लखनऊ : यूपी के 75 जिलों में सिर्फ 115 सरकारी ब्लड बैंक हैं. इनमें भी कम्पोनेंट सपरेटर यूनिट (खून में चार कंपोनेंट अलग करने वाला) केवल 54 ब्लड बैंक में और एफरेसिस मशीन (ब्लड से प्लेटलेट्स अलग करने वाली) केवल 21 ब्लड बैंक में हैं. जिसकी वजह से डेंगू मरीजों को जरूरत पड़ने पर प्लेटलेट्स नहीं मिल पा रही है, लिहाजा बड़े शहरों में रेफर होने वाले मरीज दूसरे शहरों में एक-एक डोनर के लिए भटक रहे हैं.
प्रदेश के अस्पतालों में डेंगू मरीजों की भरमार है. प्लेटलेट्स की भारी कमी पड़ते ही चिकित्सक सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) की डिमांड कर रहे हैं, जिसके लिए मरीजों को राजधानी समेत उन बड़े शहरों में रेफर किया जा रहा है, जहां पर एसडीपी की सुविधा है. स्थिति यह है कि राजधानी के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ब्लड बैंक में दो मशीनों द्वारा 12 घंटे मिलने वाली एसडीपी की सुविधा 24 घंटे चल रही है, वहीं डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान का ब्लड बैंक, प्रशिक्षित स्टाफ के अभाव में एक ही शिफ्ट में एसडीपी की सुविधा दे रहा है. शासन को एफरेसिस मशीन की मांग का प्रस्ताव भेजा गया है.
प्राइवेट ब्लड बैंक उठा रहे फायदा :सरकारी अस्पतालों में भर्ती होने के लिए बेड की किल्लत और ब्लड बैंक में एसडीपी की अनुपलब्धता का लाभ प्राइवेट अस्पतालों को मिल रहा है. प्लेटलेट्स काउंट गिरने पर इलाज में एसडीपी ही कारगर साबित हो रहा है. इसके लिए तीमारदार निजी अस्पतालों में जा रहे हैं.
बाहरी जिलों से आ रही हैं एसडीपी की डिमांड :केजीएमयू में ब्लड बैंक प्रभारी प्रो. तुलिका चंद्रा का कहना है कि 'रोजाना तैयार होने वाली औसत 150 यूनिट प्लेटलेट्स (आरडीपी) और 10 यूनिट एसडीपी, उपलब्ध कराई जा रही है. एसडीपी के लिए दो मशीनें 24 घंटे संचालित होती हैं. बाराबंकी, बहराइच और सीतापुर आदि कई जिलों से एसडीपी की डिमांड आ रही है, सभी को डिमांड पूरी की जा रही है, वहीं लोहिया संस्थान के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. वीके शर्मा का कहना है कि टवायरल फैला है, इसमें भी प्लेटलेट्स कम हो जाती हैं.'