लखनऊ: कुछ सवाल ऐसे हैं, जिनका अगर समय रहते जवाब न मिला तो हम कभी विकसित नहीं, बल्कि यूं ही केवल नाम को विकासशील देशों की सूची में पड़े रहेंगे. किसी लोकतांत्रिक देश के निर्माण और विकास को जरूरी होता है कि वहां के नागरिक अपने अधिकारों का सही तरीके से इस्तेमाल करें. साथ ही सियासी ढांचे को मजबूत करने को पूर्ण विवेक के साथ मतदान कर एक ऐसी सरकार चुनें, जो आगामी 50 साल की सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक व्यवस्था के साथ ही संप्रभुता रक्षार्थ संकल्पित हो. उसके पास देश निर्माण की योजना हो. लेकिन इस देश की यह एक बड़ी विडंबना है कि यहां चुनाव से पूर्व ही सियासी मंचों से ऐसे मैनिफेस्टो पेश किए जाते हैं, जिनमें मौलिक व प्राथमिक जरूरतों की जगह उपहारों को हाई लाइट किया जाता है.
खैर, ये कोई नया एक्सपेरिमेंट नहीं है, क्योंकि दक्षिण भारत में पहले से ही उपहारों का कारवां चलता आ रहा है और उत्तर प्रदेश में इसकी शुरुआत सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साल 2012 में की थी. विकास के सफर पर साइकिल की सवारी के नारे तले अखिलेश यादव ने सूबे के युवाओं को लैपटाप देने की घोषणा की थी, जिसका असर यह हुआ कि प्रदेश में सपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी.
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इधर, 2017 में भाजपा ने पीएम मोदी के चेहरों को मैदान में रख चुनाव लड़ा और जनता से वादा किया गया कि अगर सूबे में भाजपा की सरकार बनी तो फिर यहां बेरोजगारी की समस्या के समाधान को उद्योग-धंधों के विकास पर जोर दिया जाएगा. लेकिन स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली है.
वहीं, कांग्रेस पहले 40 फीसद महिला उम्मीदवारी की घोषणा के बाद अब स्कूटी और स्मार्टफोन देने का एलान कर चुकी है. यानी कांग्रेस किसी भी हाल में सूबे में सत्ता चाहती है और यही कारण है कि बेटियों को फ्री में स्कूटी से लेकर स्मार्टफोन तक देने का एलान कर दिया गया है.