लखनऊ : केजीएमयू में देश की पहली क्लबफुट स्किल लैब (Clubfoot Skill Lab) बनने जा रही है. इसे लेकर केजीएमयू और क्योर इंटरनेशनल इंडिया ट्रस्ट (KGMU and Cure International India Trust) के बीच मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (memorandum of understanding) साइन किया गया है. लैब में डॉक्टरों को जन्मजात अस्थि रोगों के इलाज (treatment of congenital bone diseases) का पोंसेटी पद्धति पर प्रशिक्षण दिया जाएगा.
पीडियाट्रिक अस्थिरोग विभाग के डॉ. शकील अहमद (Dr Shakeel Ahmed of Department of Pediatric Orthopedics) ने बताया कि केजीएमयू के बाल हड्डी रोग विभाग (Department of Pediatric Orthopedics) द्वारा लैब को वर्चुअल सिस्टम के साथ भी शुरू किया जा रहा है. देश में प्रति वर्ष करीब 35 हजार बच्चे विसंगति के साथ जन्म लेते हैं. इसमें एड़ियां टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं. इलाज केवल सर्जरी और प्लास्टर ही था. हालांकि नवजातों में दोनों ही काफी मुश्किल होते हैं. लैब शुरू होने पर पीड़ित बच्चे को जन्म के तीन से सात दिन में लाने पर मामूली सर्जरी कर बीमारी से निजात दिलवाई जाएगी. इसमें केजीएमयू कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. बिपिन पुरी का पूरा सहयोग मिला है.
केजीएमयू के क्लबफुट स्किल लैब में होगा नवजातों की टेढ़ी-मेढ़ी हड्डियों का इलाज, यह हो रही तैयारी - Crooked bones of newborn
केजीएमयू में देश की पहली क्लबफुट स्किल लैब बनने जा रही है. इसे लेकर केजीएमयू और क्योर इंटरनेशनल इंडिया ट्रस्ट (सीआईआईटी) के वीच मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) साइन किया गया है. लैब में डॉक्टरों को जन्मजात अस्थि रोगों (congenital bone diseases) के इलाज का पोंसेटी पद्धति पर प्रशिक्षण दिया जाएगा.
डॉ. शकील ने कहा कि पीडियाट्रिक अस्थि रोग विभाग (Department of Pediatric Orthopedics) की मंशा है कि क्लब फुट के बारे में बाकी डॉक्टरों को भी अच्छे से जानकारी हो और वह अभिभावक जिनके बच्चे क्लब फुट विसंगति (club foot anomaly) के साथ पैदा होते हैं. उन्हें भी इस बात की पूरी जानकारी हो कि यह सही हो सकता है. बच्चा आम लोगों की तरह जिंदगी गुजार सकता है. इसके लिए जरूरी है कि लोग जागरूक रहें. इसके अलावा 3D वर्चुअल ट्रेनिंग माड्यूल (3D Virtual Training Module) यहां पर होगा ताकि जो डॉक्टर्स नहीं आ सकते उन डाॅक्टरों प्रशिक्षित किया जा सके.
डॉ. शकील अहमद (Dr Shakeel Ahmed) ने बताया कि देश में 35 से 40 हजार बच्चे और प्रदेश में लगभग आठ से हजार बच्चे क्लबफुट विसंगति के साथ पैदा होते हैं. ऐसे में जब बच्चा पैदा होता है तो पता नहीं चलता है कि बच्चा क्लब फुट विसंगति के साथ पैदा हुआ है. अभिभावक को इसकी भनक नहीं होती है. पैदा होने के बाद कुछ बच्चों की पैर टेढ़े-मेढ़े दिखाई देते हैं, लेकिन कुछ बच्चों के नहीं दिखाई देते है. ऐसे में जब यह बच्चे तीन-चार महीने के होते हैं तब अभी अभिभावक को पता चलता है कि बच्चा क्लब फुट से ग्रसित है. इसका इलाज पूरी तरह से संभव है लोगों को इसकी जानकारी होना चाहिए.
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