लखनऊ : लोकनायक बिरसा मुंडा की 148 जयंती के अवसर पर राजधानी लखनऊ के संगीत नाटक अकादमी में चल रहे सात दिवसीय जनजाति भागीदारी उत्सव में उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, नागालैंड, उड़ीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम के जनजाति कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. उत्सव में एक स्टॉल ऐसा भी है जो यहां आने वाले सभी लोगों को अपनी और सबसे ज्यादा आकर्षित कर रहा है. यहां सहरिया, झुमरा, कोल्हाई नृत्य, राजस्थान का गारासिया नृत्य, कालबेलिया नृत्य, मध्य प्रदेश का गदली, पश्चिम बंगाल का कोरा नृत्य यहां आ रहे लोगों को काफी पसंद आ रहा है. इसके अलावा पुराने वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी भी लोगों को भा रही है.
जादुई बांसुरी बनी रोमांच :जनजातीय भागीदारी उत्सव में लगे जनजातियों के पुराने वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी में लोगों को सबसे ज्यादा आकर्षक जादुई बांसुरी कर रही है. आमतौर पर धारणा है कि बांसुरी होठों से लगाकर बजाए जाने वाला वाद्य यंत्र है. जबकि छत्तीसगढ़ के जनजातीय कलाकारों ने एक ऐसी बांसुरी ईजाद की है जो होठों से लगाकर नहीं बजाई जाती. इसे हवा में दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे घुमाने पर यह सुरीली धुन उत्पन्न करती है. जिसे वहां के आदिवासी जादुई बांसुरी कहते हैं.
लोक वाद्य संग्रहालय छत्तीसगढ़ के संजीव कुमार सेन ने बताया कि छत्तीसगढ़ के आधी राग टीमकी छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का एक वाद्य बस्तर में इसे टरबडी आदि नाम से जाना जाता है. यह अलग-अलग आकार के बांस में बनाया जाता है. इसके अलावा सिंगा चिड़िया एक ऐसा वाद्य यंत्र है जो छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा तैयार किया जाता है. इस वाद्य यंत्र से चिड़िया की आवाज निकल जाती है. आदिवासी इसे चिड़ियों के शिकार के समय बजाते हैं जब इसे बजाते हैं तो चिड़िया भी चहकने लगती हैं. जिससे उनके होने का पता शिकारी को लग जाता है. यहां पर माडिया ढोल भी रखा है जो मूरिया जनजाति के लोग द्वारा प्रयोग में लाया जाता है. यह लगभग 4 फीट की लकड़ी को खोखला करके बनाया जाता है. जिसमें बैल और बकरे का चमड़ा मड़ा होता है. इससे एक हाथ से और दूसरे ओर से डंडे से बजाया जाता है. मूरिया जनजाति के लोग शादी तथा नई फसल की कटाई के समय इस बजाते हैं.