लखनऊ : प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कई दशकों से मानकों की अनदेखी कर धड़ल्ले से अवैध इमारतों का निर्माण हो रहा है. ऐसा नहीं है कि इन अवैध निर्माणों की चर्चा नहीं होती. जब भी कोई हादसा होता है तो मीडिया में यह अवैध निर्माण सुर्खियां बनते हैं. जांच के आदेश दिए जाते हैं. फिर थोड़े दिन बाद सब कुछ पहले जैसा हो जाता है. वह अभियंता हमेशा बच निकलते हैं, जिन पर इस तरह के अवैध निर्माण रोकने की जिम्मेदारी होती है. स्वाभाविक है कि निहित स्वार्थों के कारण ही जिम्मेदार अभियंता अवैध निर्माण होने देते हैं और रोकने की कोई कोशिश नहीं करते. हाल के दिनों में राजधानी में दो घटनाएं हुईं, जिनमें कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. पहला एक होटल में हुआ अग्निकांड और दूसरा अपार्टमेंट ढह जाने का मामला. दोनों ही मामलों में जांच चल रही है. हालांकि इस जांच से कोई बड़ी उम्मीद रखना बेमानी ही है.
राजधानी में लखनऊ विकास प्राधिकरण की नाक के नीचे दर्जनों अवैध काॅलोनियां विकसित हो गईं और प्राधिकरण के अधिकारी इन्हें रोकने में नाकाम रहे. नियमत: प्रॉपर्टी डीलर्स को प्लॉटिंग से पहले संबंधित भूमि के साइड प्लान का नक्शा एलडीए से पास कराना चाहिए. ऐसा करने पर प्रॉपर्टी डीलर स्कोर कालोनियां विकसित करते समय चौड़ी सड़कें, पार्क और अन्य आवश्यक सेवाओं के लिए जगह छोड़नी पड़ती. जाहिर है इसमें उन्हें फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता. इसलिए निजी कॉलोनियों के विकासकर्ताओं ने अभियंताओं को खुश करके काॅलोनियां बसाना शुरू कर दिया. यह सिलसिला थमा नहीं आज तक जारी है. प्राधिकरण बस एक के बाद एक कॉलोनी को अवैध घोषित करने का काम कर रहा है. आखिर उन अभियंताओं को दंडित क्यों नहीं किया जाता जिनके क्षेत्र में इस तरह के अवैध निर्माण होते हैं. यह तो एक बात है. शहर में बड़ी तादाद में बिना मानक के भवन और अपार्टमेंट बनाए गए हैं, जिनका नक्शा या तो पास ही नहीं है या फिर यह निर्माण नक्शे के अनुरूप नहीं हुए हैं. बेमानक निर्माण कराने वालों को अभियंताओं को खुश करना पड़ता है. बावजूद इसके जब हादसे हो जाते हैं, तब जांच और पड़ताल शुरू होती है. सीधे यह क्यों नहीं देख लिया जाता जब ऐसे निर्माण किए जा रहे थे तब क्षेत्र का अभियंता कौन था? सीधे उसी पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती.