लखनऊ:एमपी-एमएलए कोर्ट के विशेष जज पवन कुमार राय ने बसपा शासन के दौरान अरबों के स्मारक घोटाला मामले में 25 लोकसेवकों और 32 कर्न्सोटियम प्रमुख के खिलाफ दाखिल आरोप पत्र पर संज्ञान लेते हुए अगली सुनवाई दो नवंबर को तय की है.
वर्ष 2007-2011 के दौरान का यह मामला लखनऊ व नोएडा में स्मारकों एवं उद्वानों के निर्माण व इससे जुड़े अन्य कार्यो में प्रयोग किए जाने वाले सैंडस्टोन की खरीद-फरोख्त में अरबों के घोटाले का है. इसको लोकर एक जनवरी, 2014 को इस मामले की एफआईआर उप्र सतर्कता अधिष्ठान के निरीक्षक राम नरेश सिंह राठौर ने थाना गोमतीनगर में दर्ज कराई थी.
लखनऊ और नोएडा में बने स्मारक बता दें कि लखनऊ और नोएडा में बने स्मारकों में लगे पत्थरों के ऊंचे दाम वसूले गए थे. आरोप है कि मिर्जापुर में एक साथ 29 मशीनें लगाई गईं और कागजों में दिखाया गया था कि पत्थरों को राजस्थान ले जाकर वहां कटिंग कराई गई, फिर तराशा गया. ढुलाई के नाम पर करोड़ों रुपये का वारा न्यारा किया गया था. कंसोर्टियम बनाया गया जो कि खनन नियमों के खिलाफ था. 840 रुपये प्रति घनफुट के हिसाब से ज्यादा वसूली की गई. मंत्रियों, अफसरों और इंजीनियरों ने अपने चहेतों को मनमाने ढंग से पत्थर सप्लाई का ठेका दिया और मोटा कमीशन लिया.
जांच में यह बात भी सामने आई थी कि मनमाने ढंग से अफसरों को दाम तय करने के लिए अधिकृत कर दिया गया था. ऊंचे दाम तय करने के बाद पट्टे देना शुरू कर दिया गया था. सलाहकार के भाई की फर्म को मनमाने ढंग से करोड़ों रुपये का काम दे दिया गया था.
लखनऊ और नोएडा में बने स्मारक इसी दौरान लखनऊ और नोएडा में दो ऐसे बड़े पार्क बनवाए गए, जिनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती, बसपा संस्थापक कांशीराम व भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के अलावा पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की सैकड़ों मूर्तियां लगवाई गईं. उस समय मायावती सरकार के इस फैसले की विपक्षी नेताओं ने व्यापक आलोचना की थी.
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लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा की जांच रिपोर्ट के बाद चर्चा में आए इस घोटाले पर पूरी सपा सरकार के समय पर्दा पड़ा रहा. लोकायुक्त ने स्मारकों के निर्माण में 1,400 करोड़ के घोटाले की आशंका जताते हुए इस मामले की विस्तृत जांच सीबीआई या एसआईटी से कराने की संस्तुति की थी.
सपा ने 2014 में शुरू कराई जांच
वर्ष 2014 में तत्कालीन सपा सरकार ने मामले की जांच यूपी पुलिस के सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) को सौंपी थी. हालांकि अखिलेश सरकार ने दोनों ही संस्थाओं को जांच न देकर विजिलेंस को जांच सौंप दी. विजिलेंस की जांच इतनी धीमी गति से चलती रही कि चार वर्षों में इसमें कोई प्रगति नहीं हुई. इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के दखल के बाद विजिलेंस ने जांच पूरी की और अभियोजन की स्वीकृति के लिए प्रकरण शासन को भेजा. विवेचना के दौरान अब तक इस मामले में 72 अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा 409 व 120 बी के साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) व 13 (2) में दाखिल आरोप पत्र दाखिल हो चुके हैं, जबकि शेष अभियुक्तों के खिलाफ विवेचना अभी चल रही है. उल्लेखनीय है कि मामले में तत्कालीन सरकार के कुछ कद्दावर मंत्रियों व नेताओं के भी नाम सामने आए हैं. हालांकि उन सभी के खिलाफ अब तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है.
बाबू सिंह कुशवाहा से हो चुकी है पूछताछ नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा से हो चुकी है पूछताछ
बता दें कि इस मामले में नसीमुद्दीन सिद्दीकी से पूछताछ कर बयान दर्ज किए थे. नसीमुद्दीन के जवाबों के आधार पर विजलेंस ने पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाया था. नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने विजिलेंस के सारे सवालों का जवाब दिया था. करीब 6 घंटे चली पूछताछ में नसीमुद्दीन सिद्दीकी कई बार बिजनेस के अफसरों के सवालों के सामने पसीने पसीने हो गए थे. इसके बाद पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा भी विजलेंस के समक्ष पेश हुए थे और अपना पक्ष रखा था.