लखनऊ:देश में कोरोना है और हमारे देश के डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टॉफ उससे जंग लड़ रहे हैं. पीटीई किट पहनकर लगातार सात दिनों तक आठ घंटे या उससे ज्यादा समय तक की ड्यूटी करना पड़ रहा है. इतना ही नहीं उसके बाद क्वारंटाइन होकर 14 दिनों के लिए अपने परिवार और बाहर की दुनिया से अलग हो जाना. उसके बाद फिर से नए जोश के साथ वापस उसी काम पर लौटना यह वाकई काबिले तारीफ है.
कोरोना योद्धाओं ने साझा किए अपने अनुभव
डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टॉफ के लोग कई कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों को ठीक कर उनको घर भेज चुके हैं. वहीं कुछ डॉक्टर खुद भी इस खतरनाक वायरस का शिकार हो गए, लेकिन इनका जोश कम होने के बजाय और बढ़ता चला जा रहा है. कुछ ऐसे ही कोरोना योद्धाओं से ईटीवी भारत ने बात कर कोरोना से लड़ाई में उनके अनुभवों को जाना.
इस जंग का अंजाम है भयानक
राजधानी लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में बनाए गए कोविड-19 सेंटर में पैरामेडिकल स्टाफ के रूप में कंचन और नीरज सिंह कार्यरत हैं. इन्होंने अपनी ड्यूटी और क्वारंटाइन समय की यादें ईटीवी भारत से साझा की. इनका कहना है कि जब यह महामारी धीरे-धीरे फैल रही थी तो इन्हें आभास हो गया था कि वह किस जंग में शरीक होने जा रही हैं और इसका अंजाम क्या हो सकता है.
पीपीई किट पहनकर काम करने में होती है परेशानी
कोविड-19 हॉस्पिटल में स्टाफ नर्स के रूप में कार्यरत कंचन ने बताया कि सबसे ज्यादा परेशानी पीपीई किट पहनकर काम करने में है. इसे पहनने में 45 मिनट लग जाते हैं और उतारने में भी इतना ही समय लगता है. इस दौरान वह कुछ भी खा-पी न सकते हैं. पीपीई किट पहनने से करीब एक घंटे पहले खाना-पीना सब छोड़ देना पड़ता है. इसे पहनकर आठ घंटे की ड्यूटी करना काफी मुश्किल है. इस दौरान सही से सांस भी नहीं ले सकते हैं.