लखनऊ : राजधानी लखनऊ में प्रशासन जाम की समस्या से जूझ रहा है. ऐसा नहीं की प्रशासनिक स्तर पर जाम से निपटने के लिए प्रयास नहीं होते हैं. समय-समय पर प्रशासन जाम से निजात दिलाने के लिए योजनाएं बनाता है, उन पर क्रियान्वयन करने का प्रयास भी करता है, किंतु उसे सफलता नहीं मिल पाती. इस असफलता के पीछे सबसे बड़ा कारण है इच्छाशक्ति की कमी और अतिक्रमण कारियों को वोट बैंक के रूप में देखना. राजधानी के ज्यादातर प्रतिष्ठित और नामचीन विद्यालय हजरतगंज और उसके आस-पास ही स्थित हैं. इन विद्यालयों में ज्यादातर नौकरशाहों, बड़े उद्यमियों और नौकरी पेशा लोगों के बच्चे पढ़ते हैं. छुट्टी के वक्त विद्यालयों के बाहर कारों और निजी वाहनों की लंबी कतारें लग जाती हैं, जिनसे हार्ट ऑफ द सिटी हजरतगंज का इलाका पूरी तरह चोक हो जाता है. शहर के अन्य भागों में आधी सड़कें अतिक्रमणकारियों की गिरफ्त में हैं. हालांकि इस ओर प्रशासन शायद ही कभी ध्यान देता हो. यही कारण है कि शहर जाम और अव्यवस्थित यातायात का खामियाजा भुगतने को मजबूर है.
शहर की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है. लगभग 55 लाख की आबादी वाले राजधानी लखनऊ में लगातार वाहनों का दबाव भी बढ़ता जा रहा है. इसके विपरीत सड़क के अतिक्रमणकारियों की चपेट में है और वह चौड़ी होने के बजाय दिन के व्यस्ततम समय में सिकुड़ जाती हैं. सरकारी तंत्र अतिक्रमण हटाकर बड़ा बवाल मोल नहीं लेना चाहता. राजनीतिक नेतृत्व को अतिक्रमणकारी वोट बैंक दिखाई देते हैं. उन्हें लगता है कि अतिक्रमणकारियों पर कार्रवाई से उनका वोट बैंक प्रभावित होगा. स्वाभाविक है कि वोट की राजनीति करने वाला कोई भी व्यक्ति यह संकट मोल नहीं लेना चाहेगा. यही कारण है कि दशकों से अतिक्रमण कारी बेखौफ रूप से सड़कों पर अपना कारोबार करते हैं और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं. अमीनाबाद, लालबाग, चौक, हजरतगंज, लाटूश रोड, सीतापुर रोड सहित शहर के सभी हाईवे बुरी तरह अतिक्रमण ग्रस्त हैं. तमाम पुलों और राजमार्गों पर सब्जी मंडी आ सकती हैं पर मजाल है कि पुलिस अथवा प्रशासनिक अधिकारियों को यह दिखाई देता हो. तमाम अवैध सब्जी मंडियां और अस्थाई दुकानदार पुलिस के लिए 'साधन' बन गए हैं. सीतापुर रोड पर फल मंडी के पास पुलिस चौकी के सामने और आसपास आधे से ज्यादा सड़क पर सुबह 6:00 बजे से देर रात तक फल मंडी गुलजार रहती है, पर मजाल है कि कभी पुलिस ने इसे हटाने का प्रयास किया हो. इस जाम में बच्चों, बुजुर्गों और रोगियों को असहाय रूप से फंसा देख कर भी पुलिस कर्मियों का दिल नहीं पसीजता.