लखनऊ: अपने 53वें जन्मदिन के मौके पर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य नई राजनीतिक चुनौतियों के बीच घिरे हुए हैं. उत्तर प्रदेश सरकार में लगातार दूसरी बार उप मुख्यमंत्री पद की कुर्सी तो जरूर मिली है, लेकिन अपना खुद का चुनाव को सिराथू में हारने का मलाल भी उनके हाथ आया है. लोक निर्माण विभाग से अपेक्षाकृत कम महत्व के ग्रामीण विकास विभाग में बेहतर काम करके खुद को उबारने की चुनौती भी केशव प्रसाद मौर्य के सामने खड़ी है.
कभी अखबार बेचने का काम करने वाले मौर्य 2017 में भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हुई जीत के एक हीरो थे. वे उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के उस समय अध्यक्ष थे और मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार थे. वहीं, भाजपा नेतृत्व ने उनके स्थान पर गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को बतौर मुख्यमंत्री चुना था. लेकिन, इस बार सिराथू से चुनाव हारने के बाद भी उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होना मौर्य की बड़ी उपलब्धि बताई जा रही है. जन्मदिन के मौके उनके सरकारी आवास 7 कालिदास मार्ग पर खास इंतजाम किए गए हैं. समर्थकों का रेला उनको बधाई देने के लिए यहां जुटेगा.
केशव प्रसाद मौर्य को एक साधारण परिवार से होने के कारण परेशानियों से दो-चार होना पड़ा. अपने शुरुआती दौर में उन्हें गुजारे के लिए अखबार और चाय तक बेचनी पड़ी थी. अखबार बांटने से लेकर और उप-मुख्यमंत्री बनाए जाने तक के इस सफर में केशव प्रसाद मौर्य का सफर काफी दिलचस्प है. वे 18 सालों तक विश्व हिंदू परिषद में रहे. केशव मौर्य को अशोक सिंघल का करीबी माना जाता था. उनका जन्म एक किसान परिवार में 7 मई 1969 को कौशांबी जिले के सिराथू में हुआ था.
केशव प्रसाद मौर्य ने बजरंग दल से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की और इसके बाद वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए. यहां से वह विश्व हिन्दू परिषद के साथ जुड़े और करीब 18 सालों तक प्रचारक रहे. इस दौरान उन्होंने श्रीराम जन्म भूमि और गोरक्षा व हिन्दू हितों के लिए अनेकों आंदोलन किए और इसके लिए जेल भी गए. कहा जाता है कि सक्रिय राजनीति में उन्हें अशोक सिंघल के करीबी होने का फायदा भी मिला.