लखनऊ :हालही में पंजाब सरकार ने वहां के नागरिकों को सुरक्षित चलने के लिए राइट टू वॉक का अधिकार दिया है, ऐसा करने वाला वह पहला राज्य बना है, हालांकि यूपी में इसकी व्यवस्था नौ वर्ष पहले ही की गई थी, लेकिन आज हालात यह हैं कि पैदल चलने व साइकिल चलाने वालों के लिए बने साइकिल ट्रैक बदहाली के आंसू बहा रहे हैं, जहां साइकिल चलाना तो दूर पैदल चलना भी सुरक्षित नहीं बचा है. कुछ सड़क चौड़ीकरण की भेंट चढ़ गए तो कुछ अतिक्रमण की. ऐसे में सवाल उठता है कि जिन साइकिल ट्रैक को बनाने में पानी की तरह पैसा बहाया गया अब उसे क्यों संजो कर नहीं रखा जा सका?
करीब नौ वर्ष पहले तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव नीदरलैंड गए और जब वापस आए तो उन्होंने राजधानी समेत कई महानगरों में साइकिल ट्रैक बनाने की ठान ली. लिहाजा 2 मार्च 2015 को राजधानी के चार मार्गों पर साइकिल ट्रैक बना दिए गये. इन्हें बनाने में 40 लाख रुपए प्रति किलोमीटर का खर्च आया था. इसके बाद लखनऊ में करीब 28 अलग-अलग स्थानों में साइकिल ट्रैक बनाए गए थे. इसके लिए उस वक्त 49 करोड़ 56 लाख रुपए का खर्चा आया था. 2017 में निजाम बदला और शहर की सड़कों का विस्तार शुरू हुआ, जिसकी भेंट कई साइकिल ट्रैक चढ़ गए.
पूर्व मुख्यमंत्री के घर के सामने ही उखड़ गया साइकिल ट्रैक :नीदरलैंड की तर्ज पर 2015 में अखिलेश यादव ने लखनऊ में साइकिल ट्रैक का निर्माण कराया था. कहीं हद तक लोगों को इस ट्रैक के चलते सुरक्षित साइकिल चलाने और पैदल चलने में आसानी हुई, लेकिन सत्ता बदलते ही इन ट्रैक पर ध्यान नहीं दिया गया, लिहाजा सभी ट्रैक अतिक्रमण का शिकार हो गए. ऐसा ही एक साइकिल ट्रैक पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विक्रमादित्य मार्ग स्थित नए आवास के सामने भी बना था, जिसका उद्घाटन खुद उन्होंने ही किया था. आज हालात यह हैं कि पूरा साइकिल ट्रैक ही उखाड़ दिया गया है, इन साइकिल ट्रैक पर लगाई गई महंगी स्ट्रीट लाइट सिर्फ शो पीस बन कर रह गई है.