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हिन्दी दिवस: भाषा अगर मां है तो मौसी हैं बोलियां - प्रमुख बोलियां छत्तीसगढ़

हिंदी दिवस के मौके पर देखिए ईटीवी भारत की खास पेशकश. कैसे भाषा और बोलियों के जुड़े है तार, कैसे बोलियों से बना भाषा का आकार.

बोलियों से बना भाषा का आकार.

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Published : Sep 14, 2019, 9:07 AM IST

रायपुर : हिन्दी दिवस हर साल 14 सितम्बर को मनाया जाता है. 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह फैसला लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी. इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राजभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. भाषा और बोली ही भारत को एक-दूसरे से बांधे रखती हैं. कहते हैं भाषा मां है तो बोली मौसी.

बोलियों से बना भाषा का आकार.

इस रिश्ते के बारे में क्या कहते हैं भाषाविद चितरंजन कर-
जब भाषा को शब्दों की कमी पड़ती है तो उसे नए शब्द लेने पड़ते हैं तो वह बोलियों के पास जाती हैं और उनसे शब्द उधार लेती हैं. ये कहना है हिंदी के जाने-माने साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का. वे कहते हैं कि, 'हिंदी इतनी समृद्धता और विविधता लिए हुए है तो इसके पीछे कहीं न कहीं अपनी बहनों जिसे हम बोलियां कहते हैं, उन्हीं की बदौलत.'

विनोद कुमार शुक्ल कहते हैं कि, 'अलग-अलग क्षेत्रों में हमारे यहां कई तरह की बोलियां मौजूद हैं. इनमें अवधी, भोजपुरी, ब्रज, छत्तीसगढ़ी, बुदेली, बघेली, मालवी, मेवाती, पहाड़ी जैसी कई बोलियां हैं. ये सभी हिंदी पट्टी में बोली जाने वाली प्रमुख बोलियां हैं. इन्हीं बोलियां की बदौलत हिंदी के पास समृद्ध भाषा कोष है. हिंदी को समझने वालों की तादाद बढ़ती है.'

हिंदी पर बोलियों का असर
हिंदी बोलने वाले अलग-अलग राज्यों में इसके बोलने के ढंग में काफी अंतर देखने को मिलता है. दरअसल ये अंतर किसी क्षेत्र विशेष में बोले जानी वाली बोलियों के चलते बनता है. भाषाविद् भी मानते हैं कि पहले बोलियों का जन्म हुआ फिर भाषा ने एक आकार लिया. बोलियां सहज हैं, भाषा उसका परिस्कृत रूप है. ये हिंदी का सौभाग्य है कि उसके पास उसे समृद्ध करने वाली बोलियों का बड़ा समूह मौजूद है. ये सहूलियत दुनिया में किसी और भाषा के पास नहीं.

हिंदी पर बोलियों ही नहीं अन्य भाषाओं का भी असर
हिंदी एक ऐसी भाषा है जिस पर कई अन्य भाषाओं की परछाई साफतौर पर नजर आती है. खासतौर पर संस्कृत. कुछ जानकार तो इसे संस्कृत की बेटी भी कहते हैं. इसके अलावा फारसी, पाली, प्राकृत अरबी, पुर्तगाली, अंग्रेजी सभी का प्रभाव इस पर नजर आता है.

पश्चिम के एक भाषाविद ने कहा है कि 'भाषा का शुक्रिया जिसने हमें इंसान बनाया'. दुनिया में सिर्फ मनुष्यों के पास ही भाषा के द्वारा खुद को व्यक्त करने की क्षमता है. और हम खुद को अपनी हिंदी मां के जरिए अभिव्यक्त कर रहे है…और इसमें स्थानीय बोलियों का भी बड़ा योगदान है.

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