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यूपी में फैक्टर का संकट, दांव पर हजारों बच्चों की जान!

हीमोफीलिया एक आनुवांशिक बीमारी है. इसमें बच्चों में रक्त का थक्का नहीं जमता है. लिहाजा, अधिक रक्तस्राव बच्चों की जान पर आफत बन जाता है. वहीं सूबे के सरकारी अस्पतालों-मेडिकल कॉलेजों में इलाज में आवश्यक 'आरएच फैक्टर' (HR FACTOR) के संकट होने के कारण यहां के हजारों बच्चों का जीवन दांव पर है.

यूपी में फैक्टर का संकट
यूपी में फैक्टर का संकट

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Published : Aug 6, 2021, 2:30 PM IST

लखनऊ: यूपी में हीमोफीलिया से पीड़ित हजारों बच्चों का जीवन दांव पर है. कारण, यहां के सरकारी अस्पतालों-मेडिकल कॉलेजों में इलाज में आवश्यक 'आरएच फैक्टर' (HR FACTOR) का संकट होना है. ऐसे में रक्तस्राव के बाद बच्चों की हालत गंभीर हो रही है. उन्हें फैक्टर नहीं मिल पा रहा है.



हीमोफीलिया एक आनुवांशिक बीमारी है. इसमें बच्चों में रक्त का थक्का नहीं जमता है. लिहाजा, अधिक रक्तस्राव बच्चों की जान पर आफत बन जाता है. ऐसे में जहां तमाम बच्चों को समय-समय पर रक्त चढ़वाना पड़ता है तो साथ ही रक्त में थक्का जमाने के लिए फैक्टर की डोज दी जाती है. मगर, इसका मेडिकल कॉलेजों-अस्पतालों में संकट छा गया है. वहीं बाजार से फैक्टर की एक डोज 25 से 80 हजार तक की है. वह भी हर स्टोर पर मिलना मुश्किल है.

यूपी में फैक्टर का संकट



यूपी में 26 सेंटर, 35 करोड़ महीनों से डंप

हीमोफीलिया सोसाइटी के सचिव विनय मनचंदा के मुताबिक राज्य में हीमोफीलिया के करीब 26 हजार मरीज हैं. मगर, स्क्रीनिंग-टेस्टिंग के अभाव में 3,500 ही मरीज रजिस्टर्ड हैं. इनके इलाज के लिए 26 सरकारी सेंटर हैं. जिनपर बच्चों के लिए आवश्यक फैक्टर-7, फैक्टर-8, फैक्टर-9 मुफ्त में चढ़ाए जाते हैं. यह दवा इंजेक्शन की तरह इंटरवेंशन तकनीक से दी जाती है. इसके लिए तीन माह पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने 35 करोड़ रुपये जारी किए. एसजीपीजीआई को यह फैक्टर खरीदकर सभी सेंटरों को आपूर्ति करना है. मगर, अफसरों की हीलाहवाली से फैक्टर की खरीदारी नहीं हो सकीं. समय पर फैक्टर न चढ़ने से बच्चे गठिया का शिकार हो जाते हैं. इसके अलावा जान पर आफत बन जाती है.

इन मेडिकल कॉलेजों में हैं सेंटर

केजीएमयू, एसजीपीजीआई, सहारनपुर मेडिकल कॉलेज, मेरठ मेडिकल कॉलेज, गाजियाबाद मेडिकल कॉलेज, मुरादाबाद मेडिकल कॉलेज, नोएडा सुपर स्पेशयलिटी हॉस्पिटल, बरेली हॉस्पिटल, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी, आगरा मेडिकल कॉलेज, रिम्स इटावा, कन्नौज मेडिकल, बहराइच हॉस्पिटल, जालौन मेडिकल कॉलेज, कानपुर मेडिकल कॉलेज, गोंडा मेडिकल कॉलेज, झांसी मेडिकल कॉलेज, ललितपुर मेडिकल कॉलेज, बांदा, बस्ती, अम्बेडकर नगर, प्रयागराज, आजमगढ़, गोरखपुर, मिर्जापुर, वाराणसी में इलाज का सेंटर है.

हीमोफीलिया और फैक्टर
हीमोफीलिया की बीमारी ज्यादातर माता-पिता से बच्चों में होती है. यह महिलाओं की तुलना में पुरुष में ज्यादा होती है. इससे पीड़ित व्यक्ति के ब्लड में प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है, जिसे क्लॉटिंग फैक्टर भी कहते हैं. फैक्टर-8 और फैक्टर-9 ब्लड क्लॉटिंग में अहम है. इन मरीजों में किसी कारण या एक्सीडेंट होने पर एक्सटरनल ब्लीडिंग होती है. वहीं इंटरनल ब्लीडिंग में खतरा ज्यादा बढ़ जाता है.

वहीं दो ऐसे भी केस सामने आए हैं जो हिमोफिलिया बीमारी से ग्रसित हैं और तत्काल फैक्टर की जरुरत है फिरभी देरी हो रही है.

  • केस 1- दो बार गया, वापस किया
    उन्नाव निवासी अभिषेक नौ वर्ष का है. उसको फैक्टर-9 चढ़ना है. ब्लीडिंग होने पर उसकी हालत गंभीर हो गयी. पिता राजकुमार के मुताबिक केजीएमयू में फैक्टर के लिए दो बार गया, मगर फैक्टर नहीं चढ़ सका. बच्चे की हालत बिगड़ रही है.
  • केस 2- फैक्टर -7 की जरूरत

हमीरपुर निवासी सात वर्षीय हसन को हिमोफिलिया है. ब्लीडिंग से स्थिति बिगड़ गई है. उसे भी फैक्टर -7 चढ़ना है. बहन आलिया के मुताबिक केजीएमयू में अभी फैक्टर का संकट बताया गया है.


वहीं, एसजीपीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमान फैक्टर पर कहते हैं कि फैक्टर खरीदारी की फाइल को मंजूरी दे चुका हूं. कहां पर देरी है, इसका पता करूंगा. जल्द ही सभी सेंटरों पर फैक्टर की आपूर्ति करवाऊंगा.

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