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लखनऊ की कई सीटों पर कई सालों से नहीं मिली कांग्रेस को जीत की संजीवनी - उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव

लखनऊ की कई सीटों पर कांग्रेस को कई वर्षों से जीत की संजीवनी नहीं मिली है. चलिए जानते हैं इस बारे में.

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लखनऊ की कई सीटों पर कई सालों से नहीं मिली कांग्रेस को जीत की संजीवनी

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Published : Jan 27, 2022, 4:16 PM IST

लखनऊः उत्तर प्रदेश में 32 साल से कांग्रेस पार्टी सत्ता के लिए तड़प रही है लेकिन पार्टी को अभी तक सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचने का मौका नहीं मिला है. बात अगर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की करें तो यहां पर नौ विधानसभा सीटों में से दो से तीन सीटों को छोड़ दिया जाए तो शेष पर कई सालों से कांग्रेस पार्टी जीत नहीं सकी है. पार्टी इन्हें जीतने की संजीवनी खोज रही है. राजधानी की सभी नौ सीटों पर अब तक के चुनावों में क्या रही कांग्रेस की स्थिति. पढ़िए 'ईटीवी भारत' की खबर.




कैंट विधानसभा सीट
1989 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ कैंट की सीट पर प्रेमवती तिवारी ने चुनाव जीता था. इसके बाद 1991 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी ने यह सीट छीन ली. सतीश भाटिया यहां से विधायक बने. कांग्रेस पार्टी यहां दूसरे नंबर पर रही. 1993 में फिर से चुनाव हुआ और सतीश भाटिया ने यह सीट बरकरार रखी. कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर रही. 1996 के चुनाव में सुरेश चन्द्र तिवारी भाजपा के प्रत्याशी थे उन्होंने चुनाव जीता और कांग्रेस की हालत इस सीट पर और पतली हो गई.
2002 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बाजी भारतीय जनता पार्टी के सुरेश चंद तिवारी ने ही मारी. कांग्रेस के राजेंद्र सिंह तीसरे नंबर पर रहे. 2007 में बीजेपी का ही परचम फिर इसी पर खड़ा है और कांग्रेस पार्टी के मुरलीधर चौथे नंबर पर चले गए 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने इस विधानसभा सीट पर वापसी की.
कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी ने कैंट सीट से सुरेश चंद्र तिवारी को हराकर कांग्रेस के पाले में सीट वापस ला दी. 2017 का चुनाव हुआ तो रीता बहुगुणा जोशी ने पाला ही बदल लिया. वह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आ गईं और यह सीट फिर उन्होंने बीजेपी को ही वापस कर दी. उन्होंने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की साझा प्रत्याशी अपर्णा यादव को हराया था. 2019 के उपचुनाव में फिर बाजी भारतीय जनता पार्टी के हाथ आई और सुरेश चंद तिवारी विधायक बने. कांग्रेस पार्टी के दिलप्रीत सिंह विर्क तीसरे नंबर पर रहे. 2012 में आखिरी बार कांग्रेस पार्टी ने सीट जीती थी.

सरोजिनी नगर पर संघर्ष जारी
सरोजिनी नगर सीट पर 1967 से लेकर 2017 तक कांग्रेस पार्टी ने पांच बार कब्जा जमाया, लेकिन 1991 से अब तक इस सीट पर कांग्रेस की वापसी नहीं हो पाई है. 1967 में विजय कुमार त्रिपाठी, 1969 में चंद्रभान गुप्ता, 1974 में विजय कुमार त्रिपाठी, 1980 में विजय कुमार त्रिपाठी, 1991 में विजय कुमार त्रिपाठी ने कांग्रेस का झंडा बुलंद किया, लेकिन इसके बाद कांग्रेस की वापसी होना इस सीट पर मुश्किल हो गया. दो दशक से ज्यादा समय से इस सीट पर पार्टी संघर्ष कर रही है.


मलिहाबाद विधानसभा सीट पर नहीं खुला खाता
साल 2008 में मलिहाबाद विधानसभा सीट मोहनलालगंज निर्वाचन क्षेत्र में बनी थी. 2012 में इस विधानसभा सीट पर चुनाव हुआ तो पहली बाजी समाजवादी पार्टी के इंदल कुमार ने मारी. कांग्रेस पार्टी से डॉ. जगदीश चंद्र चुनाव लड़े लेकिन उनकी पोजीशन चौथे नंबर पर रही. 2017 में इस विधानसभा सीट पर बीजेपी ने कमल का फूल खिला दिया. जयदेवी रावत ने यहां से चुनाव जीता. कांग्रेस समर्थित समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी राजबाला दूसरे नंबर पर रहीं. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन था, ऐसे में कांग्रेस इस सीट पर चुनाव ही नहीं लड़ी.

