लखनऊ: खेल निदेशालय की पहल पर शासन के आदेश के पर अब दिव्यांग खिलाड़ियों को सामान्य खिलाड़ियों की तरह सभी आवश्यक सुविधाएं और पुरस्कार दिया जाएगा. इन खिलाड़ियों को लक्ष्मण और रानी लक्ष्मीबाई खेल पुरस्कार भी दिया जाएगा. वहीं अगर ओलंपिक में कोई पैरा खिलाड़ी स्वर्ण पदक जीतेगा तो उसे प्रदेश सरकार की ओर से 6 करोड़ , रजत पदक जीतने पर 4 करोड़ और कांस्य पदक जीतने पर 2 करोड़ की धनराशि पुरस्कार स्वरूप दी जाएगी.
सूबे के मुखिया योगी सरकार के निर्देश पर अब खेल निदेशालय की तरफ से दिव्यांग खिलाड़ियों को सभी सुविधाओं के साथ पुरस्कार भी दिया जाएगा. दिव्यांग खिलाड़ियों को अब प्रैक्टिस करने या किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. खिलाड़ियों को यह सारी सुविधाएं खेल विभाग की तरफ से उपलब्ध करायी जाएंगी. दिव्यांग खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए खेल निदेशालय ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह प्रस्ताव भेजा था, जिस पर स्वीकृति मिल गई है. अब सामान्य खिलाड़ियों की तरह दिव्यांग खिलाड़ियों को सुविधाओं के साथ लक्ष्मण पुरस्कार, रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार दिया जाएगा. खेल विभाग की तरफ से उन्हें प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए आने जाने का किराया और पूरी किट दी जाएगी.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने पर एक लाख से लेकर छह करोड़ रुपये तक पुरस्कार राशि दी जाएगी. टीम स्पर्धा में 25 हजार से 3 करोड़ रुपये तक का पुरस्कार मिलेगा. वहीं राष्ट्रीय स्तर पर व्यक्तिगत पदक जीतने पर 50 हजार से एक लाख रुपये तक और टीम स्पर्धा में 20 हजार से 40 हजार तक का पुरस्कार दिया जाएगा, जबकि जूनियर और सब जूनियर वर्ग में भी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने पर नगद पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. वहीं प्रदेशीय दिव्यांगजन खेल संघों को प्रत्येक वर्ष कम से कम दो प्रतियोगिताएं आयोजित कराना अनिवार्य होगा.
इस संबंध में खेल निदेशक डॉ. आरपी सिंह ने बताया कि मान्यता प्राप्त मिनी कैडेट, सब जूनियर, जूनियर व सीनियर वर्ग की राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक विजेता खिलाड़ियों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त पैरा ओलंपिक गेम्स, पैरा कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स, पैरा वर्ल्ड कप में पदक विजेता दिव्यांगजन खिलाड़ियों को पुरस्कार राशि भी दी जाएगी. इसके अलावा प्रसिद्ध दिव्यांगजन खिलाड़ियों को वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी. ऐसे दिव्यांगजन खिलाड़ियों को पात्र माना जाएगा जो उत्तर प्रदेश का वास्तविक मूल निवासी हो और दिव्यांगजन का प्रतिनिधित्व किया हो. इसके अलावा प्रदेश के किसी मान्यता प्राप्त विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के छात्र हों.