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कांग्रेस ने पहली बार अधिकतर फ्रंटल संगठनों के पदाधिकारियों को टिकट देकर लगाया दांव, पढ़ें यह रिपोर्ट

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Published : Feb 11, 2022, 2:04 PM IST

कांग्रेस पार्टी ने इस बार विधानसभा चुनाव में जितने भी फ्रंटल संगठन हैं उनमें से ज्यादातर संगठनों के मुखिया को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है. यूथ कांग्रेस के दोनों अध्यक्षों को पार्टी ने टिकट दिया है. ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब संगठनों को इतना प्रतिनिधित्व मिला हो.

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कांग्रेस ने पहली बार अधिकतर फ्रंटल संगठनों के पदाधिकारियों को टिकट देकर लगाया दांव

लखनऊ: कांग्रेस पार्टी ने इस बार विधानसभा चुनाव में जितने भी फ्रंटल संगठन हैं, उनमें से ज्यादातर संगठनों के मुखिया को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है. यूथ कांग्रेस के दोनों अध्यक्षों को पार्टी ने टिकट दिया है. ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब संगठनों को इतना प्रतिनिधित्व मिला हो. इसकी वजह है कि कांग्रेस पार्टी इस बार यूपी में सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है. हालांकि इन संगठनों में भी किसी को ज्यादा प्रतिनिधित्व मिला है तो किसी को कम. अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रकोष्ठ को पार्टी ने टिकट देने में उतनी अहमियत नहीं दी, जिसकी उम्मीद माइनॉरिटी डिपार्टमेंट ने लगा रखी थी.

कांग्रेस के सेंट्रल संगठनों की बात की जाए तो कुल मिलाकर विभागों और प्रकोष्ठों की संख्या तीन दर्जन से ज्यादा है. सभी विभागों और प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों ने अपनी तरफ से विधानसभा चुनावों के टिकट के लिए टिकट मांगने वालों की सूची आलाकमान को सौंप दी थी. इनमें से हाईकमान ने कई संगठनों को टिकट में खास तवज्जो दी है. युवाओं और महिलाओं का पार्टी ने खास ख्याल रखा है. पार्टी ने महिला कांग्रेस मध्य जोन की अध्यक्ष ममता चौधरी को लखनऊ की मोहनलालगंज विधानसभा सीट से टिकट दिया है तो बुंदेलखंड जोन की महिला अध्यक्ष करिश्मा ठाकुर को भी कानपुर की गोविंदनगर सीट से प्रत्याशी बनाया है.

प्रियंका गांधी

इसके अलावा महिला कांग्रेस की तीन और पदाधिकारियों को भी चुनाव लड़ाया गया है. यूथ कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस पार्टी ने यूथ कांग्रेस मध्य जोन के अध्यक्ष कनिष्क पांडेय को टिकट दिया है और पश्चिमी जोन के अध्यक्ष ओमवीर यादव को भी मैदान में उतारा है. लखनऊ में शहर अध्यक्ष की बात करें तो उत्तरी क्षेत्र और दक्षिणी क्षेत्र के दो शहर अध्यक्ष हैं और पार्टी ने दोनों को ही उम्मीदवार बनाया है. दक्षिणी क्षेत्र के लिए दिलप्रीत सिंह कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं तो उत्तरी क्षेत्र के शहर अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव उत्तरी विधानसभा से चुनाव मैदान में हैं.

इन संगठनों को भी दी जगह-
एनएसयूआई के दो पदाधिकारी टिकट पाने में कामयाब हुए हैं और प्रदेश की विभिन्न सीटों से चुनाव मैदान में उतर चुके हैं. कांग्रेस सेवादल की बात की जाए तो पार्टी ने सेवादल की टिकटों के मामले में अनदेखी तो नहीं की, लेकिन इतनी अहमियत भी नहीं दी जितनी मेहनत कांग्रेस सेवादल से ली है. बताया जा रहा है कि पार्टी ने 403 विधानसभा सीटों में से कुल तीन उम्मीदवार ही कांग्रेस सेवादल के स्वीकार किए हैं. कांग्रेस सेवादल के मुख्य संगठक प्रमोद पांडेय बनारस से टिकट मांग रहे थे, लेकिन उन्होंने आखिरी समय चुनाव लड़ने से मना कर दिया था. इसी तरह पिछड़ा वर्ग की बात करें तो पार्टी ने इस प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों को भी टिकट के मामले में अहमियत दी है. हालांकि प्रदेश अध्यक्ष मनोज यादव ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था.

अनुसूचित जाति जनजाति प्रकोष्ठ को भी टिकट देने में पार्टी ने कोताही नहीं की है. प्रकोष्ठ के चेयरमैन आलोक प्रसाद भी चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं. आरटीआई डिपार्टमेंट के भी कुछ पदाधिकारियों को पार्टी ने चुनाव मैदान में टिकट देकर उतारा है. प्रोफेशनल कांग्रेस से भी एक प्रत्याशी मैदान में है. प्रदेश में विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार के मामले में कांग्रेस पार्टी ने अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को तो पूरा महत्त्व देते हुए काफी टिकट देकर चुनावी मैदान में भेजा, लेकिन अगर उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस की बात करें तो इस डिपार्टमेंट से पार्टी ने उतना न्याय नहीं किया जितनी उम्मीद अल्पसंख्यक कांग्रेस ने लगा रखी थी. उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस के चेयरमैन शाहनवाज आलम भी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.

इन संगठनों के मुखिया नहीं पा सके टिकट
एनएसयूआई के अध्यक्ष अनस रहमान कुर्सी विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. लखनऊ के जिला अध्यक्ष वेद प्रकाश त्रिपाठी पार्टी से टिकट की पूरी उम्मीद लगाए थे, लेकिन आलाकमान ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. आरटीआई डिपार्टमेंट के चेयरमैन पुष्पेंद्र श्रीवास्तव ने भी पार्टी से गोरखपुर सदर विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने उम्मीदवार बनाने के लिए अनुरोध किया था, लेकिन उनके आग्रह को पार्टी ने ठुकरा दिया और उन्हें भी टिकट नहीं दिया. राजीव गांधी पंचायती राज विभाग (मध्य जोन) के चेयरमैन शैलेंद्र तिवारी ने भी पार्टी के समक्ष उम्मीदवारी की पेशकश की थी, लेकिन पार्टी ने ध्यान नहीं दिया. जबकि कांग्रेस में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर उनकी खास पहचान है और जनता में मजबूत पकड़ भी.

पदाधिकारियों की भी परीक्षा
ऐसा पहली बार हो रहा है जब कांग्रेस पार्टी ने अधिकतर फ्रंटल संगठनों के अध्यक्षों या पदाधिकारियों को टिकट देकर विधानसभा चुनाव लड़ाया हो. अब यह भी देखना होगा कि इनमें से कितने पदाधिकारी चुनाव जीतने में कामयाब हो पाते हैं और 32 साल से उत्तर प्रदेश की सियासत में संघर्ष कर रही कांग्रेस पार्टी को कामयाबी की राह पर ले जा पाते हैं.

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