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चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर निजीकरण के खिलाफ कर्मचारियों ने किया क्रांति का आह्वान

भारतीय नागरिक परिषद ने 27 फरवरी को अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर सार्वजनिक क्षेत्र को बचाने का संकल्प लिया. संगोष्ठी में मुख्य वक्ता ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे, भारतीय नागरिक परिषद के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश अग्निहोत्री, न्यासी रमाकांत दुबे, महामंत्री रीना त्रिपाठी और वरिष्ठ ट्रेड यूनियन पदाधिकारियों में शिव गोपाल मिश्रा ने संबोधित करते हुए देश के विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डाला.

कर्मचारियों ने किया क्रांति का आह्वान.
कर्मचारियों ने किया क्रांति का आह्वान.

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Published : Feb 28, 2021, 7:17 AM IST

लखनऊ:भारतीय नागरिक परिषद ने 27 फरवरी को अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर सार्वजनिक क्षेत्र को बचाने का संकल्प लिया. 'शहीदों के सपनों का भारत-सार्वजनिक क्षेत्र साधक या बाधक' संगोष्ठी में मुख्य वक्ता ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे, भारतीय नागरिक परिषद के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश अग्निहोत्री, न्यासी रमाकांत दुबे, महामंत्री रीना त्रिपाठी और वरिष्ठ ट्रेड यूनियन पदाधिकारियों में शिव गोपाल मिश्रा ने संबोधित करते हुए देश के विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डाला.

चंद्र शेखर आजाद की विचारधारा के खिलाफ काम कर रही है केंद्र सरकार
मुख्य वक्ता शैलेंद्र दुबे ने बताया कि चंद्रशेखर आजाद का व्यक्तित्व काकोरी क्रांति के 4 शहीदों राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह और शहीद ए आजम भगत सिंह के साथ इतना जुड़ा हुआ है कि इन सभी की जीवनी में चंद्रशेखर आजाद की जीवनी स्वतः आ जाती है. चंद्रशेखर आजाद को उन थोड़े से महान क्रांतिकारियों में गिना जा सकता है जो बहुत अच्छे संगठन कर्ता होने के साथ त्याग की भावना से पूर्ण रूप से परिचालित होते थे. यह एक आश्चर्य की बात है कि अपने त्याग और निष्ठा की बदौलत वे किस प्रकार भगत सिंह, भगवानदास माहौर, वैशंपायन, भगवती चरण वोहरा और विजय कुमार सिन्हा विद्वान क्रांतिकारियों पर नेतृत्व करते थे. जबकि वे स्वयं बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे. उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि चंद्रशेखर आजाद ने अपने कर्म से या विचारों से कभी भी ऐसी कोई बात नहीं की. जिससे क्रांतिकारी आंदोलन पर कोई बट्टा लग सके. इस कसौटी पर बहुत कम क्रांतिकारी खरे उतरते हैं. आज चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर जब हम क्रांतिकारियों के और शहीदों के सपनों की बात करते हैं तो स्वाभाविक तौर पर क्रांतिकारियों ने ऐसे भारत का सपना देखा था जिसमें सामाजिक आर्थिक विषमता समाप्त हो सक. मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण न हो और योग्यता के आधार पर सब को आगे बढ़ने का समान अवसर मिल सके. किंतु आज परिस्थितियां इसके विपरीत दिख रही हैं. जनता की गाढ़ी कमाई से बनाई गई अरबों खरबों रुपए की सार्वजनिक क्षेत्र की परिसंपत्तियां कौड़ियों के दाम निजी घरानों को सौंपने की तैयारी हो रही है.

निजीकरण आने से जनता में बढ़ेगी असुरक्षा और उपक्रमों प्रति खत्म होगा भरोसा
वक्ताओं ने सार्वजनिक क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज जीवन की बुनियादी जरूरत शिक्षा, चिकित्सा, जल, बिजली, परिवहन, रेल आदि के निजीकरण की दलीलें दी जा रही है. आम भारतीयों को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने तमाम बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई है. आज अगर देश में हर गांव और हर घर तक बिजली पहुंचाने का दावा किया जा रहा है तो यह सार्वजनिक क्षेत्र ने ही किया है. बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद आम आदमी को अपनी जरूरत के लिए और लघु उद्योगों के लिए आसानी से कर्ज मिलना प्रारंभ हुआ. आज सरकारी क्षेत्र के बैंकों को निजी घरानों को सौंपने का निर्णय लिया गया है. जिससे बैंकों तक आम जनता की पहुंच समाप्त होने का खतरा है. वक्ताओं ने कहा कि निजी करण से राष्ट्र की सुरक्षा को भी खतरा है. बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन और भारत अर्थ मूवर्स की 4000 किलोमीटर से अधिक सीमा पर बड़ी भूमिका रही है. अब निजी करण के बाद सीमा पर सुरक्षा का खतरा उत्पन्न हो सकता है. सार्वजनिक क्षेत्र ने ही तेजस एयरक्राफ्ट और ब्रह्मोस मिसाइल दिए. सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका समाप्त होते ही मुनाफे का दौर शुरू हो जाएगा और जीवन की बुनियादी जरूरत आम जनता से दूर होती जाएंगी.

संगोष्ठी में यह संकल्प लिया गया की राष्ट्रहित में सार्वजनिक क्षेत्र को बचाने के लिए सभी सेक्टर के कर्मचारियों को लामबंद होकर एक जुटता दिखानी होगी. संगोष्ठी में बड़ी संख्या में कर्मचारियों, मजदूरों, शिक्षकों और बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया. केंद्र सरकार से मांग की गई कि सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण की नीति वापस ली जानी चाहिए.

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