लखनऊ: राजधानी में इन दिनों लॉकडाउन का असर दिखाई दे रहा है. हरियाली के कारण शहर की खूबसूरती बढ़ गई है. 2019 तक अप्रैल से जुलाई के बीच एयर पल्यूशन (Air Pollution) का स्तर बढ़ा रहता था. एक्यूआई यानी एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (Air Quality Index) के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2020 और 2021 में एयर पल्यूशन इन तीन महीनों में काफी कम रहा. शुक्रवार को लखनऊ का एक्यूआई लेवल 128 पीएम रहा. अप्रैल में तो प्रदूषण सूचकांक गिरकर 64 पर पहुंच गया था. हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 ऐसा प्रदूषक तत्व है, जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है.
केजीएमयू के डॉक्टर हिमांशु बताते हैं कि वायु प्रदूषण के कारण बहुत सारी बीमारियां होती है और खासकर लोगों को अस्थमा की बीमारी ज्यादा होती है. हमेशा से गर्मी के महीनों में प्रदूषण बढ़ जाता था, इस कारण लोगों की आंखों में जलन और सांस लेने में दिक्कत होने लगती थी. लॉकडाउन के कारण शहर में कोई भी ऐसा काम नहीं हो रहा है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़े. इस कारण आबोहवा साफ हुई है.
गाड़ियां और कारखाने हैं प्रदूषण की वजह
जाने मानें पर्यावरणविद् सुशील द्विवेदी बताते हैं कि राजधानी लखनऊ बागों का शहर है. इसीलिए शहर के अधिकतर जगहों का नाम आलमबाग, चारबाग, लालबाग और केसरबाग हैं. यानी एक ऐसा शहर जो बेहद हरा-भरा था. वक्त के साथ यहां की हवा प्रदूषित होती गई. उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण की पहचान ज्यादातर प्रमुख स्थायी स्रोतों से की जाती है. कार्बन के उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत ऑटोमोबाइल है. उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो यहां करीब 21,23,813 पुराने वाहन और करीब 2,03,584 ट्रांसपोर्ट वाहन हैं. लखनऊ में पंजीकृत वाहनों में ट्रांसपोर्ट वाहन करीब 14,223, नॉन ट्रांसपोर्ट गाड़ियां 3,32,067 हैं. वहीं राजधानी में कुल वाहनों की संख्या 3,46,290 है. इसके अलावा उद्योगों से निकलने वाले कार्बन डाई ऑक्साइड और खनन के कारण हवा जहरीली होती है.
पर्यावरणविद् वीपी श्रीवास्तव बताते हैं कि कोरोना काल में गाड़ियां बंद हो गई थीं, इंडस्ट्रीज बंद हो गई थी. इस कारण बहुत हद तक पॉल्यूशन से राहत मिली थी. धीरे-धीरे जैसे ही सब कुछ खुलने लगा वैसे वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है. एयर पल्यूशन, वॉटर पल्यूशन और नॉइस पल्यूशन लगातार बढ़ रहा है. सरकार को इसे कंट्रोल करने के उपाय करने चाहिए.
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