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आठ साल से रेप पीड़िता को पेश न करने पर कोर्ट ने पुलिस अधिकारी को दिया ऐसा दंड

नाबालिग से दुराचार (Molestation of Minor) के मामले में हाजिर न होने पर पॉक्सो एक्ट के विशेष न्यायाधीश ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने इस मामले में पुलिस अधिकारी का वेतन काटने का आदेश दिया है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 11, 2023, 12:49 PM IST

लखनऊ : नाबालिग से दुराचार करने के मामले में पिछले आठ साल से पीड़िता को पेश न करने पर एवं नोटिस के बावजूद अदालत में हाजिर न होने पर पॉक्सो एक्ट के विशेष न्यायाधीश श्याम मोहन जायसवाल ने पुलिस कमिश्नर लखनऊ एवं पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया है कि वह तत्कालीन इंस्पेक्टर हजरतगंज प्रमोद कुमार पांडेय के वेतन से एक हजार रुपये काट कर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण लखनऊ के कोष में जमा कराना सुनिश्चित करें. मामले में अगली सुनवाई 17 नवंबर को होगी.

एडीजीसी शशि पाठक के अनुसार न्यायालय समक्ष चल रहे इस दुराचार के मुकदमे की रिपोर्ट पीड़िता के भाई द्वारा 8 फरवरी 2015 को हजरतगंज थाने पर आरोपी धर्मराज के विरुद्ध लिखाई गई थी. जिसमें कहा गया है कि वादी की 17 वर्षीय बहन को मोहल्ले में रहने वाला धर्मराज बहला फुसलाकर कहीं भगा ले गया. इस मामले में अभियुक्त को घटना के तुरंत बाद ही गिरफ्तार किया गया था तथा वह लगातार जेल में है. आरोपी के विरुद्ध पुलिस ने 20 अप्रैल 2015 को आरोप पत्र दाखिल किया था.

कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर एवं पुलिस महानिदेशक को आदेश के प्रति भेजते हुए कहा है कि इंस्पेक्टर हजरतगंज को 18 अगस्त 2023 को नोटिस भेजी गई थी, लेकिन उन्होंने नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया. उन्हें इस बात के लिए कहा गया था कि वह न्यायालय में उपस्थित होकर बताएं कि अदालत के आदेश का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है. आदेश में कहा गया है कि अदालत से जारी कोई भी समन लौटकर नहीं आया, बल्कि थाना हजरतगंज से संबंधित पुलिस चौकी से रिपोर्ट भेजी गई है कि जहां पर पीड़िता रहती थी. वहां पर आईटीएमएस की बिल्डिंग बना दी गई है तथा पीड़िता का कुछ पता नहीं चल रहा है और न हीं कोई जानकारी दे रहा है. अदालत ने गंभीर रुख अपनाते हुए कहा है कि पाॅक्सो एक्ट की धारा 35 में प्रावधान है कि वादी की गवाही के 30 दिन के अंदर पीड़िता की गवाही होना अनिवार्य है. अन्यथा विलंब से गवाही दर्ज किए जाने का स्पष्टीकरण देना होगा. अदालत ने यह भी कहा है कि यद्यपि आरोपी जेल में है परंतु उसका यह मौलिक अधिकार है कि वह अपने मामले का विचारण शीघ्र करवा सके. इसके अलावा माननीय उच्च न्यायालय द्वारा भी इस प्रकार के मामलों का शीघ्र निस्तारण किए जाने का निर्देश हैं.

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