लखनऊ: कोरोना की वजह से पहले 21 मार्च से तीन माह से ज्यादा तक लॉकडाउन और उसके बाद एक जून से अनलॉक की शुरुआत. लॉकडाउन के दौरान गाड़ियों का चक्का हिला नहीं. वहींं अनलॉक में भी कैब ऑपरेटर्स, ऑटो मालिकों और ड्राइवरों की हालत खस्ता है. आलम ये है कि अनलॉक में भी कैब और ऑटो ड्राइवरों को सवारियां न के बराबर मिल रही हैं, जिससे उनके ईंधन का खर्चा तक नहीं निकल पा रहा है. कमाई का जरिया बिल्कुल खत्म है. अपना खर्च चल नहीं रहा है ऊपर से फाइनेंस कंपनियां लगातार मंथली इंस्टॉलमेंट भरने का दबाव बना रही हैं, जिससे कैब, ऑटो मालिक और ड्राइवर काफी परेशान हैं. प्रदेश के दूरदराज जिलों से लखनऊ में किराए पर रहकर ड्राइवर शहर में ऑटो चलाते हैं. अब उन पर किराए का भी दबाव मकान मालिक की तरफ से पड़ रहा है. ऐसे में स्थितियां दिन-ब-दिन सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही हैं.
नहीं मिल रहीं सवारियां
वाहन मालिक और चालक वीरेंद्र कुमार पिछले 30 सालों से गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन कोरोना के कारण लॉकडाउन ने जो स्थिति कर दी है. ऐसी स्थिति का सामना उन्हें कभी नहीं करना पड़ा. अब सवारियों के लिए जूझना पड़ रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए वीरेंद्र बताते हैं कि सवारियां मिल ही नहीं रही हैं. अगर सवारी मिल भी जाती है तो पुलिस वाले चालान काट देते हैं. कहते हैं कि लॉकडाउन में गाड़ी चला रहे हो. इस समय कोई सवारी गाड़ी में बैठना नहीं चाहती है. खर्चा तो चल ही नहीं पा रहा है. कर्जा लेकर किसी तरह गुजर बसर हो रही है. पड़ोसियों के कर्जदार हो गए हैं. फाइनेंस कंपनियां दिन में चार-पांच बार फोन करती हैं. समझाना पड़ता है कि जब अपना ही खर्चा नहीं चल रहा है तो कहां से किस्त भरी जाए?
उधार पर चल रही जिंदगी
नफीस अहमद साल 1982 से गाड़ी चला रहे हैं, उन्हें भी इस तरह की स्थितियों का कभी सामना नहीं करना पड़ा. अब उन्हें अपना ही खर्च चलाना मुश्किल पड़ रहा है. उनका कहना है कि अब रिश्तेदारों और दोस्तों से उधार मांगना पड़ रहा है. पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं और सवारियां मिल नहीं रही हैं. ऐसे में दिक्कतों में लगातार इजाफा हो रहा है. गाड़ी फाइनेंस कराई है तो फाइनेंस कंपनियां बहुत ज्यादा दबाव बना रही हैं. परेशान कर रही हैं. कुछ लोग गाड़ियां बेचने को भी मजबूर हैं, लेकिन उनकी गाड़ी भी नहीं बिक रही है. उधार पर जिंदगी चल रही है.
फाइनेंस कंपनियां बना रहीं दबाव
चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने से रेडियो टैक्सी चला रहे सईद हसन का कहना है कि 1991 से गाड़ी चलाने का काम करते हैं. ऐसी परिस्थितियों का कभी सामना नहीं करना पड़ा. सवारियां तो बिल्कुल मिल ही नहीं रही हैं. खर्चा तो चल नहीं रहा. उधार लेकर ही काम चल पा रहा है. बाकी हालात से तो सभी वाकिफ हैं. जब गाड़ी फाइनेंस कराई है तो वह तो दबाव बनाएगी ही. कंपनी को कोरोना से क्या लेनादेना, उसने पैसे दिए हैं तो वसूल करेगी.