लखनऊ:यूपी की सियासत (UP Assembly Election - 2022) में अबकी ब्राह्मणों की अहमियत को अगर समझना है तो इसी से समझा जा सकता है कि हर पार्टी इन्हें आकर्षित करने को सम्मेलनों का आयोजन कर रहे हैं. कभी समाजवादी पार्टी(Samajwadi Party) ब्राह्मण सम्मेलन (brahmin convention) को सामने आती है तो कभी बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party). यानी कुल मिलाकर कहें तो क्षेत्रीय दलों के लिए अबकी ब्राह्मण मतदाता कई मायनों में अहम हो गए हैं. लेकिन अति ब्राह्मण प्रेम में जातिवादी सियासत (casteist politics)को जानी जाने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के मूल वोटर कहीं दूसरी ओर शिफ्ट तो नहीं हो रहे हैं.
दरअसल, सूबे में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. यही कारण है कि सभी सियासी पार्टियां अभी से ही तैयारियों में जुट गई हैं. वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती (BSP supremo Mayawati)सूबे की सत्ता में वापसी को ब्राह्मणों को साधने में लगी हैं तो उनके दलित वोटबैंक में सेंधमारी को सारी पार्टियां रणनीति बना रही हैं.
80 दशक में दलित समाज के बीच बसपा के संस्थापक कांशीराम (BSP founder Kanshi Ram) ने सियासी चेतना जगाने का काम किया था. उन्होंने सियासत में दलितों का ऐसा प्रयोग किया कि बसपा देखते ही देखते यूपी में मजबूत होते गई और मायावती एक या दो बार नहीं, बल्कि चार बार सूबे की सीएम बनीं.
हालांकि, लंबे समय तक दलित वोटों पर मायावती का एकछत्र राज रहा, लेकिन अब दलितों के एक तबके ने बसपा से किनारा बनाना शुरू कर दिया है. इस बात को बसपा सुप्रीमो मायावती भी अब समझने लगी हैं और यही कारण है कि वो सूबे की सत्ता में वापसी को ब्राह्मणों को साधने में लग गई हैं.
खैर, उनके ऐसा करने से उनके दलित वोटबैंक में सेंधमारी की संभवाना भी जाहिर की जा रही है. सियासी पंडितों की मानें तो पश्चिम यूपी में दलित सियासत का नया चेहरा बन उभरे चंद्रशेखर, मायावती का विकल्प हो सकते हैं. इधर, कांग्रेस, सपा के साथ ही भाजपा ने भी अबकी दलितों को अपने पाले में करने को कई दांव डाल रखे हैं.
गौर हो कि सूबे में ओबीसी समुदाय के बाद दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी दलितों की है. यहां दलितों की कुल आबादी 22 फीसद के आसपास है, जो जाटव और गैर-जाटव के बीच विभक्त हैं.
वहीं, 22 फीसद दलितों में भी 12 फीसद जाटव और 10 फीसद गैर-जाटव दलित हैं. इनमें भी तकरीबन 66 उपजातियां हैं. इसमें 55 ऐसी उपजातियां शामिल हैं, जिनका संख्या बल कम हैं, जिसमें मुसहर, बसोर, सपेरा और रंगरेज आते हैं.
वहीं, दलितों की कुल आबादी में 56 फीसद जाटव के साथ ही दलितों की अन्य उपजातियां भी हैं और इनकी आबादी 46 फीसद के आसपास है. इसमें पासी 16 फीसद, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसद व गोंड, धानुक और खटीक 5 फीसद के आसपास हैं.
गौर हो कि बसपा सुप्रीमो मायावती और भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर जाटव समुदाय से हैं और सूबे की दलित सियासत में इस समुदाय का प्रभुत्व प्रबल माना जाता है. लेकिन विपक्षी पार्टियों ने गैर-जाटव दलितों को अपने पाले में करने को रणनीति बनाना शुरू कर दिया है.