बक्शी का तालाब सीट का ये रहा इतिहास
बख्शी का तालाब विधानसभा सीट 2008 के बाद अस्तित्व में आई. इससे पहले इसका बड़ा हिस्सा महोना विधानसभा क्षेत्र में आता था. 2012 में इस सीट पर चुनाव हुआ तो पहली बार समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी गोमती यादव ने चुनाव जीता तो 2017 में इस सीट पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया. यहां से अविनाश त्रिवेदी जीते. जब ये महोना सीट हुआ करती थी तब 1989 में विनोद चौधरी ने कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीता था. इससे पहले 1980 में चंद्रशेखर त्रिवेदी 1974 में रामपाल त्रिवेदी, 1969 में रामपाल त्रिवेदी कांग्रेस से चुनाव जीते थे, लेकिन बख्शी का तालाब सीट होने के बाद इस पर कांग्रेस का जादू नहीं चला.

मोहनलाल गंज सीट
मोहनलालगंज विधानसभा सीट पर 1962 में कांग्रेस पार्टी ने राम शंकर रविवासी को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने जीत दर्ज की. इसके बाद 1967 में भी कांग्रेस के पास ही ये सीट रही. नारायणदास यहां से चुनाव जीते. 2012 का विधानसभा चुनाव सपा नेता चंद्रा रावत चुनाव जीतीं. कांग्रेस की कहीं जमीन भी नहीं बची. 2017 में कांग्रेस और सपा का साझा प्रत्याशी अम्बरीष सिंह पुष्कर ने जीत दर्ज की.


लखनऊ मध्य विधानसभा में नहीं खुला खाता
लखनऊ मध्य विधानसभा सीट की बात करें तो 1989 में इस सीट पर बीजेपी के बसंत लाल गुप्ता जीते. कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर रहीं थी. 1991 में फिर कांग्रेस पार्टी का तीसरा नंबर ही रहा. 1993 में कांग्रेस तीसरे ही नंबर पर रही. 1996 में कांग्रेस पार्टी का सीट पर पता ठिकाना नहीं रहा. 2002 में कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर रही. 2007 में भी कांग्रेस पार्टी का तीसरा ही नंबर रहा. 2012 में थर्ड पोजिशन पर रही. 2017 में चौथे नंबर पर चली गई.

उत्तर विधानसभा सीट पर नहीं चला जादू
लखनऊ की उत्तर विधानसभा सीट की बात करें तो 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अभिषेक मिश्रा विधायक बने जबकि कांग्रेस की तरफ से डॉक्टर नीरज बोरा दूसरे नंबर पर रहे, वहीं साल 2017 में कांग्रेस और सपा का गठबंधन था. यह सीट समाजवादी पार्टी को मिली कांग्रेस ने सहयोग किया फिर भी बीजेपी से नीरज बोरा यहां से विधायक बने और अभिषेक मिश्रा चुनाव हार गए.


लखनऊ पूर्व विधानसभा सीट
लखनऊ पूर्व विधानसभा सीट की बात करें तो साल 1989 में इस सीट पर रविदास मेहरोत्रा चुनाव जीते थे जबकि कांग्रेस की स्वरूप कुमारी बख्शी दूसरे नंबर पर रही थीं. 1991 में भी कांग्रेस पार्टी दूसरे नंबर पर रही. 1993 के विधानसभा चुनाव में पार्टी एक पायदान नीचे खिसक गई. यहां से तीसरे नंबर पर रही. 1996 के विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर कांग्रेस रही. 2002 में कांग्रेस का तीसरा नंबर रहा. 2007 में कांग्रेस पार्टी और एक पायदान नीचे खिसकी और चौथे नंबर पर चली गई. 2012 में कांग्रेस पार्टी एक स्थान ऊपर चढ़ी और तीसरे नंबर पर पहुंची. 2014 के उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी का तीसरा नंबर रहा. 2017 में भी कांग्रेस पार्टी दूसरे नंबर पर ही रह गई यानी इस सीट पर कांग्रेस पार्टी एक बार भी चुनाव नहीं जीत पाई.

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लखनऊ पश्चिम विधानसभा सीट पर एक बार मिली जीत
लखनऊ पश्चिम विधानसभा सीट पर 1989 में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा लेकिन पोजीशन तीसरी रह गई. 1993 में कांग्रेस पार्टी के कन्हैया लाल महेंद्र ने चुनाव लड़ा लेकिन तीसरे नंबर पर ही पार्टी रह गई. 1996 में भी पार्टी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई. स्थान वही तीसरा ही रहा.
अब्दुल कलाम खान यहां से चुनाव लड़े थे. इसके बाद 2002 में कांग्रेस की स्थिति और खराब हो गई. पार्टी चौथे नंबर पर चली गई. साल 2007 के चुनाव में भी पार्टी का चौथा स्थान रहा 2009 में उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस ने पहली बार श्याम किशोर शुक्ला को मैदान में उतारा और जीत दर्ज की. इसके बाद 2012 में कांग्रेस फिर चुनाव लड़ी लेकिन श्याम किशोर शुक्ला तीसरे नंबर पर रहे. 2017 में सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ जिसके बाद सीट सपा के खाते में गई और मोहम्मद रेहान नईम यहां से चुनाव जीते.

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