लखनऊ: कोरोना काल में देशभर में ऑक्सीजन को लेकर मारामारी है. कई गुना कीमत पर लोग ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने को मजबूर हैं. इसके बावजूद मरीजों की जिंदगी दांव पर है. उनकी हालत बिगड़ती जा रही है. ऐसे में कोरोना के लक्षण दिखने पर शुरुआती दिनों में ध्यान देने से न सिर्फ ऑक्सीजन सिलेंडर की खरीद से छुट्टी मिल सकती है, बल्कि अस्पताल के बजाय घर पर ही वायरस को मात दी जा सकती है. इस घातक वायरस से निजात पाने के लिए केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ वेद प्रकाश ने अहम सुझाव दिए हैं.
लक्षण दिखे तो लें दवा, सातवें दिन कराएं सीटी स्कैन
डॉ वेद प्रकाश के मुताबिक, कोरोना के कोई भी लक्षण होने पर खुद को तत्काल आइसोलेट कर लें. सरकार द्वारा तय की गई होम आइसोलेशन की दवाओं को तत्काल शुरू कर दें. रिपोर्ट का इंतजार कर वायरस को पनपने का मौका न दें. इसकी गाइडलाइन भी स्वास्थ्य विभाग ने जारी कर दी है. डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि पहले सप्ताह वायरस तेजी से शरीर में बढ़ता है. दूसरे सप्ताह में निमोनिया शुरू होता है, ऐसे में 7 से 9 दिन पर सीटी स्कैन कराकर फेफड़े में शुरुआती दौर में संक्रमण को पकड़ें. यदि सांस पहले ही फूलने लगो तो पूर्व में भी सीटी स्कैन करा सकते हैं. ऐसा करने पर ऑक्सीजन सपोर्ट के खतरे को टाला जा सकता है.
डाउन ऑक्सीजन ऐसे करें अप
डॉ वेद प्रकाश के मुताबिक, होम आइसोलेशन के मरीज ऑक्सीजन लेवल मापते रहें. जिन मरीजों का ऑक्सीजन लेवल 94 और उसके ऊपर है, उन्हें होम आइसोलेशन की तय दवा में आइवरमेक्टिन और डॉक्सीसाइक्लिन की भी डोज दी जाए. वहीं ऐसे मरीज जिनका ऑक्सीजन लेवल 94 और 90 के बीच है, वे आइवरमेक्टिन और डॉक्सीसाइक्लिन के साथ स्टेरॉयड डेक्सामेथासोन, मिथाइल प्रेडनीसोलोन में से कोई डॉक्टर की सलाह लेकर घर पर ही हाई डोज ले. ऐसा करने पर निमोनिया के प्रकोप को रोका जा सकता है. लिहाजा मरीज को ऑक्सीजन सपोर्ट का सहारा नहीं लेना होगा.
ऑक्सीजन 90 से नीचे, भर्ती नहीं, तो प्रोन वेंटिलेशन करें
डॉ वेद प्रकाश के मुताबिक, 90 से नीचे ऑक्सीजन लेवल आने पर अस्पताल में मरीज को भर्ती कराएं. इस बीच तत्काल बेड न मिलने पर हिम्मत न हारें. ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर मरीज को ऑक्सीजन सपोर्ट दें. दवा के साथ-साथ मरीज को प्रोन वेंटिलेशन (पेट के बल लिटाकर) पर रखें. मरीज सीने के पास तकिया लगाकर लेटे हुए सांस ले और फिर छोड़े. वहीं ऑक्सीजन लेवल जब 90 के ऊपर स्थिर हो जाए तो ऑक्सीजन सपोर्ट धीरे-धीरे कम करें.
एआरडीएस से गड़बड़ा जाती है श्वसन प्रक्रिया
डॉ वेद प्रकाश ने बताया कि एक्यूट रेस्परेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) की समस्या होने से फेफड़े के निचले हिस्से में पानी आ जाता है. पीठ के बल मरीज के लेटे रहने से फेफड़े के निचले हिस्से की एल्वियोलाइ में रक्त तो पहुंचता है, मगर पानी होने की वजह से ऑक्सीजन और कॉर्बन डाइऑक्साइड को निकालने की प्रक्रिया बाधित रहती है. ऐसे में मरीज और गंभीर होने लगता है. वहीं मरीज को पीठ के बल लिटाने से फेफड़े में संकुचन कम हो जाता है. पीठ वाला प्रेशर हल्का हो जाता है और पूरे फेफड़े में रक्त का संचार अच्छे से होने लगता है. कॉर्बन डाइऑक्साइड के निकलने और ऑक्सीजनेशन की प्रक्रिया में सुधार आता है. इससे मरीज की स्थिति पांचवें दिन से बेहतर होने लगती है.