लखनऊ: सोचिए आपका बेटा-बेटी, मां-बाप या भाई बहन कहीं खो जाएं और जब आप उन्हें ढूंढना शुरू करें तो कोई आपकी मजबूरी का फायदा उठा कर ठगी कर ले. जी हां यूपी के कई जिलों में ऐसे मामले सामने आए हैं. इनमें गुमशुदा को ढूंढने के लिए लगाए गए पोस्टर और सोशल मीडिया में पोस्ट को देख जालसाज फर्जी पुलिस बन कर ठगी कर रहे है. साइबर पुलिस जालसाजों के इस नए तरीके को देखकर हैरान है.
केस 1: राजधानी के अलीगंज में रहने वाले रोहित अग्रवाल की बेटी छह माह पहले अचानक गायब हो गई. रोहित ने इंटरनेट पर अपनी बेटी को ढूंढने का अभियान चलाया. इसमें उन्होंने अपनी बेटी की सभी जानकारी के साथ खुद का फोन नम्बर भी उपलब्ध कराया. 23 सितम्बर को उनके पास एक कॉल आई. कॉलर ने खुद को इटावा पुलिस में इंस्पेक्टर बताया और कहा कि उनकी बेटी झांसी के पास देखी गई है. तत्काल उन्हे वहां जाना होगा, लेकिन विभाग से कोई गाड़ी नहीं मिलती है.
ऐसे में गाड़ी करने के लिए 30 हजार रुपये खर्च होंगे. जल्दी भेज दीजिए ताकि पहुंच कर बच्ची को बरामद कर लें. रोहित के लिए बेटी के मिल जाने की सूचना ही काफी थी. तत्काल उन्होंने कॉलर द्वारा भेजे गए क्यूआर कोड में तीस हजार भेज दिए. पैसे भेजे जाने के दो घंटे बाद से ही वह नम्बर स्विच ऑफ हो गया. कई दिन बाद फिर कॉल की तब भी वह नंबर स्विच ऑफ ही मिला. रोहित समझ चुके थे कि उनके साथ ठगी हुई है.
केस 2:कानपुर के किदवई नगर के रहने वाले राम सजीवन की पत्नी शांति देवी अगस्त माह में शाम को मंदिर के लिए निकली थीं. शांति देवी को भूलने को बीमारी थी, लिहाजा वो कई दिनों तक घर वापस नहीं आई. राम सजीवन ने कई जगह गुमशुदा को तलाश को लेकर पोस्टर लगाए थे. इतना ही नहीं उनके बेटे ने सोशल मीडिया में मां की तलाश करने के लिए पोस्ट शेयर की थीं.