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ED की बड़ी कार्रवाई, कानपुर के हीरा कारोबारी की 185 करोड़ की संपत्ति जब्त

ईडी ने कानपुर के हीरा कारोबारी व उसकी सहयोगी कंपनियों पर बड़ी कार्रवाई की है. यह कार्रवाई बैंक फ्रॉड मामले में की गई है. कार्रवाई करते हुए ईडी ने हीरा कारोबारी व उसकी सहयोगी कंपनियों की 185 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की हैं.

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Published : Jul 1, 2021, 9:34 AM IST

ED की बड़ी कार्रवाई
ED की बड़ी कार्रवाई

लखनऊ:प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) यानी ईडी(ED) ने बैंक फ्रॉड मामले में कानपुर के हीरा कारोबारी व उसकी सहयोगी कंपनियों पर बड़ी कार्रवाई की है. ईडी ने कानपुर के हीरा कारोबारी व उसकी सहयोगी कंपनियों की 185 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त कर ली हैं. यह कार्रवाई ईडी के लखनऊ स्थित जोनल कार्यालय की टीम ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रि‍ंग एक्ट के तहत की है.

ED ने की बड़ी कार्रवाई
ईडी के मुताबिक, यह कार्रवाई कानपुर के हीरा कारोबारी उदय देसाई व फ्रास्ट इंटरनेशनल लिमिटेड तथा अन्य सहयोगी कंपनियों के विरुद्ध की गई है. उदय देसाई, उनके बेटे सुजाय देसाई व उनकी कंपनियों के खिलाफ बैंकों की शिकायत पर CBI ने पिछले वर्ष जनवरी माह में बैंक फ्रॉड का केस दर्ज किया था और कई स्थानों पर छापेमारी भी की थी. जिसमें बैंक के करीब 3,635 करोड़ रुपये हड़पने की बात सामने आई थी. ईडी ने हीरा कारोबार के अलावा अन्य व्यवसाय करने वाली फ्रास्ट इंटरनेशनल व उसकी सहयोगी कंपनियों की जांच में पाया कि इन कंपनियों ने रियल एस्टेट में भी बड़े पैमाने पर निवेश किया है. इन कंपनियों ने बैंकों से मिली रकम को हड़पने के लिए मनी लांड्रि‍ंग की. ईडी ने इस मामले में CBI की FIR को आधार बनाकर अपनी जांच शुरू की थी.


28 सम्पतियों को किया अटैच

ED ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 128 करोड़ कीमत की 28 संपत्तियों को अटैच किया. इनमें फ्रास्ट इंटरनेशनल लिमिटेड, ग्लोबिज एग्जिम प्राइवेट लिमिटेड, एनएसडी निर्माण प्राइवेट लिमिटेड व आरएस बिल्डर्स की कानपुर, दिल्ली, गुरुग्राम, मुंबई, कोलकता व तमिलनाडु स्थित बड़ी कंपनियां शामिल थी. ED ने हीरा कारोबार के अलावा अन्य व्यवसाय करने वाली फ्रास्ट इंटरनेशनल व उसकी सहयोगी कंपनियों की जांच में पाया कि इन कंपनियों ने रियल एस्टेट में भी बड़े पैमाने पर निवेश किया है. जांच में यह भी सामने आया कि इन कंपनियों ने बैंकों से मिली रकम को हड़पने के लिए मनी लांड्रि‍ंग की. बैंकों को धोखा देने के लिए रकम को दूसरी कंपनियों में डायवर्ट किया गया और उनसे बेशकीमती संपत्तियां खरीदी गईं.

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