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ASP और 2 CO के खिलाफ कार्रवाई के लिए कोर्ट ने भेजा पत्र, अश्लील हरकत के मामले में अभियुक्त को दी गई क्लीनचिट

लखनऊ में पॉक्सो के विशेष जज अरविन्द मिश्र ने 15 साल की युवती से अश्लील हरकत करने के मामले में गंभीर रूख अख्तियार किया है. पीड़ित का दो बार विवेचना करने के बाद भी अदालत में बयान दर्ज कराए बिना अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने पर उसे निरस्त कर दिया.

ASP और 2 CO के खिलाफ कार्रवाई के लिए कोर्ट ने भेजा पत्र
ASP और 2 CO के खिलाफ कार्रवाई के लिए कोर्ट ने भेजा पत्र

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Published : Sep 17, 2021, 10:42 PM IST

लखनऊः नाबालिग युवती से अश्लील हरकत करने के मामले में दो बार विवेचना करने के बाद भी पीड़ित का कोर्ट में बयान दर्ज कराए बिना अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने पर जज ने गंभीर रूख अपनाया है. पॉक्सो के विशेष जज अरविन्द मिश्र ने अंतिम रिपोर्ट निरस्त कर दी. कोर्ट ने अपने आदेश में उठाए गए बिन्दुओं पर अग्रिम विवेचना का आदेश तो दिया ही है. साथ ही इस मामले की प्रथम विवेचक तत्कालीन सीओ कैंट तनु उपाध्याय, द्वितीय विवेचक तत्कालीन सीओ कैंट डॉक्टर वीनू सिंह और तत्कालीन एसपी उत्तरी सुकीर्ति माधव द्वारा की गई लापरवाही के बाबत आवश्यक कार्रवाई के लिए पुलिस कमिश्नर को पत्र भी भेजा है.

कोर्ट ने आदेश की एक प्रति पुलिस महानिदेशक को भी भेजने का आदेश दिया है. इस मामले की एफआईआर 28 अक्टूबर 2018 को पीड़ित की मां ने थाना पीजीआई में दर्ज कराई थी. विशेष जज ने अपने विस्तृत आदेश में कहा है कि इस मामले में पीड़ित का अदालत में बयान दर्ज कराना बाध्यकारी था. लेकिन विवेचक ने पीड़ित का सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान ही दर्ज नहीं कराया. जबकि मामला एससी-एसटी एक्ट के तहत होने के कारण इस मामले की विवेचना पुलिस उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी द्वारा की गई. कोर्ट ने कहा कि महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस मामले का पर्यवेक्षण तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नगर उत्तरी ने किया. कोर्ट ने प्रथम विवेचक द्वारा भेजे गए अंतिम रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए अग्रिम विवेचना का निर्देश यह कहते हुए दिया था कि शपथ पत्र के आधार पर विवेचना को निस्तारित करने का औचित्य नहीं है. इस तथ्य को सभी ने नजरअंदाज कर दिया कि प्रथम विवेचक ने पीड़िता का अदालत में बयान दर्ज ही नहीं कराया है.

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कोर्ट ने अपने आदेश में आश्चर्य जताते हुए कहा है कि द्वितीय विवेचक ने भी अग्रिम विवेचना के दौरान पीड़िता का अदालत में बयान दर्ज कराना मुनासिब नहीं समझा. बल्कि सिर्फ खानापूर्ति करते हुए गवाहों के हलफनामे के आधार पर अंतिम आख्या प्रेषित कर दी. यह दर्शाता है कि ऐसा भूलवश नहीं हुआ है. बल्कि इन पुलिस अधिकारियों द्वारा अपने दायित्वों का सम्यक निर्वहन नहीं किया गया.

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