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पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर कोरोना का साया, निजी वाहनों से महंगा पड़ रहा आना-जाना - covid19 in lucknow

राजधानी लखनऊ में कोरोना वायरस के चलते सार्वजनिक वाहनों से चलने में लोग कतरा रहे हैं. वहीं निजी वाहनों से चलने वाले लोगों को पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों ने परेशान कर रखा है. बहरहाल शहर में कम संख्या में ही सही, लेकिन परिवहन फिर से सड़कों पर है.

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सार्वजनिक वाहनों में सफर करने से कतरा रहे लोग.

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Published : Aug 14, 2020, 10:28 AM IST

लखनऊ: कोरोना के दौर में ज्यादातर पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर प्रतिबंध लगा हुआ है. काफी कम संख्या में सिटी बसें चल रही हैं. ऑटो व टेंपो भी पूरी संख्या में संचालित नहीं हो रहे हैं. मेट्रो का संचालन मार्च से ही नहीं हो रहा है. ऐसे में आवागमन के लिए लोगों को अपने निजी वाहनों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है जो उनका बजट बिगाड़ रहा है. डीजल और पेट्रोल की कीमतें आसमान छू रही हैं, ऐसे में जाहिर है कि लोगों का बजट बिगड़ा है. वहीं निजी वाहनों के सड़कों पर उतरने से ट्रैफिक काफी बढ़ गया है. इन्ही मुद्दों को लेकर ईटीवी भारत ने लोगों और परिवहन विभाग और यातायात विभाग से जुड़े अधिकारियों से बातचीत की.

सार्वजनिक वाहनों में सफर करने से कतरा रहे लोग.


लंबे लॉकडाउन के बाद अब अनलॉक की प्रक्रिया अमल में लाई जा रही है. सड़कों पर परिवहन फिर से वापसी कर चुका है. लखनऊ शहर में दोपहिया और चार पहिया वाहनों की संख्या पहले की तुलना में कहीं ज्यादा सड़कों पर दिखाई दे रही है. मेट्रो का संचालन न होने से लोग अपने वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं सुरक्षा के लिहाज से ऑटो, सिटी बस या फिर टेंपो से सफर करने से लोग परहेज कर रहे हैं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट चलने से लाखों शहर वासी हर रोज इन वाहनों का इस्तेमाल आवागमन के लिए करते थे. पब्लिक ट्रांसपोर्ट के काफी कम संख्या में चलने से लोगों को ही काफी घाटा हो रहा है, क्योंकि पेट्रोल की कीमतें 80 रुपये से ऊपर जा पहुंच चुकी हैं. लिहाजा खुद के वाहनों का प्रयोग लोगों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है.

शहर में इन दिनों पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पर सिर्फ 120 सिटी बसें ही संचालित हो रही हैं. वहीं 3000 ऑटो और 1000 टेंपो ही संचालित हो रहे हैं, जबकि लखनऊ मेट्रो के संचालन की सरकार ने अब तक इजाजत ही नहीं दी है, जिससे शहरवासियों को आवागमन में परेशानी हो रही है. परिवहन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, शहर में इन दिनों तकरीबन 11 लाख से ज्यादा दोपहिया वाहन और सवा तीन लाख से ऊपर चार पहिया वाहन संचालित हो रहे हैं. ट्रैफिक विभाग के मुताबिक, शहर के हालात ऐसे नहीं है कि यातायात व्यवस्था को काबू करने में किसी तरह की दिक्कत आ रही हो. अभी शहर का यातायात पूरी तरह सामान्य है. हां यह जरूर है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट न चलने से निजी वाहन सड़कों पर ज्यादा संख्या में है, लेकिन अभी स्कूल, कॉलेज, सिनेमा हॉल न खुले होने के कारण कम संख्या में लोग निकल रहे हैं, जिससे ट्रैफिक में कोई खास परेशानी नहीं है.

इतने यात्री करते थे इन वाहनों से सफर
कोरोना काल से पहले शहर में संचालित 260 सिटी बसों में हर रोज 60 हजार के करीब यात्री यात्रा करते थे, वहीं मेट्रो से करीब 20000 लोग यात्रा करते थे. ऑटो और टेंपो का सफर के लिए लोग ज्यादा इस्तेमाल करते थे. दोनों को मिलाकर लगभग यह संख्या एक लाख से ज्यादा थी.

लखनऊ निवासी सैफ पहले तो आवागमन के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते थे, लेकिन इन दिनों मेट्रो का संचालन नहीं हो रहा है तो अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए वह अपना निजी वाहन इस्तेमाल कर रहे हैं. वह बताते हैं पेट्रोल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन मजबूरी है, अब अपने वाहन से नहीं चलेंगे तो किस से चलेंगे.

एआरटीओ अंकिता शुक्ला के मुताबिक, लाखों की संख्या में दोपहिया और चार पहिया वाहन इस समय शहर की सड़कों पर संचालित हो रहे हैं. 18 लाख 11 हजार दो पहिया वाहन और तीन लाख 14 हजार कार आरटीओ में रजिस्टर्ड हैं.

लखनऊ में कमिश्नरेट लागू हो जाने के बाद बहुत बड़े परिवर्तन हुए हैं. हमारे लगभग 115 चौराहों पर अभी ट्रैफिक लाइट प्रारंभ हो गई हैं. इसलिए ट्रैफिक कहीं नहीं रुक रहा है. हम लोग लगातार उसको मॉनिटर कर रहे हैं.

सुरेश चंद्र रावत, एडिशनल डिप्टी कमिश्नर, ट्रैफिक

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