लखनऊ :पिछले लगभग एक माह में उत्तर प्रदेश और एनसीआर में तीन बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं. इन झटकों की तीव्रता पूर्व के वर्षों की अपेक्षा ज्यादा देखी गई है. भूगर्भ जल के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि विगत दो-तीन दशकों में ग्राउंड वाटर का दोहन पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा हो गया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि 70-80 के दशक में आने वाले भूकंपों की तीव्रता उत्तर प्रदेश और खास तौर पर लखनऊ में बहुत कम होती थी. हालांकि 2015 और उसके बाद के भूकंपों में इसकी तीव्रता काफी ज्यादा महसूस की गई है. यह एक तरह के खतरे का संकेत है. यदि इसके बावजूद लोगों ने सबक नहीं लिया तो यह भविष्य में और संकट खड़ा करेगा. चिंता का विषय यह है कि सरकार इस संबंध में बिल्कुल गंभीर नहीं है. भूगर्भ जल का प्रयोग कम करने के बजाय इस पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है.
भूगर्भ विशेषज्ञ डॉ. आरएस सिन्हा कहते हैं कि यदि हम भू वैज्ञानिक के दृष्टिकोण से बात करें तो यह माना जाता है कि हमारा गंगा बेसिन मिट्टी की मोटी सतह पर बसा हुआ है. इसलिए जब भी भूकंप आते हैं, तो हमें उसकी तीव्रता ज्यादा महसूस नहीं होती है. इस तरह का कोई खतरा नहीं रहता है. ज्यादा नुकसान भी नहीं होता है. इसका कारण यही है कि गंगा बेसिन में जिसे हम एल्युवियल कहते हैं, भूगर्भ विज्ञान की भाषा में, वह एक बहुत मोटी मिट्टी की तह है. इसकी मोटाई करीब एक किलोमीटर है. यह तह भूकंपीय झटकों को नियंत्रित कर लेती है. इस कारण हमें भूकंप की तीव्रता ज्यादा महसूस नहीं होती है. हालांकि पिछले 20-25 साल में इसकी तीव्रता लखनऊ और आसपास के जिलों में बढ़ी है. इससे पहले 70-80 के दशक में जो भूकंप आते थे, तब बहुत मामूली झटके महसूस होते थे. वर्ष 2015 में जब काठमांडू (नेपाल) में तीव्र गति का भूकंप आया था, तब प्रदेश के लोगों में उसकी तीव्रता महसूस की थी. यहां तक कि सड़क पर चलते हुए लोगों ने भी भूकंप का कंपन महसूस किया था.