जाए और संगठन को मजबूत किया जाए. सिर पर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 और उसे पहली बार पिता की उपस्थिति के बिना ही लड़ना.
जयंत चौधरी के सामने चुनौतियां तो तमाम थीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत बिल्कुल भी नहीं हारी. पार्टी के नेताओं ने उन पर विश्वास जताया और पिछले साल 25 मई को जयंत चौधरी को राष्ट्रीय लोक दल का अध्यक्ष चुन लिया. अध्यक्ष के रूप में आज उनका एक साल का कार्यकाल पूरा हुआ है. इस एक साल के दौरान उनके निर्णयों में कितनी परिपक्वता दिखी? चुनाव में सपा से गठबंधन और भाजपा से किनारा कर लेने की रणनीति कितनी काम आई? पिता और पुत्र की कार्यशैली में किस तरह का अंतर दिखता है? इस पर ईटीवी भारत ने रिपोर्ट तैयार की.
राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में जयंत ने छाप छोड़ी है. अपने दादा और पिता की ही तरह किसानों पर अपना प्रभाव छोड़ने में भी जयंत कामयाब हुए हैं. अध्यक्ष पद का कार्यकाल संभालने के बाद किसानों के बीच उनकी आवाज बनने उनके बीच पहुंचे. कई महापंचायतों में उन्होंने हिस्सा लिया. राष्ट्रीय लोकदल जिसकी पहचान ही किसानों से होती है, जो भी किसान पार्टी से छिटक रहे थे उन्हें फिर से किसान आंदोलन और महापंचायत के जरिए जयंत ने रालोद के साथ जोड़ने का काम किया. किसानों पर जयंत के असर का ही नतीजा था कि महापंचायत के दौरान ही उन्हें पगड़ी पहनाई गई और 'चौधरी' की उपाधि दी गई. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले जयंत चौधरी 'चौधरी जयंत सिंह' हो गए. अपने दादा और पिता की तरह अब अपने नाम में जयंत चौधरी लगाने लगे और वे अब चौधरी जयंत सिंह कहलाने लगे.
किसानों पर चला जयंत का जादू
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान सड़कों पर उतरकर केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे. अध्यक्ष के रूप में चौधरी जयंत सिंह के लिए यह सुनहरा मौका था कि वे किसानों की आवाज बनें और वेंटिलेटर पर पहुंच चुकी राष्ट्रीय लोकदल को आंदोलन से ऑक्सीजन मिल सके, जिससे फिर से पार्टी जिंदा हो जाए. जयंत ने किसानों के बीच जाकर केंद्र सरकार को घेरा, उनकी आवाज बने, उनके कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़े. किसानों को जयंत चौधरी में दादा चौधरी चरण सिंह और पिता चौधरी अजीत सिंह की झलक नजर आई. उन्होंने फैसला लिया कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार किसान एकजुट होकर रालोद के साथ खड़े होंगे. किसानों पर जयंत का जादू चल गया और पार्टी फिर से उठ खड़ी हुई.
अखिलेश के साथ बनाई जोड़ी
अध्यक्ष के रूप में चौधरी जयंत सिंह की उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अग्निपरीक्षा थी. जयंत पहले ही कह चुके थे कि उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के साथ मिलकर लड़ेंगे. लेकिन, विभिन्न विपक्षी दलों के नेता आखिर तक यही कहते रहे कि जब तक जयंत अखिलेश से गठबंधन नहीं कर लेते, तब तक उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. कभी भी पलट सकते हैं और समाजवादी पार्टी के बजाय किसी अन्य दल से भी जहां उनका फायदा हो, गठबंधन कर सकते हैं. लेकिन, जयंत के फैसले में परिपक्वता नजर आई. उन्होंने 'जो कहा सो किया' वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया. अखिलेश के साथ विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया. उनके साथ कदमताल करते हुए विधानसभा चुनाव लड़ा. अखिलेश और जयंत एक ही रथ पर सवार होकर जनता के बीच गए और अपना जादू छोड़ने में सफल भी हुए.
33 सीटों पर लड़ा चुनाव, आठ पर हासिल की जीत
समाजवादी पार्टी से गठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया चौधरी जयंत सिंह को 33 सीटें मिलीं. इन सीटों पर उन्होंने अपनी पार्टी के प्रत्याशी उतारे. आठ सीटों पर राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल होकर विधानसभा पहुंचे. जिस पार्टी के पास एक भी विधायक नहीं बचा था उसके वर्तमान में आठ विधायक हो गए हैं. एक बार फिर रसातल में जा रही राष्ट्रीय लोक दल को जयंत चौधरी ने संजीवनी दिलाने का काम किया. अखिलेश के साथ गठबंधन का उनका फैसला कुल मिलाकर सही साबित हुआ. राजनीति के जानकार कहते हैं कि उनका यह फैसला उनकी परिपक्वता को दर्शाता है.