लखनऊः योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदेश को विकास की राह पर तेजी से आगे ले जाने को लेकर प्रयासरत है. जिसका वो दावा भी करते हैं कि हर क्षेत्र में सरकार ने अभूतपूर्व काम किया है. वहीं उत्तर प्रदेश सरकार पर कर्ज भी खूब बढ़ा है. यूपी सरकार काफी कर्ज में डूबी हुई है. कर्ज लेकर सरकार प्रदेश को विकास के पथ पर तेजी से आगे ले जा रही है और विकास के स्तर पर मिलने वाले राजस्व से कर्ज वापस भी कर रही है.
वर्तमान समय में यूपी सरकार कितने कर्ज में डूबी है और पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को विरासत में कितना कर्ज देकर गई है. इसको लेकर ईटीवी भारत ने पड़ताल की. हमने वित्त विभाग के आंकड़े और राजनीतिक विश्वेषक और वरिष्ठ अर्थशास्त्री से बात की और पूरी स्थिति समझने की कोशिश की. आंकड़ों पर गौर करें तो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश सरकार और तमाम वित्तीय देनदारियां हैं. मतलब सरकार विकास परियोजनाओं को धरातल तक ले जाने के लिए बड़े कर्ज ले रखे हैं.
वित्तीय आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार पर 6,53,307 लाख करोड़ रुपये का कर्जा है. जो तमाम विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए समय-समय पर अलग वित्तीय संस्थानों से लिया गया है. इससे पहले पूर्व की अखिलेश यादव सरकार ने 2017 में कितना कर्ज उत्तर प्रदेश सरकार पर छोड़ा है. अगर उन आंकड़ों की बात करें तो 4,73,348 लाख करोड़ रुपये का कर्ज मार्च 2017 में था. 2017 से 2022 तक योगी आदित्यनाथ सरकार चलाने के बाद मार्च 2022 तक उत्तर प्रदेश सरकार पर जो बकाया कर्ज है, वो 6,53,307 लाख करोड़ रुपये है, जो पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार से करीब 38 फीसदी अधिक है.
उत्तर प्रदेश सरकार तमाम विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अलग-अलग वित्तीय संस्थानों और योजनाओं के नाम पर अलग-अलग मद में कर्ज ले रखा है. मुख्य रुप से सरकार ने राज्य विकास ऋण, उज्जवला डिस्कॉम एश्योरेंस योजना, क्षतिपूर्ण एवं अन्य बांड, एनएसएसएफ, अर्थोपाय अग्रिम, एलआईसी से ऋण, जीआईसी से ऋण, नाबार्ड से ऋण, एसबीआई एवं अन्य बैंकों से ऋण, एनसीडीसी से ऋण, अन्य संस्थाओं से ऋण, बैंक एवं वित्तीय संस्थाएं, आंतरिक ऋण, केंद्र से ऋण, पीएफ से ऋण, आरक्षित कोष, जमा एवं अग्रिम आपदा राशि के नाम पर अलग-अलग कर्ज लिया गया है.
आंकड़ों की गहराई से जांच से इस बात का खुलासा होता है कि योगी सरकार में उधारी का ज्यादा वह बेहतर इस्तेमाल विकास के कामों को आगे बढ़ाने के लिए किया गया. हनुमान बताते हैं कि 10 मार्च 2017 को राज्य की जीएसडीपी 10.11 लाख करोड़ थी, जो 30 मार्च 2022 तक बनकर 19.10 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई. इस तरह जहां तक सरकार की उधारी यानी कर्ज का सवाल है तो योगी सरकार में राहत भरी खबर है और इसके उलट अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते कर्ज का मर्ज ज्यादा था.
राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफेसर एपी तिवारी कहते हैं कि जब हम प्रदेश की राजकोषीय स्थिति को देखते हैं, तो जहां तक कुल देनदारियों की बात है तो 31 मार्च 2017 को जो देनदारी थी उसमें करीब 38 फीसदी बढ़ोतरी दिखती है. अगर हम इसकी तुलना 21 मार्च 2022 के आंकड़े को लेकर करें, तो सबसे अहम बात ये है कि जो कर्ज का बोझ होता है उत्तर प्रदेश का या किसी भी प्रदेश का उसको मापा जाता है उसके आय के सापेक्ष यानी जीएसडीपी के सापेक्ष. यानी ऐसी स्थिति में 2017 में मार्च में ये 36.7 फीसदी था. जीएसडीपी के सापेक्ष कुल देनदारी थी, जो घटकर 31 मार्च 2022 को 34.2 फीसदी आ गई है. इस तरह देखने में नजर आता है कि राज्य का ऋण भार बढ़ गया है. जहां तक उसके धनराशि का सवाल है, तो पिछले 5 सालों में यह वृद्धि 38 फीसदी की हुई है.