लखनऊ: उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए विभिन्न पार्टियां ब्राह्मण सम्मेलन पर फोकस कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी का पिछड़ा वर्ग सम्मेलन और दलित सम्मेलन पर ही पूरा फोकस है. इन वर्गों के अंदर आने वाली जातियों के सम्मेलन आयोजित करने पर ध्यान दिया जा रहा है. हालांकि ऐसा नहीं है कि पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करना नहीं चाहती, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान घटनाक्रम का ध्यान कर पार्टी ब्राह्मण सम्मेलन कराने के बारे में सोच भी नहीं पा रही. दरअसल, 2017 में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर 'पीके' की रणनीति पर कांग्रेस ने दो ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किए थे. पार्टी के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि और भी इस तरह के समागम आयोजित करने का प्लान था, लेकिन तत्कालीन उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आजाद के विरोध के बाद इस तरह के आयोजन पर रोक लग गई थी.
पिछले विधानसभा चुनाव के ब्राह्मण समागम अभी भी जेहन में
उत्तर प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक दलों बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की तरह कांग्रेस के ब्राह्मण वर्ग से ताल्लुक रखने वाले नेताओं का पूरा मन है कि कांग्रेस पार्टी भी ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करे, जिससे पार्टी से रूठे ब्राह्मण एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की तरफ आकर्षित हो सकें, लेकिन बड़े नेताओं की ये ख्वाहिश 2017 के उस किस्से को याद कर पूरी नहीं हो पा रही है. दरअसल, कांग्रेस पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को मैदान में उतारा था. प्रशांत किशोर ने जब यूपी की नब्ज टटोली तो उन्हें समझ आ गया कि ब्राह्मण को साथ लिए बिना उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कायाकल्प नहीं हो सकता है. लिहाजा, प्रशांत किशोर ने ब्राह्मणों को साधना शुरू कर दिया.
ब्राह्मणों का किया गया सम्मान
इतना ही नहीं प्रशांत किशोर के दखल से ही कांग्रेस पार्टी ने 2017 में मुख्यमंत्री के ब्राह्मण चेहरे के रूप में शीला दीक्षित को उतारा. इससे ब्राह्मणों का रुझान भी कांग्रेस पार्टी की तरफ होने लगा. इतना ही नहीं राजनीतिक तौर पर न सही, लेकिन अराजनैतिक ब्राह्मण समागम शुरू कराए गए. लखनऊ के अलावा कानपुर में ब्राह्मण समागम का आयोजन भी किया गया, जिसमें उत्तर प्रदेश भर से तमाम ब्राह्मणों को बुलाया गया. अच्छी खासी तादाद में ब्राह्मण इस समागम में हिस्सा लेने पहुंचे भी थे. कार्यक्रम में कई ब्राह्मणों का कांग्रेस नेताओं ने मंच पर शाल ओढ़ाकर और स्मृति चिन्ह देकर सम्मान भी किया.
कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता कैमरे पर तो न सही लेकिन अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं कि इस तरह के समागम से पार्टी के साथ ब्राह्मण वर्ग जुड़ने भी लगा, लेकिन इसी बीच कांग्रेस ने जो ब्राह्मणों को संजोने का सपना देखा था वह पार्टी के एक बड़े दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद के अलावा कांग्रेस के अन्य फ्रंटल के नेताओं की नाराजगी के बाद चकनाचूर हो गया. कहा जाने लगा कि अगर इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे तो अन्य वर्ग कांग्रेस पार्टी से रूठ जाएंगे, जिसका कांग्रेस पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ेगा. यही वजह थी कि दो समागम होने के बाद आगे के सभी कार्यक्रम स्थगित हो गए.
नेताओं ने बना डाला गठबंधन का प्लान
उधर रणनीतिकार प्रशांत किशोर ब्राह्मणों को कांग्रेस पार्टी के साथ जोड़ने की कवायद में जुटे थे, इधर कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की नींव रख रहे थे. यही वजह है कि प्रशांत किशोर को बैकफुट पर जाना पड़ गया और इन बड़े नेताओं की रणनीति सफल हो गई. कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो गया. इसके बाद जो ब्राह्मण कांग्रेस की तरफ आने का मूड बना रहे थे, उन्होंने फिर अपना फैसला वापस ले लिया. इसका खामियाजा कांग्रेस को 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उठाना भी पड़ा. कांग्रेस पार्टी और ब्राह्मणों के बीच यह खाई अब तक भर नहीं पाई है. अभी भी ब्राह्मण कांग्रेस की तरफ आता हुआ नजर नहीं आ रहा है.