लखनऊ: भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) रिपोर्ट में करोड़ों रुपये के सरकारी धन के गबन व नुकसान के मामले का खुलासा हुआ है. इसमें विकास प्राधिकरणों, जल निगम, आवास विकास जैसे महत्वपूर्ण विभागों में मनमाने तरीके से भुगतान करने का मामला उजागर हुआ है.
विधानसभा के पटल पर रखी गई कैग रिपोर्ट में 930.78 करोड़ रुपये के सरकारी धन के गबन व नुकसान के कुल 135 मामलों को निपटाने की प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किया गया है. इन मामलों पर 31 मार्च 2019 तक अंतिम कार्यवाही लंबित थी. 135 मामलों में से 101 मामलों में एफआईआर दर्ज है. 72 मामलों में जांच शुरू हुई, लेकिन उन्हें अंतिम रूप नहीं दिया जा सका.
नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) ने उत्तर प्रदेश में विकास प्राधिकरण की मनमानी पर भी सवाल खड़े किए हैं. कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि मेरठ विकास प्राधिकरण ने 17 भूखंडों के आवंटन में मनमानी की है, जिनमें नौ व्यावसायिक और आठ आवासीय भूखंड हैं. प्राधिकरण को इससे 14.28 करोड़ रुपये की आय हुई, लेकिन 10 प्रतिशत की दर से अवस्थापना अधिभार नहीं लगाया गया. इससे प्राधिकरण को 9.43 करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ है.
लखनऊ विकास प्राधिकरण ने विभिन्न योजनाओं में 13 व्यवसायिक भूखंडों को 94.28 करोड़ रुपये में बेचा. इन पर भी 9.43 करोड़ रुपये अवस्थापाना अधिकार नहीं लगाया गया. इसी तरह प्राधिकरण ने अवसंरचना सुविधाओं के विकास के लिए 70.51 करोड़ रुपये की वसूली नहीं की. इस प्रकार गाजियाबाद प्राधिकरण में भी मनमानी किये जाने का प्रकरण उठाया गया है.
नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने जल निगम की मनमानी पर भी सवाल खड़े किए हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि मनमाने तरीके से भुगतान होता रहा और अधिकारियों ने इस पर रोक नहीं लगाई. जल निगम बिजनौर में सीवरेज योजना काम के लिए अतिरिक्त मदों का भुगतान उच्च दरों पर किया गया. इससे 4.05 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इसी तरह बांदा में ठेकेदार को 4.09 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाने का खुलासा किया गया है.
आवास विकास परिषद में अधिकारियों की घोर लापरवाही सामने आई है. आवास विकास परिषद की लापरवाही की वजह से गाजियाबाद में परियोजना में देरी हुई, इससे 11.38 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति देनी पड़ी. इस पर भी कैग ने आपत्ति जताई है. बड़ा सवाल यह है कि इसके बाद भी दोषी अधिकारियों की इस मामले में जिम्मेदारी नहीं तय की गई. इसी तरह भूखंडों की नीलामी के लिए आरक्षित मूल्य के गलत निर्धारण के लिए परिषद को दो करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है.