लखनऊ : उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री भले ही हड़ताल में शामिल अधिकारियों और कर्मचारियों को पाताल से खोदकर कार्रवाई करने की बात कह रहे हों, लेकिन उनकी धमकी का असर फिलहाल हड़ताली बिजलीकर्मियों पर पड़ता बिल्कुल नजर नहीं आ रहा है. कर्मचारियों पर एफआईआर और उनकी संविदा समाप्त करने का डर भी हड़ताल कर रहे कर्मचारियों पर नहीं दिख रहा है. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आवाहन पर 20 बिजली के संगठन हड़ताल पर हैं और लगभग एक लाख कर्मचारी काम से गायब हैं. हड़ताल का असर साफ तौर पर लखनऊ समेत परदेश भर की जनता पर पड़ता नजर आ रहा है. प्रदेश के तमाम इलाकों में कई कई घंटे बिजली गुल है.
गुरुवार रात बिजली विभाग के कर्मचारी 3 दिसंबर 2022 का समझौता ना लागू करने को लेकर नाराजगी जाहिर करते हुए हड़ताल पर चले गए. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले 20 बिजली संगठनों ने हड़ताल का समर्थन किया. वहीं कुछ संगठनों ने हड़ताल से दूर रहकर उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और पाॅवर काॅरपोरेशन प्रबंधन को भरोसा दिलाया कि वह बिजली आपूर्ति को बहाल रखने में पूरा सहयोग करेंगे. बड़े संगठनों पर भरोसा न करके छोटे संगठनों पर विश्वास करना उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और पाॅवर काॅरपोरेशन प्रबंधन को भारी पड़ गया है. प्रदेश भर में जबरदस्त बिजली संकट पैदा हो गया है. उत्पादन इकाइयों से बिजली उत्पादन ठप होने से बिजली आपूर्ति व्यवस्था चरमरा रही है. मध्यांचल, पूर्वांचल, पश्चिमांचल, दक्षिणांचल और केस्को में बिजली को लेकर बवाल मचा है. कानपुर और गोरखपुर इंडस्ट्रियल इलाकों में भी बिजली बाधित है. इसके चलते व्यापारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
हाईकोर्ट और ऊर्जा मंत्री का भय नहीं : 23 साल बाद उत्तर प्रदेश में हो रही हड़ताल का असर साफ तौर पर प्रदेश की जनता पर पड़ रहा है. हड़ताल कर रहे बिजली कर्मचारियों को हाईकोर्ट ने लताड़ लगाई है. हाईकोर्ट ने विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे समेत कई नेताओं को सोमवार को कोर्ट में तलब किया है. वहीं ऊर्जा मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एस्मा के तहत कार्रवाई करने, रासुका लगाने और हड़ताल में शामिल कर्मचारियों को पाताल से खोदकर कार्रवाई करने तक की धमकी दी है. इसके बावजूद कर्मचारियों पर असर नहीं दिख रहा है. बिजली कर्मचारियों ने अपने मोबाइल फोन स्विच ऑफ कर लिए हैं और अपने को काम से पूरी तरह अलग कर रखा है. यही वजह है बिजली आपूर्ति दुरुस्त रख पाना ऊर्जा मंत्री और पावर कारपोरेशन प्रबंधन के वश से बाहर हो गया है.