लखनऊ: सपाई कुनबे को एक करने की कोशिशें आखिरकार धरी की धरी रह गईं हैं. समाजवादी पार्टी में ऐसे नेताओं की बड़ी संख्या है, जो चाहते हैं कि बिखरा हुआ समाजवादी परिवार एक बार फिर एकजुट हो. कई लोगों का यह भी मानना है कि बिना एक हुए पार्टी अपना वजूद तो कायम रख सकती है. लेकिन, सत्ता का सपना पूरा हो पाना कठिन है. पार्टी और परिवार में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इसके उलट सोचते हैं. बावजूद इसके सुलह की कोशिशें खूब परवान चढ़ीं. लेकिन, अखिलेश यादव द्वारा अपनी पत्नी डिंपल यादव को पिता के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी सीट से चुनाव लड़ाने की घोषणा के बाद सभी कोशिशों पर विराम लग गया.
मैनपुरी संसदीय सीट पर शिवपाल ने दावा किया था. उनका कहना था कि वह मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई हैं और इसी कारण मैनपुरी संसदीय सीट पर उनका स्वाभाविक दावा भी बनता है. शिवपाल के इस दावे को अखिलेश यादव ने आखिरकार नकार दिया है. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद परिवार के शोक-संवेदना के कार्यक्रमों में जिस तरह से शिवपाल सक्रिय रहे, उससे यह कयास लगाए जाने लगे थे कि हो न हो एकदिन दोनों नेता फिर एक हो जाएंगे. मुलायम के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी सीट पर चुनाव को इसका सबसे अच्छा अवसर भी माना गया. हालांकि, पारिवारिक कार्यक्रम समाप्त होने के दो-चार दिन बाद ही शिवपाल के बयान आने शुरू हो गए. यह बयान परिवार को एक करने की कोशिशों को नुकसान पहुंचाने वाले ही थे. मंगलवार को शिवपाल यादव ने कहा कि अखिलेश यादव चाटुकारों से घिरे हुए हैं. उनकी यह बात भले ही सही हो. लेकिन, यूं सार्वजनिक तौर पर रुसवाई को अखिलेश कैसे सहन करते. जब सुलह-समझौते की बातें चल रही हों तो दोनों पक्षों को विवेक से काम लेना चाहिए था. लेकिन, इसका ध्यान नहीं रखा गया.
अखिलेश यादव के परिवार से करीबी रखने वाले कुछ नेता कहते हैं कि दोनों नेताओं में कटुता की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उनका भरना बेहद कठिन है. इसके साथ ही परिवार के ही कुछ लोग इन घावों पर मरहम लगाने की बजाय उन्हें कुरेदते रहते हैं. ऐसे में बात बनने की नौबत ही नहीं आती. 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले भी यही हुआ. अखिलेश के बुलावे पर शिवपाल सिंह यादव काफी समझौते करके सपा के टिकट पर चुनाव लड़े. उनकी पार्टी से अखिलेश यादव ने एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा. शिवपाल को चुनाव प्रचार से दूर रखा गया. यही नहीं चुनाव संपन्न होने के बाद उन्हें विधायक दल की मीटिंग में भी नहीं बुलाया गया. हकीकत यह है कि शिवपाल के सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के बाद विरोधी खेमे इस कदर सक्रिय हो गए कि बनती हुई बात बिगड़ गई और आज जहां से चले थे, फिर वहीं खड़े दिखाई दे रहे हैं.