लखनऊ:नवाबों के शहर में 1839 में बना हुसैनाबाद ट्रस्ट पिछले 180 सालों से मोहर्रम में नवाबों के वंशजों को शाही तबर्रुक रिवायत के मुताबिक बांट रहा है. वहीं दिन-ब-दिन मोहर्रम के तबर्रुक की खराब क्वालिटी को लेकर नवाबों के वारिसों में नाराजगी है.
ट्रस्ट से भेजे जा रहे तबर्रुक से नवाबीन-ए-अवध नाराज-
हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से मोहर्रम में दिए जाने वाले तबर्रुक से इस बार नवाबीन-ए-अवध काफी नाराज दिख रहे हैं. अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह की वारिस प्रिन्सेस फरहाना मलिकी और नवाबीन-ए-अवध निगहत काजिम का कहना है कि 1839 में हुसैनाबाद ट्रस्ट इसलिए कायम किया गया था कि नवाबों के वारिसों को कोई परेशानी न हो. ट्रस्ट की ओर से शाही तबर्रुक की जो रिवायत चली आ रही है उसमें भी ट्रस्ट बड़ी लापरवाही कर रहा है. उन्होंने कहा कि मोहर्रम के दौरान मिलने वाले शाही तबर्रुक खाने लायक नहीं होता है.